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आज जो हुआ वो कभी सपने में भी नहीं सोचा था…

लेकिन अब छोटे बेटा-बहु भी अपना हिस्सा माँगने लगे और उनको परेशान करने लगे। एक दिन तंग आकर कमला और रामावतार ने पुलिस को शिकायत कर दी।

लेकिन अब छोटे बेटा-बहु भी अपना हिस्सा माँगने लगे और उनको परेशान करने लगे। एक दिन तंग आकर कमला और रामावतार ने पुलिस को शिकायत कर दी।

“आज तुमने खुद को साबित कर दिया।”

अपने पति के मुख से अपनी तारीफ सुनकर मैं सोच रही हूँ कि आज जो मेरा रूप सबको दिखाई दिया, ऐसी तो मैं कभी नहीं थी। लेकिन, परिस्थितियों ने मुझे ऐसा करने को उकसाया था।  और आज वो हो गया, जो कभी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। अपने अतीत को याद करते हुए कमला गहरी सोच में खो गई।

मैं कमला, जब 17 साल की थी, तब परिवार वालों ने शादी एक सुशील लड़के से कर दी। अपने ससुराल में सास ननद के तानों को सहती रही, लेकिन कभी अपना मुंह नही खोल पाई। और उसका पति, जो फैक्ट्री में काम करता था, उसने दूसरे शहर जाकर काम करने का सोच लिया।

कुछ महीनों के लिए रामावतार अकेला चला गया, यह सोच कर कि एक दिन जब काम जम जाएगा, रहने लायक आमदनी हो जाएगी, तो अपनी पत्नी को भी ले आएगा। हुआ भी ऐसा। इन सब के बीच मैंने एक लड़की को जन्म दिया। सास ने बहुत सुनाया कि बेटी हुई है लेकिन मैंने अपनी बेटी को बहुत प्यार से पाला। फिर एक दिन पति आये थे, मुझे साथ शहर ले जाने के लिए। पहले तो सास ससुर ने आनाकानी की लेकिन ‘जब मियां-बीबी राजी तो क्या करे काजी’, इस कारण मुझे इनके साथ भेजने को तैयार हो गए।

साथ में देने को उनके पास कोई सामान न था। खाली हाथ हमने अपना ससुराल छोड़ दिया। दो साल हुए थे बेटी को कि मैं फिर से माँ बनने वाली थी। इस बार फिर कन्या हुयी। रामावतार अपनी माँ को लेने गया, तो माँ ने कहा, “उसके तो छोरियां ही होती हैं, मैं ना जाऊँगी। तुम खुद ही देखो।”

अब रामावतार ने मेरी और दोनों बेटियों का खूब देखभाल की। और इसके साथ वह अपना काम भी करता। एक महीने की दिक्कतों के बाद अब मैंने भी अपने बच्चों को संभाला। अपनी दोनों बेटियों को लेकर मैं भी काम पर जाने लगी। नए शहर में रहना आसान नहीं था, पग-पग पर मुश्किलें थीं। कभी-कभी तो रात को खाना नहीं मिलता, तो कभी बच्चों के लिए दूध नहीं मिलता लेकिन मैंने अपनी बेटियों को इसकी कमी नहीं आने दी।

अब रामावतार की नौकरी भी पक्की हो गई। अब कुछ बचत भी होने लगी, तो हम दोनों ने मिलकर एक छोटी सा, जमीन का टुकड़ा खरीद लिया। अब मैंने दो लड़कों को जन्म दिया। रामावतार खुश था कि उसके ये दोनों लड़के उसके जीवन का सहारा बनेंगे। चार बच्चों के साथ हमारी गाड़ी धीरे-धीरे चल रही थी। किराये के एक कमरे में छः जान का रहना मुश्किल था, फिर भी सब प्यार से रहते थे।

बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ने भेज दिया गया। अब रामवतार की आय अच्छी होने लगी और उसने अपनी उस जमीन पर छोटा सा मकान भी बना लिया। मैंने भी अपनी सारी जमा पूंजी लगा दी घर बनाने में। खुश थी कि अब किराया नहीं देना होगा, मेरा घर होगा। मैंने भी घर की एक एक ईंट उठाई, काम कराया, तब जाकर बना हमारा मकान।

धीरे-धीरे घर में सुविधाओं के अनुसार सामान भी लाया गया। सब की अलग-अलग जरूरत को पूरा करना, मानो माँ अन्नपूर्णा बन मैंने अपने घर को, बच्चों को पोषित किया। आज बड़ी बेटी की शादी है, मैंने और रामावतार में लड़की को सब कुछ दिया ताकि ससुराल में किसी बात की कोई कमी न हो उन्हें अपनी बेटी के कारण कुछ भी सुनना न पड़े। अब छोटी बेटी ने मेरे साथ काम करना शुरू किया। उसने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली। मेरे बेटे भी अपने हिसाब से काम करने लगे।

समय पंख लगाकर उड़ने लगा मेरी सारी मुराद पूरी होती नजर आने लगी। दूसरी बेटी की बहुत अच्छे से शादी कर दी। दोनों बेटियों को खुश देखकर, मैं भी खुश थी। बेटों ने अपनी पसंद की लड़कियों से शादी करने की सोची तो मैंने और रामवतार ने हामी दे दी।

सब बच्चों की शादी कर अपनी जम्मेदारी पूरी कर दी थी लेकिन मेरे लिए अभी चैन के पल नहीं  आये थे। उसे तो अब अपने बेटों की पत्नियों के सुनना बाकी था। वही हुआ दोनो बहुओं ने अपनी सास को कुछ न समझा। रामावतार भी दुखी रहने लगा। क्या करे कुछ समझ नही आ रहा था।  इसी बीच उनकी बड़ी बहू अपने पति के साथ अलग होकर चली गयी। हमें बहुत दुखा लेकिन अपने मन क्यो समझा दिया कि हम भी तो आये थे अपना घर छोड़कर।

लेकिन अब छोटे बेटा-बहु भी अपना हिस्सा माँगने लगे और उनको परेशान करने लगे। एक दिन तंग आकर मैंने और रामावतार ने पुलिस को शिकायत कर दी। पुलिस आकर हमारे बेटा-बहू को ले गयी और उनको कह गयी कि आप चिंता मत करो ये आपका कुछ नही बिगाड़ सकते यह आपकी जमीन जायदाद है। आप चाहे इसका कुछ भी करो। इस पर सिर्फ आपका अधिकार है।

अब मैंने अपने बेटों को अपना दुर्गा रूप दिखा दिया और कहा, “तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा। आज से तुम भी हमारे कुछ नहीं लगते। जब मैं तुम्हें पाल सकती हूँ, तो तुम्हारा मुँह भी बंद कर सकती हूँ। मैं सिर्फ एक माँ ही नहीं, मैं एक औरत हूँ, मैं दुर्गा भी हूँ और मैं अन्नपूर्णा भी हूँ।

सच है, एक औरत अपने सब रिश्तो को ईमानदारी से निभाती है। प्यार से अपने घर को संवारती हौ लेकिन जब कोई उसका गलत फायदा लेना चाहें तो अन्नपूर्णा जैसी औरत दुर्गा का रूप भी लेती है। मेरी कहानी समाज में महिलाओं की दशा को व्यक्त कर रही है कैसे एक औरत अपने परिवार के लिए जीती है और उसके लिए कुछ भी कर जाती है। वह अपने परिवार की अन्नपूर्णा है तो समय आने पर दुर्गा भी है। अपने परिवार के लिए दुर्गा का हर रूप बसता है, हर  औरत में, चाहे वो गरीब हो या अमीर।  

मूल चित्र : ndphotographer from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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