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नए जोड़े को कुछ दिन बाद हनीमून के लिए जाना था तो शीला जी छोटी बहू से बोलीं, "बहु जाने से पहले गहने मुझे दे कर जाना मैं संभाल कर रख दूँगी।"
नए जोड़े को कुछ दिन बाद हनीमून के लिए जाना था तो शीला जी छोटी बहू से बोलीं, “बहु जाने से पहले गहने मुझे दे कर जाना मैं संभाल कर रख दूँगी।”
“सुनो तुमने बनारस की टिकट करवा दी है न?” संगीता ने चहकते हुए कहा।
“भई अभी तो जाने में 15 दिन बाकी हैं, कर दूंगा आराम से तुम टेंशन क्यों लेती हो?” सुरेश बोला।
“मैं नहीं जानती, जैसे कल करना वैसे आज ही कर दो। टेंशन खत्म और टाइम में सीट्स न मिलीं तो?”
संगीता, पति सुरेश के साथ मुंबई में रहती थी। उसका ससुराल बनारस में है। बनारस से दो घन्टे की दूरी पर एक छोटे से गांव में संगीता का मायका है। कहने को गांव था, पर हर सुख सुविधा से युक्त था और संगीता का मायका भी हर चीज से सम्पन्न था। संगीता की कजिन पूजा की शादी उनके गांव से ही हो रही थी। यह पहला मौका था जब वह अपनी शादी के बाद मायके जाने वाली थी, इसलिए बहुत उत्साहित थी। शादी में उसकी सभी सहेलियां और मायके पक्ष के सभी परिजन होंगे सोच कर शादी की शॉपिंग महीने भर पहले से ही शुरू कर दी थी। पैसे की तो कोई कमी भी नहीं थी। सुरेश बड़ी कंपनी में अच्छे पद पर था। पहली बार मायके जा कर सबको अपनी शान भी दिखाना चाहती थी कि उसके ससुराल मे किसी चीज की कोई कमी न है।
सुरेश अपने परिवार में सबसे बड़ा था। मुंबई में रहते हुए भी हर महीने बनारस घर खर्च भेजता। पिताजी ज्यादातर बीमार रहते थे और भाई अभी कॉलेज में पढ़ रहा था इसलिए पूरी जिम्मेदारी सुरेश के ऊपर ही थी। यहा तक कि स्वयं की शादी का पूरा खर्चा सुरेश ने ही उठाया था। दुल्हन के कपड़ो से लेकर उसके गहने भी सुरेश ने ही बनवाये थे। तीज त्यौहार पर संगीता और सुरेश बनारस जाते और पूरा परिवार साथ मे ही सभी त्योहार मनाते थे।
संगीता ने शाम को सास शीला जी को फोन लगाया औपचारिक बातों के बाद संगीता ने शीला जी से अपने गहने सुनार से साफ करवाने को कहा, “मम्मी जी हम पहले घर ही आएंगे वहा से सब साथ में गांव के लिए निकलेंगे। लेकिन सुरेश की जॉब के चक्कर मे हम शादी के एक दिन पहले ही आ पाएंगे तो आप सुनार से मेरे गहने साफ करवा कर रख लेना।”
संगीता के सारे गहने शीला जी के पास ही थे। शादी के बाद जब संगीता मुम्बई आने वाले थी तभी शीला जी ने उससे सारे गहने अपने पास ही रखवा लिए थे। संगीता ने भी सोचा सफर में इतने गहने ले जाना ठीक नहीं है और वैसे भी वहाँ तो यह गहने पहन भी नहीं पाना है। गहने तो शादी, ब्याह या कोई बड़े फक्शन में पहनने के लिए ही होते है सो उसने भी हल्की ज्वैलरी पहन ली और सारे गहने शीला जी को दे दिए। उसके बाद से कभी गहने पहनने का मौका ही नहीं मिला पर अब उसे वो मौका मिलने वाला था। इसलिए आज उन्ही गहनो की सफाई का बोल रही थी।
दोनों पंद्रह दिन बाद बनारस पहुँच चुके थे। दूसरे दिन सभी को गांव के लिए निकलना था। सारी पैकिंग हो चुकी थी। संगीता ने शीला जी से गहने निकालने को कहा।
“अरे बहु आज कल तो आर्टिफिशियल का जमाना है अब ये गहने-वहने कौन पहनता है?” शीला जी बोलीं।
“पर मम्मी जी मुझे आर्टिफिशियल से ज्यादा असली पसन्द है और यह मेरी मायके की पहली शादी है। पहली बार मायके जा रही हूँ और आर्टिफिशियल पहनूँ तो सब क्या सोचेंगे? अगर अपने पास न होते तो और बात थी पर जबकि है तो पहनने में क्या हर्ज है।”
