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कभी इंद्रधनुष सी बैंगनी, कभी सूरज सा पीला रंग, कभी नभ सा आसमानी और कभी डूबते भानु की अरुणिमा के संग। सवाल है, कैसे, क्यों, किसलिए पनप गयी?
किसी पहाड़ी कीतलहटी के किनारेकिसी जंगली सोते केबहते पानी के सहारेया कभी कभी यूँ हीएक बड़े पत्थर के पासपनप जाती है अनदेखी,अनचाही, अनोखीजंगली फुलवारी।
कभी इंद्रधनुष सी बैंगनीकभी सूरज सा पीला रंगकभी नभ सा आसमानीऔर कभी डूबते भानु की अरुणिमा के संगकैसे, क्यों, किसलिए पनप गयीसवाल है मगर मन सोचता भी नहींवो निश्छल, निस्वार्थ जमी फुलवारीछू जाती है मन और आँखों को।
प्रेम भी ऐसे ही तो पनप जाता हैकहीं से भी किसी भी सहारे मेरे मन मेंऔर फिर उस प्रेम फुलवारी के फूलमैं शब्दों में ढाल के लिख लेती हूँतुमसे प्रेम करती हूँ निभा लेती हूँ।
मूल चित्र: Arvind Menon via Unsplash
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