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भारत में गर्भपात कानून और जानने योग्य महत्वपूर्ण जानकारी!

अगर आप भारत में गर्भपात करवाने और उसके कानून के तहत निश्चित प्रक्रिया की जानकारी लेना चाहते हैं तो इस आलेख से मिलेगी पूर्ण जानकारी।

अगर आप भारत में गर्भपात करवाने और उसके कानून के तहत निश्चित प्रक्रिया की जानकारी लेना चाहते हैं तो इस आलेख से मिलेगी पूर्ण जानकारी।

अनुवाद : मुक्ता शर्मा त्रिपाठी 

एक नये जीवन को संसार में लेकर आने की सूचना, जितनी अधिक जीवन में प्रसन्नता का कारण है, उतनी ही लंबे समय की समर्पित जिम्मेदारी भी है। वहीं अनियोजित गर्भ कई बार दुविधा की स्थिति का कारण भी बन जाता है।

आप गर्भपात करवाना चाहते हैं इसके कई कारण हो सकते हैं। चाहे ये कई लोगों के लिए दुखदाई क्षण होता है परन्तु अपनी सेहत, स्वाभिमान, जीवन की सुरक्षा के लिए इसके संबंध में जानकारी, और भारत में गर्भपात कानून जानना भी ज़रूरी है।

भारत में गर्भपात की प्रक्रिया ‘मेडिकल टर्मीनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’ ( Medical Termination Of Pregnancy (MTP) act) के अधीन आती है।

भारत में आप कहाँ से गर्भपात करवा सकती हैं?

आप कानूनी रूप से और सुरक्षित गर्भपात एक ‘रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टीश्नर’ (Registered Medical Practitioner) से करवा सकती हैं। अधिकतर OBGYNs गर्भपात के कार्य के लिए अधिकृत हैं। परन्तु दूसरे डॉक्टर भी गर्भपात करवाने संबंधी प्रमाणपत्र या अनुमति दे सकते हैं। एम. टी. पी. सरकार द्वारा निर्देशित नियमों और सुविधाओं के अनुसार ही करवाई जा सकती है।

गर्भपात जितना जल्दी, उतना ही बेहतर!

अगर आपने गर्भपात का निश्चय कर लिया है तो कानूनी या चिकित्सकीय स्तर पर यह प्रक्रिया जितनी जल्दी करवाई जा सके उतना ही अच्छा होगा। इस प्रक्रिया के लिए भारत में गर्भपात कानून के मुताबिक आपको गर्भ के 12 सप्ताह की समय-सीमा के अंदर-अंदर संबंधित चिकित्सक से अनुमति लेनी होगी। 12 सप्ताह से अधिक के गर्भ के लिए दो आर.एम.पी. चिकित्सकों की अनुमति लेना अनिवार्य है।

अगर गर्भ के प्रारंभिक 9 सप्ताह की समय सीमा के अंदर गर्भपात करवाते हैं तो इसे ‘मैडिकल अबॉर्शन’ कहा जाता है। जिसमें आपके आर. एम. पी. डॉक्टर द्वारा निर्देशित दवाओं का सेवन करना होगा और फिर उत्तरोत्तर संबंधित शारिरिक जाँच-पड़ताल करवानी होगी ताकि निश्चित हो सके कि गर्भपात सफलतापूर्वक हो गया है। इस समय-सीमा के भीतर कोई सर्जरी करवाने की जरूरत नहीं होती।

2018 के ‘सैक्सुअल, रिप्रोड्कटिव और मेन्सुरल राइट्स बिल’ का उद्देश्य था कि 12 सप्ताह के गर्भ के गर्भपात करवाने के लिए किसी मेडिकल प्रेक्टीश्नर की अनुमति ना लेनी पड़े। इसके लिए 2014 में भी इसी बिल के मसौदे में इस पूर्व शर्त संबंधी निश्चित किए गये नियम की पुनरावृत्ति करने के लिए कहा गया था और दी गई समय-सीमा के बाद दो आर. एम. पी. डॉक्टर की अनुमति लेने के प्रावधान को भी कम करके एक डॉक्टर तक सीमित करने को कहा गया था।

अगर आपकी 9 सप्ताह के गर्भ की समय-सीमा समाप्त हो चुकी है तो घबराएं नहीं!

