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बॉडी शेमिंग करने वाले ये लोग और उनकी वही पुरानी बातें…

क्या आज भी औरतों के जिस्म का नाप, इस समाज की संकीर्ण सोच की जागीर है? और क्या आप भी इस बॉडी शेमिंग का हिस्सा हैं?

क्या आज भी औरतों के जिस्म का नाप, इस समाज की संकीर्ण सोच की जागीर है? और क्या आप भी इस बॉडी शेमिंग का हिस्सा हैं?

आजकल इंटरनेट के जमाने में शादी योग्य लड़के के लिए, लड़की देखनी हो तो दर्जनों नहीं, हजारों लड़कियों का प्रोफाइल देखने का आंकड़ा तो चुटकियों में पार हो जाता है। परन्तु सब जानकारियों में से आधारभूत जानकारी, जिस पर लड़के और लड़के वालों का ध्यान केंद्रित होता है, वह है छरहरी, कोमल, कमसिन, पतली लड़की।

चाहे देख-दिखाई में लड़की, लड़के को नापसंद कर दे। पर जनाब अपनी कमर की नाप से अधिक केंद्रित लड़की के 36/38 नाप पर होते हैं। जो 38 से अधिक न हो, पर कम चलेगा, क्योंकि शादी के बाद लड़की भर जाएगी तो और मोटी नज़र आएगी। वाह! वाह! और आप जो बचपन से अंकल लग रहे हैं उसकी फिक्र नहीं पर जैसे बॉडी शेमिंग ज़रूरी है।

आह! वाह! की खिचड़ी

शादी के कुछ महीनों बाद जैसे ही घर में खुशखबरी सुनाई देती है तो लड़के के चेहरे पर घुली-मिली मिश्रित मुस्कान होती है कि वाह! पिता बनूंगा! और साथ ही, आह! आनंद की घड़ियां इतनी जल्दी खत्म! अब रसिक मन तरसता, बरसता, खीजता, जलता, बुझता अगरबत्ती सा घूमता है।

कुछ महीनों बाद दोस्त ताना देते हैं, “अरे भई! वो जिससे तुमने शादी की थी, वो भाभी कहाँ है?” तो बस पूछो मत अंदर के जख़्म आँखों में आते ही, मगर फिर संभाल कर दिल की गहराई में रख लिए जाते हैं और कहा जाता है, “ऐसे में तो ऐसे ही सुंदर लगती है, तुम्हारी भाभी!” और यही बॉडी शेमिंग है।

34-40-34 का बचकाना आलाप!

जैसे ही बच्चे का जन्म होता है तो एक-डेढ़ महीने बाद, पति की जुबान से उसके दोस्तों के दिए, खुद के बनाए, पुराने जख्म, उबल-उबल कर, उस नई माँ के दिल को चीर देते हैं। जो पल-पल ताकीद करते हैं, कि

  • ‘अपना ध्यान रखो, क्या हाल बना रखा है?’
  • ‘सीमा नाम है, तो अपने आकार को तो सीमा में रखो!’
  • ‘योगा करो! सैर करो! नहीं तो, सैर सुबह-शाम दो वक्त की कर दो! नहीं तो, खाना दो टाइम का कर दो। नहीं तो, एक टाइम खाना, बाकी फ्रूट,जूस, सप्राउट या सैलेड ही खाओ। सब छोड़ दो।’
  • ‘अपने टार्गेट में, अपनी पुरानी ड्रैस, अपनी आँखों के आगे रखा करो, प्रेरणा मिलेगी!’
  • ‘तुम्हें कहाँ लेकर जाऊं, अपना आप देखा है! कहाँ-कहाँ से चर्बी लटक रही है।’
  • ‘वेस्टर्न ड्रेस को छोड़, सूट पहना करो!’
  • ‘देखो! सूट में भी अनारकली, फ्रॉक सूट मत पहनो।’
  • ‘अरे! ये क्या पहना है, सफेद रंग के सूट में तो और मोटी लग रही हो, काले रंग के इतने पार्टी सूट हैं, वो पहनो ना! किस लिए संभाले हैं।’
  • ‘ओह! कॉमन सेन्स नहीं तो कोई ड्रैस सेन्स ही सीख लो!’

उफ! पर हम में से ना कई, एडजस्ट करने के नाम पर क्षण-क्षण, तिल-तिल मरती हैं। पर मुँह से उफ नहीं करतीं जो कि बॉडी शेमिंग के खिलाफ करना चाहिए। मानव जीवन मिला है, सारी इंद्रियां कायम हैं तो फिर काम में लाएं ना! उनको क्यों गिरवी रखा है। पहले मायके, फिर ससुराल में।

अरे आप पूछो, ना, “वाह! सब तुम्हारी सुविधा से ही होगा? शादी से पहले 34, प्रेग्नेंट पर 36-40 भी कबूल पर फिर वही 34 का आलाप?”

