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शादी में सुभ्रदा कहती हैं, "मैं अच्छे से जानती हूं इन तलाकशुदा औरतों को, खुद का घर बसता नहीं और दुसरों का घर तोड़ने में लगी रहती हैं।"
शादी में सुभ्रदा कहती हैं, “मैं अच्छे से जानती हूं इन तलाकशुदा औरतों को, खुद का घर बसता नहीं और दुसरों का घर तोड़ने में लगी रहती हैं।”
“आंटी! आप बहुत प्यारी हैं।” लावण्या के गालों पर कीनू किस करते हुए बोला। “दादी तो खाने ही नहीं दे रहीं थीं आइसक्रीम पर आपने मुझे खिला दी।”
तभी सुभद्रा जी (कीनू की दादी) उसे खींचते हुए वहां से ले गईं। “तुझे अक्ल है हर किसी से बातें करने लग जाता है।”
“पर दादी वो तो लावण्या आंटी है। हम तो उन्हें अच्छे से जानते हैं ना फिर क्यूं आप बात नहीं करने दे रहीं।”
“चुप हो जा आजकल हर चीज़ में बहस करने लगा है। तेरी मां को जैसे अक्ल नहीं वैसा तू भी है।” (सुभद्रा जी कीनू को चपत लगाते बोलीं।)
कीनू की रोने की आवाज़ सुन उसकी मां विभा उसे आकर चुप कराने लग गई। “ले जा इसे इसको तो समझ ही नहीं रह गई अच्छे और बुरे लोगों की।”
सुभद्रा जी और उनका परिवार सोसाइटी में रहने वाले अग्रवाल जी की बेटी के विवाह में एकत्र हुआ था और इसी विवाह में लावण्या भी आई थी जोकि इसी सोसाइटी में अकेली रहती है।
लावण्या का अपने पति से एक साल पहले तलाक़ हो चुका है। इसलिए समाज की नज़रों में वो एक तलाकशुदा से ज्यादा और कुछ नहीं।
“क्या हुआ सुभद्रा जी!” मिसेज़ अग्रवाल ने पूछा…
“अब क्या बताऊं मिसेज अग्रवाल, एक गलती तो आप लोगों ने शादी में कर दी।”
“वो क्या?” (मिसेज़ अग्रवाल चौंकते हुए बोलीं)
“अरे! आपने उस लावण्या को क्यूं शादी में निमंत्रण दिया।”
“क्यूं निमंत्रण दिया का मतलब मैं समझी नहीं। वो इसी सोसाइटी में रहती है और काफी अच्छे स्वभाव की भी है। इस शादी में उसने बहुत सहायता करी हमारी।”
“ये सब ढोंग है ढोंग… वो ये सब करके आपके घर में घुस कर आपके बेटे पर डोरे डालना चाहती है। और आप हैं सीधी उसके त्रियाचरित्र को समझ नहीं पा रहीं।” (सुभद्रा जी बोलीं)।
“देखिए सुभद्रा जी आपके मुंह से ये सब बातें शोभा नहीं देतीं। आखिर हम भी औरतें हैं और एक औरत दूसरी औरत की दुश्मन क्यूं हो जाती है। आज तक ये बात मुझे समझ नहीं आ रही।”
“अरे मिसेज अग्रवाल मैं दुश्मन नहीं आपकी हितैषी हूँ… अब देखिए एक तो इस औरत ने अपने पति को छोड़ दिया और तलाक ले लिया।
अरे, जो इंसान अपना घर ना संभाल सका और अपना पति ना संभाल पाई वो आपकी सहायता ऐसे ही कर रही, प्लीज़ रहने दें। इसमें भी उसके कोई गंदे विचार होंगे।
मैं अच्छे से जानती हूं इन तलाकशुदा औरतों को, खुद का घर बसता नहीं और दुसरों का घर तोड़ने में लगी रहती हैं। मैं तो कहती हूं अपने बेटे को संभाल कर रखें।
कल को कोई जादू टोना कर दिया तो हाथ मलती रह जाएंगी। फिर मत कहना समझाया नहीं था।”
“सुभद्रा जी! शर्म आती है मुझे जब आप जैसी सोच वाले लोग मिलते हैं। भगवान ना करता अगर यही सब आपकी बेटी या बेटे के लिए बात होती तो आपको कैसा लगता।
लावण्या भी किसी की बेटी है और तलाकशुदा होने का मतलब ये नहीं की वो चरित्रहीन हो गई। यदि दो लोग एक दूसरे के साथ एडजस्ट नहीं हो पा रहे तो उससे भला अलगाव ही सही।
कल को उसके साथ होने वाले दस तरह के अत्याचारों से तो वो बच गई। सबसे अच्छी बात वो अपने पैरों खड़ी है जहां उसे किसी के कंधों की जरूरत नहीं है। जब हम किसी का साथ नहीं दे सकते सुभद्रा जी तो हमें कौन अधिकार देता है किसी के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने का।
और हां माफ़ करिएगा, मैं आप जैसे पड़ोसियों से मतलब रखने से अच्छा लावण्या जैसी समझदार लड़की से मतलब रखना चाहूंगी जो बेकार की बातों की आग नहीं लगाती घर में। आपसे समझदार तो आपका पोता है, कम से कम उससे कुछ समझदारी सीख लें।”
ये कह कर मिसेज अग्रवाल जैसे ही पीछे मुड़ी लावण्या खड़ी थी। उसने आंखों ही आंखों में मिसेज अग्रवाल को अपना धन्यवाद दिया।
वहीं सुभद्रा जी अपना सा मुंह लिए अपने परिवार को साथ ले मुंह छिपाकर चलती बनीं।
दोस्तों! देखा गया है कि एक तलाकशुदा महिला को लेकर सोसाइटी में तरह-तरह की बातें बोली जाती हैं। उसकी जिंदगी में चल रही चीज़ों के चटखारे लिए जाते हैं। उसके चरित्र का प्रमाणपत्र ऐसे लोग देते हैं जिनका खुद का कोई वजूद नहीं होता। पर जिसके साथ यह सब हुआ कम से कम उनकी भावनाओं की इज्ज़त करें। उसकी मानसिक रूप से सहायता करें। किसी के लिए बिना सोचे समझे ना गलत बोलें और ना सुनें।
मूल चित्र : Screenshot from film, Dolly Kitty Aur Woh Chamakte Sitare
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