एम. टी. पी. भारत में 20 सप्ताह के गर्भ की समय-सीमा तक करवाना कानूनी है। परन्तु प्रारंभिक तयशुदा समय-सीमा के पश्चात सर्जरी करवानी पड़ती है। और इस सर्जरी का सकारात्मक पक्ष यह है कि आपको गर्भपात के बाद, कुछ घंटों से अधिक अस्पताल में रहने की जरूरत नहीं!

तो भारत में गर्भपात कानून के तहत प्रारंभिक समय-सीमा के बाद दो तरह के गर्भपात करवाए जा सकते हैं:

7 से 15 सप्ताह के गर्भ के, गर्भपात करवाने के लिए ‘वैक्यूम एस्पिरेशन’ (Vacuum Aspiration) की प्रक्रिया निश्चित की गई है। इस 10-15 मिनट की सर्जरी के बाद कुछ घंटों में ही रिकवरी या स्वास्थ्य लाभ हो जाता है।

और 15 सप्ताह से अधिक के गर्भ के गर्भपात करवाने के लिए ‘डॉएलेशन एंड इवैक्यूएशन’  (Dialation and Evacuation) नाम की सर्जरी करवानी पड़ती है। यह ‘वैक्यूम एस्पिरेशन’ से थोड़ी सी अधिक जटिल प्रक्रिया है। परन्तु फिर भी अस्पताल में बहुत अधिक समय तक नहीं रहना पड़ता।

गर्भपात के कारण, अपने जीवनसाथी और परिवार की संभावित प्रतिक्रिया से चिंतित?

अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ बालिग़ हैं तो किसी की भी सहमति या अनुमति लेने की जरूरत नहीं! ना ही अपने जीवन साथी की और ना ही अपने प्रेमी की! और तो और इस सबके लिए आपके डॉक्टर भी आपको विवश नहीं कर सकते। परन्तु पति की अनुमति या सहमति के बिना करवाए गये गर्भपात अधिकतर तलाक का मुख्य आधार बन सकते हैं।

कुँवारी औरत को गर्भपात का कानूनी अधिकार है

अगर आप मानसिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ बालिग़ हैं तो बिना किसी की सहमति या अनुमति के बिना भी आपको गर्भ गिराने का अधिकार है।

अगर आप बालिग़ नहीं हैं तो आपके माता-पिता या कानूनी गार्जियन की अनुमति लेना आवश्यक है। अपने माता-पिता को इस बारे में बताना मुश्किल हो सकता है परन्तु भारत में गर्भपात करवाने का यही सुरक्षित और कानूनी तरीका है।

कई बार लड़कियों को अत्यधिक चिकित्सकीय मुश्किलों से जूझना पड़ता है जैसे कि अधूरा गर्भपात। गैरकानूनी गर्भपात संबंधी सुविधा या प्रक्रिया कई बार असुरक्षित और कई तरह के संक्रमण का कारण भी बन सकती है।

जितनी जल्दी गर्भपात होगा उतनी कम जटिलताओं का डर रहेगा, तो कृपया माता-पिता को बताने से झिझके ना, जितनी जल्दी हो सके बता दें।

गर्भपात संबंधी कौन कौन सी कानूनी पाबंदियों का सामना करना पड़ता है?

भारत में गर्भपात केवल आर. एम. पी. डॉक्टर से करवाया जा सकता है जो कि इसकी अनुमति निम्नलिखित निर्धारित शर्तों का पालन करते हुए दे सकता है :

1) अगर गर्भस्थ रहने से संबंधित औरत को कोई गंभीर शारीरिक जोखिम का खतरा हो।

2) अगर गर्भस्थ शिशु को विशेष तरह की आनुवांशिक असामान्यता या किसी भी तरह कि अपंगता का ख़तरा हो।

3) अगर संबंधित महिला को गंभीर मानसिक जोखिम का खतरा हो।

गर्भिणी की मानसिक जोखिम को तर्कसंगत ठहराने वाले कारण या आधार :

