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मानवाधिकार सर्वमान्य मूलभूत अधिकार हैं…

मानवाधिकारों की सुरक्षा, पालन और जागरूकता केवल संयुक्त राष्ट्र संघ का कर्तव्य नहीं है ब्लकि हर व्यक्ति, संस्था व समाज की जिम्मेदारी है।

मानवाधिकारों की सुरक्षा, पालन और जागरूकता केवल संयुक्त राष्ट्र संघ का कर्तव्य नहीं है ब्लकि हर व्यक्ति, संस्था व समाज की जिम्मेदारी है।

कोविड-19 महामारी से उत्पन्न परिस्थितियों की वजह से इस साल अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस का थीम थी “फिर से बेहतर- मानव अधिकारों के लिए खड़े हो जाओ।’

हर व्यक्ति अपने आप में महत्वपूर्ण है और किसी प्रयोजन से उसका अस्तित्व है। उस का जीवन में आजादी, बराबरी और सम्मान से रहने और जीने का अधिकार है और यह अधिकार ही मानवाधिकार है, लेकिन सभी अधिकारों के बारे में पूर्णतया नहीं जानते हैं।

हम मानव हैं, मानवता का व्यवहार हम से अपेक्षित है। इन अधिकारों की महत्ता और आवश्यकता को समझने के लिए यह दिन समर्पित है। हम सभी के प्रति न्याय, समानता, सम्मान, स्वतंत्रता, सुरक्षा, शिक्षा और जीने के अधिकार मानवाधिकार के रूप में सर्वमान्य है, अनिवार्य है। यदि इससे कम स्तर पर किसी मनुष्य के प्रति व्यवहार होता है तो वह अमानवीय करार है।

दुनियाभर में इसे हर साल 10 दिसंबर को मनाया जाता है। 1948 में संयुक्त राष्ट्र सामान्य महासभा ने मानव अधिकारों को अपनाने की घोषणा की थी, लेकिन आधिकारिक तौर पर इसकी घोषणा साल 1950 में की गई। मानवाधिकार दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और भेदभाव को रोकना है।

मानवाधिकार वे मूलभूत अधिकार हैं जिनकी वजह से मनुष्य को नस्ल, रंग, जाति, लिंग, भाषा, धर्म, राष्ट्रीयता और अन्य विचारधारा आदि के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता। और ना ही इन्हें देने से भी वंचित किया जा सकता है। इसमें स्वास्थ्य, आर्थिक सामाजिक, और शिक्षा का अधिकार भी शामिल है।

आज कोविड के समय सभी की जीवन शैली पर इसका विपरीत असर हुआ है। नौकरी, शिक्षा, खान पान, स्वास्थ्य और सभी क्षेत्र को इस महामारी के प्रकोप को सहना पडा है। सभी का एक जुट हो जरूरतमंदों के लिए सहायता करना, कोरोना से पीडितों की आर्थिक और सामाजिक सहायता के लिए आगे आना आज बेहतर मानवाधिकार के लिए एकजुटता की आवश्यकता है।

विश्व ने प्रगति तो की है पर नैतिकता के स्तर पर मानव आकाश पर और मानवता पाताल की ओर साबित हो रही है जिससे हमारी सोच संकीर्णता की ओर बढ़ती नजर आ रही है और काम स्वार्थ पूर्ती कर रहे हैं। हमारे काम में नैतिकता का अभाव हमें खोखला कर रहा है साथ ही दूसरों के अधिकारों का हनन भी स्वतः ही करने लगता है। कोरोना के कालांश में मानवता के विभिन्न रूप देखने को मिले परन्तु मनुष्य से बेहतर व्यवहार हमेशा ही अपेक्षित है।

मानवाधिकार अन्याय के प्रति अस्त्र है बशर्ते इन्हें कर्तव्यों के दायरे में अपनाया जाए। प्रत्येक कार्य जो मानवता के उत्थान को समर्पित हो वही मानवता का अहसास है।

वो मनुष्य ही क्या जिसमें मानवीय गुण ही न हो। विश्वभर में विभिन्न देशों में कई एनजीओ, संस्थान, समाज और सरकार द्वारा मानवाधिकारों की सुरक्षा और इनके पालन में यादगार कदम भी उठाएं गए हैं। जिन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित भी किया जाता रहा है।

मानवाधिकारों की सुरक्षा, पालन और जागरूकता केवल संयुक्त राष्ट्र संघ का कर्तव्य नहीं है ब्लकि हर व्यक्ति, संस्था व समाज की जिम्मेदारी है कि वे अमानवीय  कार्यों  के प्रति सजग रहें। साथ ही यदि हम दूसरों के अधिकारों को जानते हुए भी उनके प्रति होने वाले अन्याय को केवल देखते ही रहें तो यह मौन अन्याय से भी ज्यादा घातक हो सकता है, केवल सजगता मात्र  ही नही वरन हम उनके लिए आवाज़ भी उठाये।

मानवाधिकार दिवस हर वर्ष अलग-अलग थीम पर मनाया जाता है। साल 2019 की थीम ‘यूथ स्टेंडिंग अप फोर ह्युमन राइट्स’ है। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि सतत् विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में युवाओं की सहभागिता बेहद आवश्यक है। किसी भी तरह के राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलावों को लाने में युवा ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं। सकारात्मक बदलाव के लिए वे ही हर स्तर पर समर्पित होने वालों में सबसे आगे रहते हैं और एक बेहतर, प्रगतिशील दुनिया के लिए नए विचार और समाधान लाते हैं।

हर साल इस दिन की सार्थकता मानवाधिकारों के प्रति जागरूक रहने और जागरूकता फैलाएं रखने में ही है प्रत्येक, जाति, समाज, वर्ग और आयु के मानव को साथ ले कर चलने में है।
मानवाधिकारों के लिए एक जुटता का आह्वान है और हितकारियों का अन्याय के प्रति मौन कभी मान्य नही।

मूल चित्र : billow926 via Unsplash

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Dr .Pragya kaushik

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