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अंजू बॉबी जॉर्ज की एक किडनी की कहानी प्रमाण है इस बात का कि आज भी महिलाओं और उनकी मुश्किलों के बारे में कोई खुलकर बात नहीं करना चाहता।
अंजू बॉबी जॉर्ज की एक किडनी की कहानी प्रमाण है इस बात का कि महिलाओं और उनकी मुश्किलों के बारे में कोई खुलकर बात नहीं करना चाहता।
अनुवाद : सेहल जैन
थोड़े दिन पहले इस देश में ओलंपियन अंजू बॉबी जॉर्ज ने एक ट्वीट में यह बताया था कि वह विश्व में नंबर वन स्थान पर एक किडनी के साथ पहुंची थी।
2003 में भारतीय लॉन्ग जंपर अंजू बॉबी जॉर्ज ने इतिहास रचा और वे एथलेटिक्स चैंपियनशिप में मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला बनीं पर यह जीत उन्हें आसानी से नहीं मिली थी। यह बहुत से रुकावटों के बाद उन्हें प्राप्त हुई थी।
हाल ही में अंजू बॉबी जॉर्ज ने एक ट्वीट में यह बताया है कि 2003 की वर्ल्ड एथलेटिक्स प्रतियोगिता के दौरान उन्हें बहुत सी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था। एक किडनी के चलने के साथ पेन किलर से होने वाली एलर्जी का सामना करते हुए उन्होंने शिखर तक अपना सफर तय किया।
अंजू ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि लोगों को ऐसा लगता है कि उनका शरीर एकदम परफेक्ट है। पर उनका मानना है कि उन्होंने अपने जीवन में सभी सफलताओं को बहुत ही मुश्किलों का सामना करके प्राप्त किया है।
हालांकि अब उन्होंने सभी के साथ अपना अनुभव साझा कर लिया है, लेकिन वे कहती हैं कि एक ऐसा भी समय था जब वह डरी हुई थीं और शर्मिंदा थी कि वह एक ही किडनी पर जी रही हैं। आज आत्मविश्वास से परिपूर्ण होने पर उन्होंने अपनी कहानी सबको बताई है जिससे दूसरों को उनसे प्रेरणा मिल सके।
आज हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां महिलाओं और उनकी मुश्किलों के बारे में कोई खुलकर बात नहीं करना चाहता। ऐसी सारी बातें अक्सर बंद दरवाजों के पीछे होती हैं। इसी कारण लड़कियों और महिलाओं को कम उम्र से ही सुंदरता और जीवनशैली के मापदंडों पर तोला जाता है। जो इन मापदंडों पर खरा नहीं उतरता उसे समाज शर्मिंदगी और डर के अलावा कुछ नहीं देता।
भले ही यह बदलाव धीरे-धीरे हो रहा है पर आजकल स्टिग्मा वाले मुद्दों पर भी खुले में बातचीत होने लगी है। हालांकि हमारी मंजिल अभी दूर है पर यह बदलाव सकारात्मक है। मेगन मार्कल और क्रिसी तेइगे जैसे कलाकारों ने प्रेगनेंसी लॉस जैसे कम बात करी जाने वाले मुद्दों पर बात करने के लिए अपने निशुल्क डिस्कशन पोर्टल खोलें हैं।
अंजू बॉबी जॉर्ज ने अपना अनुभव साझा करके नया आयाम खोला है जिससे लोग यह समझ पाएंगे कि खिलाड़ी, खास कर महिला खिलाड़ी भी इंसान होती हैं। उनमें भी कमियां हो सकती है और फिर भी वह उन कमियों से लड़कर शिखर तक पहुंच सकती हैं। इतना ही नहीं इससे कई युवा लड़कियों को समाज के मापदंडों के विरुद्ध जाकर अपना नाम बनाने का मौका मिलेगा।
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