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मेरी आँखों की प्रतिलिपि

अधर स्वतंत्र नहीं होते कहने को है तत्पर..बातें रह जाती है छिपी..उंगलियां तो माध्यम मात्र है मेरे अंतर्मन की..शब्द है हृदयलिपि..

अधर स्वतंत्र नहीं होते कहने को है तत्पर, बातें रह जाती है छिपी। उंगलियां तो माध्यम मात्र है मेरे अंतर्मन की शब्द है हृदयलिपि। 

कितनी खामोश कितनी गहरी होती है…
आँखों की लिपि…
आंसुओं को पलकें यूँ समेटे रहती है जैसे…
मोतियों को सीपी…
अधर स्वतंत्र नहीं होते कहने को है तत्पर…
बातें रह जाती है छिपी…
उंगलियां तो माध्यम मात्र है मेरे अंतर्मन की…
शब्द है हृदयलिपि…
खिलखिला के मिलती है मुझसे ही दर्पण में…
कितनी झूठी मेरी प्रतिलिपि…

मूल चित्र :Hassan Wasim via Unsplash 

 


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