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तुमने बेटी पैदा की थी, कोई बेटा नहीं…

पूरे नौ महीने नेहा से घर के सारे काम कराए गए। ये कहकर की घर के काम करने से सामान्य डिलीवरी होगी वरना आपरेशन करना होगा।

पूरे नौ महीने नेहा से घर के सारे काम कराए गए। ये कहकर की घर के काम करने से सामान्य डिलीवरी होगी वरना आपरेशन करना होगा।

नेहा कुछ महीनों बाद ससुराल आयी थी। क्योंकि उसकी ननद को बेटा हुआ था, तो मिलने के लिए आना पड़ा। लेकिन यहाँ उसके लिए सिर्फ खट्टी यादें ही थी। सास सुगंधा जी और ननद निशा के दोहरे चरित्र को जब तक वो समझ पातीं, दोनों ने मिलकर उसे खराब बहु और खुद को महान साबित कर लिया था।

नेहा की पहली डिलीवरी ससुराल में हुई। सुगंधा जी ने खुद को दुनिया की नजर में आदर्श सास और बेटे की नजर में आदर्श माँ बनने के लिए नेहा को प्रसव के लिए मायके ना भेजने का निर्णय लिया। लेकिन नेहा की समस्या ये थी कि बिचारी की बात पर कोई यकीन नहीं करने वाला था कि सुगंधा जी जैसी दिखती हैं, दरअसल वैसी हैं नहीं।

पूरे नौ महीने नेहा से घर के सारे काम कराए गए। ये कहकर की घर के काम करने से सामान्य डिलीवरी होगी वरना आपरेशन करना होगा। लेकिन जब डिलीवरी का वक्त आया तो बच्चा आपरेशन से ही हुआ। सुगंधा जी को उम्मीद थी कि नेहा को बेटा ही होगा, क्योंकि खानदान में सभी की पहली संतान बेटा ही है। लेकिन यहाँ भी उनकी उम्मीद से अलग नेहा को बेटी हुई।

अस्पताल में ही उनका रोना-धोना शुरू हो गया। जब भी कोई पूछता, “क्यों रो क्यों रही है। क्या हुआ? पहली संतान लड़का हो या लड़की क्या फर्क पड़ता है?” तो सुगंधा जी कहतीं, “अरे नहीं बहु के ऑपरेशन हुआ। बिचारी के कितना कष्ट हो रहा होगा। ये सोचकर रोना आ रहा है।”

जवाब सुनकर हर आने जाने वाला कहता, “नेहा तूने मोती दान किये होंगे, जो ऐसी सास मिली तुझे।कितना प्यार करती हैं।” नेहा उत्तर में सिर्फ ‘हम्म’ ही कह पाती क्योंकि उसको पता था कि किसी से कुछ कहकर फायदा नहीं। नेहा अपने पति से भी कुछ नहीं कहती क्योंकि उनके भी आंखों पर माँ के प्यार की पट्टी बंधी हुई थी। और बाहर रहते थे तो फोन पर सारी बात सम्भव भी नहीं थी।

अस्पताल से घर आने के बाद नेहा को उसकी बेटी की जिम्मेदारी दे दी गयी। सुगंधा जी कभी भी पोती को ना खिलातीं। बहाना सिर्फ बीमारियों का होता, “मेरा माइग्रेन और कमर दर्द से कुछ  काम नहीं हो पाता।”

नेहा ने एकदिन अपनी सास से कहा, “माँजी कोई मालिश वाली मिल जाती तो अच्छा होता। कुहू (बेटी)की मालिश हो जाती।”

जवाब में सुगंधा जी ने कहा, “अरे! नहीं नेहा लड़कियों की मालिश नहीं कराते वरना शरीर कठोर लड़कों के जैसा हो जाता है। तुम खुद ही धीरे-धीरे हल्के हाथ से किया करो जब मन हो। मुझे तो मालिश आती ही नहीं। मेरे बच्चों की मालिश मेरी माँ यानी तुम्हारी नानी सास ने की थी।”

