कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
कब होता है दिन, कब ढल जाती है शाम,अब इस बात की भी सुध बुध भी ना रही, हमेशा टिप टॉप रहने वाली मैं भी अब महीनों से पार्लर नहीं गई।
पत्नी बोली पति से, “अजी सुनते हो,काम करते करते मेरे हाथों की नरमी और आँखों की चमक है धुंधलाई,कभी झाडू, कभी पोंछा तो कभी कपड़ों की धुलाई।
इस कोरोना की महामारी ने तो हम औरतों की परेड ही निकाल डाली,वर्क फ्रॉम होम, ऑनलाइन क्लासेस क्या कम थे कि अब बच्चों के प्रोजेक्ट ने ही नींदे उड़ा डाली।
कब होता है दिन, कब ढल जाती है शाम,अब इस बात की भी सुध बुध भी ना रही,हमेशा टिप टॉप रहने वाली मैं भी अब महीनों से पार्लर नहीं गई।”
पति थोड़ा मुस्कुराते हुए बोले,” अरी भाग्यवान!तुझे पार्लर जाने की क्या जरूरत है, तुम तो मेरी पूनम का चाँद हो,बस यूँ ही एक के बाद एक यूँ ही पकवान खिलाती रहो,और मेरे लिए सिंक में बर्तनों का ढेर यूँ ही लगाती रहो, लगाती रहो।”
मूल चित्र : Ashwini Chaudhary via Unsplash
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