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अपने अस्तित्व का प्रमाण

बार बार वार करता है उसकी मासूमियत पर कभी गालों पर तो कभी हाथों पर कभी चेहरे पर तो कभी आँखों पर इंसान नहीं सामान समझ वो खुद को समझे भाग्यविधाता।

बार बार वार करता है उसकी मासूमियत पर कभी गालों पर तो कभी हाथों पर कभी चेहरे पर तो कभी आँखों पर इंसान नहीं सामान समझ वो खुद को समझे भाग्यविधाता।

आज फिर से उसकी आँखों में नमी है
आज फिर वो खुद के लिए अजनबी है
प्रतिदिन प्रतिपल मिटा रही थी जिसके लिए
उसको आज तक उसकी फ़िक्र नहीं है।

बार बार वार करता है उसकी मासूमियत पर
कभी गालों पर तो कभी हाथों पर
कभी चेहरे पर तो कभी आँखों पर
इंसान नहीं सामान समझ
वो खुद को समझे भाग्यविधाता।

पहली बार हुआ है पलट वार
हज़ारों बार टूटकर भी जोड़ा था,
खुद को जिसने
आज करते ही उसके पलटवार
दुनिया उसकी हिल जाती है।

आँखों के सामने से उसके अहम की पट्टी हट जाती है
ये अबला नहीं सबला निकली
ये देख उसकी घिग्घी बंध जाती है
एक बार के विरोध से ही
उसको अपने अस्तित्व की असलियत पता चल जाती है।

जिसे समझता था पैर की जूती
उसके इस प्रचंड रूप को देख औक़ात उसे अपनी पता चल जाती है
उसका भी अस्तित्व है ये बात उसे समझ आ जाती है।

कर पलटवार दे प्रमाण उसने अपने अस्तित्व का
दिया हिला उसकी अहम की दुनिया।

मूल चित्र: Pradeep Ranjan via Unsplash

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