जवाब सुनकर नेहा चुप हो गयी। शादी को भी सिर्फ एक साल ही पूरा हुआ था लेकिन बेटी के प्रति सबका व्यवहार देख के उसका मन अब सबसे खट्टा हो चुका था। नेहा खुद ही बेटी के सब काम करती। कभी टांकों के दर्द से खुद रोती और आंसू पोछती तो कभी रोती बेटी के। दो वक्त का खाना भी उसको मुश्किल से ढेर सारे व्यंगों के साथ परोसा जाता। जैसे तैसे एक महीने बाद उसको रसोई और घर के कामों की भी जिम्मेदारी दे दी गयी।

तीन महीने बाद जब नेहा के पति अभय घर आये तो नेहा अभय को देखते ना चाहते हुए भी रो पड़ी। अभय नेहा और बेटी को देख हालात समझ चुके थे लेकिन माँ को कुछ बोलकर झगड़ा करने की बजाय चुपचाप नेहा और अपनी बेटी को उस कैद से मुक्त करा कर अपने साथ ले गए।

आज एक बार फिर नेहा की स्मृतियां ताजी हो गयीं और मन खराब। नेहा की ननद मायके ही आयी हुई थी। नेहा ने इस बार जब ससुराल में कदम रखा तो देखा सुगंधा जी नाती का मुँह देखकर किसी नवजवान महिला की तरह एक्टिव थीं। ननद के खाने-पीने से लेकर बच्चे की देखभाल भी खुद ही करतीं।

अगले दिन घर मे सत्यनारायण की पूजा रखी थी। नेहा सुबह सुबह उठ कर तैयारियों में लगी थी कि तभी सुगंधा जी ने आवाज़ लगायी, “नेहा वो तेल का डब्बा देना। मालिश करने के लिए मेरे नाती को।”

नेहा तेल का डब्बा लेकर गयी । उसने कहा, “ये लीजिये माँजी तेल का डब्बा। माँजी लेकिन मालिश वाली तो अभी आयी नहीं।”

“अरे मालिश वाली को क्यों बुलाऊँ भला? उसकी नानी अभी जिंदा है। एकदम फिट है। अपने नाती का मालिश मैं खुद करूँगी। तुझे क्या पता कि मैं कितना अच्छा मालिश करती हूं”, सुगंधा जी ने कहा।

“अच्छा! कहाँ से की माँजी आपने मालिश की क्लासेज और आपका तो माइग्रेन से सिर दर्द और कमरदर्द भी होता है, तो आप कैसे करेंगी?” नेहा ने कहा।

“अरे मुझे कोई क्या सिखाएगा? मैं तो पहले से ही अच्छा मालिश जानती हूँ। अपने बच्चों की भी मैंने खुद ही कि थी। कोई कमर-दर्द, सिर-दर्द नहीं। मुझे ये सब तो लगा ही रहता है। ये सब कोई बीमारी थोड़े ना है। अपने नाती के लिए मैं एकदम फिट हूँ। तुझे नहीं पता तो खुद देखना कि कितनी अच्छी मालिश करती हूं”, सुगंधा जी ने कहा।

“हाँ, माँजी देख ही तो रही हूँ कि आप कितनी खुश और पहले से फुर्तीली हो गयी हैं। नाती के लिए सारी बीमारियां भी फुर्र हो गयीं। और हाँ सही कहा आपने मुझे कहाँ से पता होगा। आपकी मालिश का टैलेंट क्योंकि कुछ महीने पहले तक तो आपको आती ही नहीं थी। काश, कुहू को भी आप ऐसे ही अपना पाती। इसी खुशी के साथ”, नेहा ने कहा।

सुगंधा जी ने कहा, “बेटी पैदा की थी तुमने, बेटा नहीं। बेटा पैदा करना तो फिर उसकी भी ऐसी ही सेवा होगी, समझी?” लेकिन तभी उनकी नजर गोद में बेटी को लिए पीछे खड़े अभय पर गयी। अभय ने दोनों की सारी बातें सुन लीं थीं।

तब अभय ने कहा, “आपकी सोच आपको मुबारक माँ। लेकिन मेरी बेटी की जगह कोई नहीं ले सकता। न आज, न आने वाले समय में।”

“चलो नेहा कपड़े दो, मैं कुहू को नहलाने जा रहा हूं।”

आज सुगंधा जी खुद की नजरों में ही शर्मिंदा थीं क्योंकि उनके महान बनने का ढोंग अभय जान गया था और इस बात की नेहा को तसल्ली थी।

मूल चित्र : Fat Camera from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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