1) अगर गर्भ का कारण बलात्कार या पारिवारिक अनाचार हो।

2) शादीशुदा महिला के मामले में, अगर गर्भनिरोधक प्रक्रियाओं की असफलता के कारण गर्भ ठहर गया हो तो।

3) अगर गर्भिणी को वर्तमान या निकट भविष्य में आसपास के वातावरण के कारण कोई मानसिक जोखिम का खतरा हो।

2016 को ‘श्रीमती एक्स और डॉक्टर निखिल डार‘ का मामला ऐसी ही स्थितियों की प्रासंगिकता को उजागर करता है। इस मामले में महिला बलात्कार पीड़िता थी। जिसका भ्रूण एक तरह की दिमागी अपंगता का शिकार था जिसे ‘एनिनसेफिली’ कहा जाता है। इस स्थिति में बच्चा जन्मजात जड़ समान हो सकता है। जब यह मामला शीर्ष अदालत में ले जाया गया तो पहली बार 20 सप्ताह से ऊपर की समय-सीमा के गर्भ को गर्भपात करवाने की अनुमति मिली।

खुशकिस्मती से तीसरा कारण थोड़ा अस्पष्ट है तो डॉक्टरों को लचीलापन प्रदान करता है जिसके आधार पर वे अधिकतर जरूरतमंद महिलाओं का गर्भपात करवाने की आज्ञा दे पाते हैं। इसी तरह के मामलों को 2020 में दोबारा जांचा गया और संशोधित किया गया।

भारत में गर्भपात करवाना कब मुश्किल होता है?

भारत में कन्या भ्रूण हत्या अनियंत्रित हैं। गर्भपात के लिए डॉक्टर को उत्तरदायी हैं जो आगे कन्या भ्रूण हत्या का भी कारण बन सकता है। इसलिए अगर आपने गर्भ की लिंग निर्धारण जाँच करवाई है तो डॉक्टर गर्भपात करने से मना कर सकते हैं।

भारत में प्रथम 20 सप्ताह तक की समय सीमा वाले गर्भ का गर्भपात करवाया जा सकता है। 20 सप्ताह से अधिक के गर्भ की समय-सीमा के गर्भपात करवाने के लिए अदालतों से विशेष रूप से आज्ञा लेनी पड़ती है। फिर भी 29 मई 2019 को स्वाति अग्रवाल, गरिमा सेकसरीया और प्राची वत्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 20 सप्ताह की समय सीमा तथा एम. आर. टी. की धारा 3(2)a को भारतीय संविधान की धारा 14 और धारा 21 के समानता के अधिकार के उल्लंघन का आधार बताया।

एम. टी. पी. कानून में प्रस्तावित संशोधन

  1. कुछ विशेष तरह की जन्मजात असामान्यता का पता लगभग 20 सप्ताह बाद ही पता चलता है जो कि जो कि गर्भवती और गर्भ दोनों के लिए जोखिम साबित हो सकते हैं। खुशकिस्मती से 2014 का एम. टी. पी. संशोधन बिल गर्भपात की कानूनी समय-सीमा को 24 सप्ताह की समय सीमा तक बढ़ाना चाहता है। जो कि पहली बार राज्य सभा में पहले और बाद में लोक सभा में प्रस्तुत किया गया। यह उस समय एक आवश्यकता बन गया जब ‘अमित साहनी‘ ने दिल्ली हाई कोर्ट में कानूनी समय-सीमा को 20 सप्ताह से अधिक बढ़ाने की मांग संबंधी एक पी. आई. एल. याचिका दायर की।
  2. संबंधित कर्मचारियों की कमी के कारण दो आर एम पी डॉक्टर से अनुमति लेना भी मुश्किल कार्य बताया गया। तथा संशोधन में सुझाव दिया गया कि ‘रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टीश्नर’ की अनुमति की जगह ‘रजिस्टर्ड मेडिकल हेल्थकेयर प्रोवाइडर’ को रखा जा सकता है।
  3. एम. टी. पी. कानून जहां असफल गर्भनिरोधक के कारण शादीशुदा महिलाओं को गर्भपात करवाने की इजाज़त देता था वहां यह सुविधा कुँवारी लड़कियों को भी प्रदान करने की बात करता है।