इतिहास की भद्दी-भयावह गवाही

ये आज के समय की बात नहीं, यह सदियों से चला आ रहा है। चाहे औरत किसी राजघराने की हो या गरीब, 16 वीं सदी के भारत की हो या विदेशों की। उनको कैसे दिखाई देना चाहिए, यह वहां के मर्द ही उनको आगाह करते आएं हैं। विदेशों में कोर्सेट का चलन था ताकि कमर पतली दिखे,  खाना कम खाएं ताकि कुछ ख़ास तरह के परिधान में वे जंच सकें। यह सब करते हुए चाहे वे सबके सामने बेहोश होकर गिर जाएं।

वैदिक काल को छोड़, भारत में औरतों के ब्लाउज के नाप का पैमाना, अधिकतर मर्दों की चाहत पर निर्भर रहा है। राजाओं के जमाने में भरी-भरी औरतें परिवार, बच्चों संबंधी सम्पन्नता की प्रतीक मानी जाती थीं।

फिर विदेशों के चलन के अनुगामी बन औरतों के अंगों तक को एक निश्चित पैमाने जिसमें अब उनको छरहरी, कोमल, पतली दिखना था, का चलन निकला। इस आधार पर आदर्श न दिखने वाली के औरत को कुछ विशेषणों द्वारा जैसे कि ‘मुटल्ली’, ‘मोटी’, कह कर सबके सामने उत्तम, मध्यम, निकृष्ट सिद्ध किया जाने लगा। पहले औरतों की मांसल देह जहां सम्पन्नता की प्रतीक थी अब वो आम जीवन में हंसी का पात्र बन गई। और इस तरह बॉडी शेमिंग को बढ़ावा मिल गया।

फिगर फार्मूला और गायिका उमा देवी

अरे! याद नहीं आपको हमारी फिल्मों में फिगर का फार्मूला कभी-कभी एक ही औरत को उमा देवी तो कभी-कभी टुन-टुन के रोल को निश्चित करता था। उमा देवी जो बेहतरीन गायकी के लिए प्रसिद्ध हुईं जिनका मशहूर गाना, ‘अफसाना लिख रही हूँ’ और फिर काया के पलट के साथ-साथ उनके रोल की भी काया उटल-पलट कर रख दी। पर उन्होंने वहाँ भी मर्द जाति को बता दिया कि चाहे जितने मर्ज़ी बड़े हीरो ले लो। पर दर्शक अपनी प्रिय टुन-टुन के लिए दिल खो कर तालियाँ बजाएंगे।

परन्तु फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि उनकी योग्यता के विपरीत उनसे बचकाने हरकतें करवा कर सिद्ध किया जाता था कि हाँ जो घर में मोटी लड़की है वह मानव जाति की नहीं ‘टुन-टुन’ जाति की है। उनकी सारी अदाकारी उनके मोटापे के पीछे छिप जाती थी। पर अगर देखने वाले की नजर हो तो, ट्रेजेडी बचपन से निकलने वाली उमा देवी को बेहतरीन हास्य कलाकार के पद से आज भी कोई डिगा नहीं सका।

खैर पर आम घरों में, अब सबसे बड़ा सवाल कि जिस भी लड़की को अच्छा जीवन, जीवन साथी चाहिए तो पतली तो, होना ही पड़ेगा।

अब औरतों को 34-36 का टार्गेट देना मुश्किल!

मगर इन सब धारणाओं को अपनी जूती के नोंक पर उछालने की हिम्मत रखने वाली, आज बलिष्ठ-आत्मविश्वासी ऐक्ट्रेस विद्या बालन बॉडी शेमिंग जैसे कॉन्सेप्ट को भी गिग्ल करके उड़ा देती हैं। और अपनी शर्तों पर फिल्म इंडस्ट्री को दरवाज़े पर इंतजार करवाने की हिम्मत और योग्यता रखती हैं। और हाँ फरहा ख़ान, भारती सिंह के सामने तो मर्द के दिल को भी दर्द होता है कि अब अपने घर की औरतों को 34-36 के ब्लाउज का टार्गेट कैसे दें।

फैट में भी फैब आपकी मुस्कान!

तो यह आलेख पढ़ने का क्या सारांश निकला? यही कि बॉडी शेमिंग को, और ऐसे लोगों को बाय-बाय कहें और अपनी इच्छा से काला रंग पहनना चाहें तो पहनें। किसी के कहने पर काली साड़ी, काली ड्रेस, काले सूट का बोझ कंधे पर मत रखें। बस एक आत्मविश्वासी स्माइल आपकी सब ड्रेस को और आपको खूबसूरत बन सकती है, बशर्ते कि उसे लोगों की नजरों के पैमाने की गली से दूर रखें।

न जज करें, न एडजस्ट करें, जो टेंशन में ही रहना चाहें उनको वैसे ही छोड़, मन से रेस्ट करें। तो याद रखें कि फैट में भी फैब आपकी मुस्कान है। बस! और कुछ नहीं।

मूल चित्र : Still from the film Tumhari Sulu

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