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बिग बॉस के एजाज़ खान ने हाल ही में अपने बचपन में हुए शोषण की बात सबके साथ साझा की और इस बात ने कई लोगों के ज़ख्म किये हरे।
अनुवाद : सेहल जैन
पितृसत्ता के बहुत से पहलु हैं और उनमें से एक है समाज के पुरुषों पर उचित ध्यान न देना। पितृसत्ता के चलते पुरुषों को अभिव्यक्ति और उनकी भावनाओं को दर्शाने की जगह नहीं मिलती। इतना ही नहीं उनके साथ घटी कुछ बहुत बुरी घटनाएँ जैसे योन शोषण आदि को भी सबको बताने का उनको मौका नहीं मिलता।
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार बिग बॉस सीजन 14 के प्रतियोगी एजाज़ खान ने अपने साथ बचपन में हुए योन शोषण की कहानी बताई। बिग बॉस में सभी प्रतियोगियों को अपने सबसे मेहफ़ूज़ राज़ बताकर फाइनलिस्ट बनने से इम्युनिटी प्राप्त करने का मौका टास्क के रूप में दिया था।
हालाँकि ट्रामा की तुलना नहीं की जा सकती परन्तु सभी घरवालों को एजाज़ खान की कहानी ने बहुत विचलित किया और उन्हें इम्युनिटी स्टोन दिया गया। टाइम्स ऑफ़ इंडिया के रिपोर्ट के अनुसार ऐजाज़ खान ने बताया की उनके साथ बचपन में हुए शोषण से उनको किस प्रकार की मानसिक क्षति पहुंची है। एपिसोड के दौरान वह कई बार रो पड़े और उन्होंने यह भी कबूल किया कि शारीरिक टच उन्हें आज भी असहज करता है।
हमारे पुरुषवादी समाज में बचपन से ही लड़कों को अपनी भावनाएँ छुपाने का पथ पढ़ाया जाता है। पुरुषत्व और स्त्रीत्व के दो भेदों के चलते भावनाओं की अभिव्यक्ति को स्त्रीत्व का लक्षण मन जाता है। और पुरुषों को सख्त और आक्रामक होने की सीख दी जाती है।
कोई भी पुरुष अगर इस सब बातों को नहीं मानता है तो उसे ‘मर्द बनने’ की सीख दी जाती है। इसलिए बहुत छोटी उम्र से ही लड़को को अपनी माताओं द्वारा यह सिखाया जाता है कि रोना कमज़ोरी की निशानी है और उन्हें रोना नहीं चाहिए।
बड़े होते होते अधिकतर पुरुष इसी विषाक्त पुरुषत्व को अपना लेते हैं और अपनी भावनाओं को अंदर दबा के रखने लगते हैं और कुछ पुरुष इन भेड़ों को नकारते हैं। इन्ही के कारण पुरुष मदद मांगने से कतराते हैं जब उन्हें इसकी सख्त ज़रुरत होती हैं।
सामाजिक रूप से पुरुष योन शोषण को तुच्छ माना जाता है और उसके शिकार बने पुरुषों को दोष दिया जाता है। ऐसे बहुत से पुरुषों को स्त्रीत्व और गे बोलकर प्रतदित भी किया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि असली मर्द का शोषण नहीं किया जा सकता। इससे पुरुषों को स्त्रीत्व से जोड़ा जाता है और कमतर पुरुष करार दे दिया जाता है।
इससे पुरुष अपने साथ बीती हुई अनहोनी को दूसरों के साथ बाँट नहीं सकते, अपना दर्द साझा नहीं कर सकते और दर्द, गुस्सा और ऐसे ही कुछ अन्य इमोशन अपने अंदर दबा कर रखते हैं। इससे उनकी मानसिक स्थिति और भी ख़राब हो जाती है। पुरुष यौन शोषण को नकारने के कारण शिकार बने पुरुष के मन में एक शर्मिंदगी जगह बना लेती है।
महिला और बाल विकास मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र बाल फण्ड द्वारा 2007 में एक सर्वे किया गया। यह भारत में बाल शोषण को पता लगाने के लिए किया गया था। इस सर्वे से यह पता चला कि 53.22 प्रतिशत बच्चों का किसी न किसी प्रकार से योन शोषण हुआ है और उनमें से 52.94 प्रतिशत लड़के हैं।
पोक्सो अधिनियम 2019 में हाल ही में योन शोषण के अलैंगिक होने को स्वीकार कर संशोधन किया है। परन्तु आईपीसी की धारा 375 के अनुसार रेप अभी भी एक लैंगिक अपराध है जिसमें पुरुषों के रेप का कोई ज़िक्र नहीं है। पुरुषों के प्रति होने वाली लैंगिक हिंसा को सामाजिक और कानूनी रूप से न मानना अपने आप में एक हिंसा है।
मीटू मूवमेंट के कारण लैंगिक हिंसा पर बात होने लगी और बहुत से प्रतिबन्ध हटने लगे। उससे लोगों को अपने अनुभव साझा करने का मौका मिला और अपना दर्द बांटने की जगह मिली। पर इसमें भी पुरुषों के अनुभव को जगह नहीं दी गयी है। तेलगु कॉमेडियन राहुल रामकृष्ण द्वारा बताई अपने बचपन में हुए रेप की कहानी और उसका ट्रामा पुरुषों के बताये हुए अनुभव में से एक है।
रणवीर सिंह ने भी बॉलीवुड के शुरूआती दिनों में होने वाले कास्टिंग काउच के अनुभव के बारे में कहा था। इन सभी से पुरुषों को अपने अनुभवों को बाँटने की हिम्मत मिलती है और इससे एक नेटवर्क बनता है जिससे वह अपने ट्रामा को ख़त्म कर सकते हैं। साथ ही इससे अन्य शोषित पुरुषों को भी तसल्ली मिलती है कि उनका अनुभव वैध है और यह उम्मीद जगती है कि समाज किसी दिन उनके दर्द को समझकर उनके प्रति संवेदनशील होगा।
मूल चित्र : Eijaz Khan, Screenshot from Big Boss
A postgraduate student of Political Science at Presidency University, Kolkata. Describes herself as an intersectional feminist and an avid reader when she's not busy telling people about her cats. Adores walking around and exploring read more...
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