पर शीला जी तो पहले से ही गहने न देने का पूरा मन बना चुकी थी उन्होंने संगीता को गहने देने से मना कर दिया। संगीता का मन उदास हो गया। शादी में जाने की सारी खुशियाँ उड़ गई। जब सुरेश को पता चला तो उसने भी माँ से बात की उसने यह तक कहा कि शादी से लौटने के बाद संगीता आपको सारे गहने फिर वापस कर देगी। पर संगीता की सास कड़क स्वभाव की थी। इतने महीनों बाद भी वह संगीता को दिल से अपना नहीं पाई थी। इसलिए वो अपने फैसले पर अड़ी रही।
संगीता का अब गांव जाने का मन नहीं था सुरेश ने बहुत समझाया कि वो उसके लिए दूसरे और अच्छे मंहगे जेवर बनवा देगा, “यूँ गुस्सा मत रहो। वैसे भी शादी में सब प्यार बांटने और मेल मिलाप के लिए एकत्रित होते है न कि गहने और जेवर देखने के लिए।”
“बात सिर्फ जेवर की नहीं है सुरेश बात है विश्वास की, बात है हक की। मम्मी जी शायद मुझ पर अभी तक विश्वास नहीं कर पाई है न ही वो मुझे अपना मानती है जबकि मैंने उन्हें पूरी तरह से अपना मान लिया था। वहां शादी में सब एक से बढ़कर एक दिखेंगे और मैं इस तरह खाली खाली दिखूंगी। सब क्या सोचेंगे इतने सम्पन्न घर की बहू होते हुए भी मेरे पास कुछ भी नहीं।”
संगीता का मन अब शादी में जाने के लिए बिल्कुल भी नहीं था पर सुरेश के बार बार कहने और गांव से बार बार फोन आने पर उसे जाना ही पड़ा। वहाँ से मुम्बई लौटने के बाद भी कई दिनों तक संगीता के मन मे शीला जी के लिए गुस्सा बना रहा। समय गुजरने लगा। कुछ सालों बाद सुरेश के छोटे भाई की शादी तय हुई। उसकी शादी का खर्चा भी सुरेश ने ही उठाया। संगीता भी पिछ्ली बाते भूल कर खुशी खुशी शादी की तैयारियों में लगी रही। नए जोड़े को कुछ दिन बाद हनीमून के लिए जाना था शीला जी छोटी बहू से बोलीं, “बहु जाने से पहले गहने मुझे दे कर जाना मैं संभाल कर रख दूँगी।”
“पर मम्मी जी मैं बच्ची नहीं हूँ। अपने जेवर संभालना जानती हूँ। आप चिंता न करें मैं खुद अच्छे से रख लूँगी।” छोटी बहु कहते हुए कमरे में चली गई।
शीला जी ने तो सोचा भी नहीं था कि छोटी बहु इस तरह जवाब देगी। संगीता वही खड़ी दोनों की बाते सुन रही थी। शीला जी ने संगीता को देखा तो आंखे चुराने लगी। तब संगीता बोली, “मम्मी जी देखा जाए तो अब उन गहनों पर छोटी का ही हक है। एक बार आपने उसे फेरों के समय पहना दिए तो अब वे उसके ही हैं और इस उम्र में आप उन गहनो का लालच क्यों करती हैं?”
“मुझे लालच नहीं है बहु, बस मुझे डर है कि बुढ़ापे में मेरी कोई सेवा करेगा या नही। अगर मेरे पास कुछ होगा तो हर कोई मेरी सेवा करना चाहेगा वरना बुढ़ापे में मेरा कोई पूछने वाला नहीं होगा”, शीला जी आंसू पोछते हुए बोलीं।
“नहीं मम्मी जी आपका ये सोचना गलत है। सेवा किसी लालच से नहीं होती वो तो प्रेम और स्नेह से होती है। अगर आप मन से किसी को अपना लेंगी उसे स्नेह और प्यार देगी तो वह उस स्नेह का फर्ज जरूर अदा करेगा। और दुख के समय कोई बाहर वाला नहीं बल्कि अपने ही काम में आते हैं। आप छोटी पर हुक्म चलाने की बजाय उसे प्रेम से अपनाए देखना वो जरूर आपको समझेंगी”, संगीता ने शीला जी को पानी देते हुए कहा।
“तुम सही कहती हो बहु, मेरी ही सोच गलत थी और मेरी इसी सोच ने तुम्हारा भी दिल दुखाया है। काश ये मैं पहले समझ जाती तो तुम्हारे साथ… पर अब मुझे माफ़ कर दे बहु और ये रहे तेरे जेवर, इसे तू ही रख। मेरे पास तो अब प्रेम रूपी खजाना है अब इन जेवरों की मुझे जरूरत नहीं”, जेवरों की पोटली संगीता को देते हुए शीला जी बोलीं और दोनों सास बहु एक दूसरे के गले लग गईं।
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मूल चित्र : rvimages from Getty Images Signature, via Canva Pro
Devoted house wife and caring mother... Writing is my hobby. read more...
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