1971 के मेडिकल टर्मीनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी कानून में प्रस्तावित संशोधन शायद बताए गये कुछ अवरोधों या कमियों को दूर करने में मदद कर सकें। और शायद औरतों को अपने प्रजनन संबंधी अधिकारों में पूरी आजादी और सुरक्षा मिल सके। जनवरी 2020 के अंत में 2014 के एम. टी. पी. कानून में प्रस्तावित संशोधनों में से कुछ संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया।

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने गर्भपात की तय कानूनी समय-सीमा को अब 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया है परन्तु विशेषतः बलात्कार पीड़िता, शारीरिक रूप से विकलांग महिलाओं या घरेलू व्याभिचार की शिकार औरतों को। पुराने कानून में जहां ये प्रावधान केवल शादीशुदा महिलाओं को था अब वह अधिकार सब जरूरतमंद महिलाओं को भिना किसी भेदभाव के मिल गया था जो चाहे किसी भी तरह की शादी या रिश्ते में बंधी हों या न हों।

अगर गर्भ को किसी भी तरह की विकलांगता का पर्याप्त सबूत है तो यह कानून गर्भधारण की उम्र की समय-सीमा को कोई महत्व नहीं देता। इसलिए यह जच्चा की असमय मृत्यु या ऐसी जटिलताओं जो कि जन्म संबंधी जटिलता का कारण या असुरक्षित गर्भपात का कारण बन सके से दोनों को सुरक्षित करता है। न्यायपालिका इस नये कानून को लागू करवाने या सही क्रियान्वन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

फिर भी यह कानून भारत में सामान्य जनता के स्वास्थ्य संबंधी और अवरोधों को भी इस धारा में शामिल कर सकता है। कुछ को डर है कि शायद यह प्रावधान भारत में कन्या भ्रूण हत्या को और बढ़ावा दे सकता है। यह विस्तार की सीमा केवल बलात्कार पीड़िता, जोखिम भरे गर्भधारण जिसमें भ्रूण को जन्मजात असामान्यता का खतरा हो।

परन्तु इस संबंधी प्रदाता द्वारा निश्चित स्तर पर विवाद हो सकता है। यह हर राज्य के आधार पर विभिन्न हो सकता है।

जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों का भी मानना है कि इससे संबंधी निवेश और साधन कम रहेंगे क्योंकि संबंधित विवरण को इकठ्ठा करना उच्च स्तरीय नहीं हो पाएगा। यह बिल केवल ‘यूजैनिक्स मामलों’ पर ही विचार करेगा। यह महिलाओं के प्रजनन संबंधी अधिकारों में महिलाओं को पूर्ण आजादी और सुरक्षा नहीं देता। विशेषतः यह ‘सिसजेंडर औरतों’ की बात करता है।

व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि औरत को अपने गर्भपात करवाने के फैसले संबंधी पूर्ण आजादी होनी चाहिए। डॉक्टर या परिवार के पास उसे ऐसा न करने के दबाव की शक्ति नहीं होनी चाहिए। नया संशोधन महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है जिसके अधीन गर्भपात किफायती और संभव हो पाएंगे। जो कि सुदृढ़ स्वास्थ्य सुविधा की महत्वपूर्ण कसौटी साबित होगा। 2020 बिल के संशोधन एम. टी. पी. कानून में कानूनी, किफायती और सुरक्षित गर्भपात की पहुँच को सुनिश्चित करते हैं।

महिलाएं सुरक्षित गर्भपात का अधिकार रखतीं हैं और यह सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पर्याप्त मात्रा में डॉक्टरों, तथा बाकी निर्देशित सुविधाओं को सुनिश्चित करे। भारत में भ्रूण हत्या को देखते हुए कुछ सावधानियां भी आवश्यक हैं। इसीलिए भारत में गर्भपात कानून जरूरी है।

मूल चित्र : pixelfusion3D from Getty Images Signature, via Canva Pro

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Kanika G, a physicist by training and a mother of 2 girls, started writing to entertain her older daughter with stories, thus opening the flood gates on a suppressed passion. Today she has written over read more...

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