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लोग सुनेंगे तो क्या सोचेंगे मेरे बारे में…

क्या आवाज़ है और रंग-रूप में तो किसी भी नई हीरोइन को मात दे सकती है। चाल तो ऐसी कि इसके आगे अच्छे-अच्छे फेल हो जायें।

क्या आवाज़ है और रंग-रूप में तो किसी भी नई हीरोइन को मात दे सकती है। चाल तो ऐसी कि इसके आगे अच्छे-अच्छे फेल हो जायें।

“मां! क्या हुआ आप रो क्यों रही हैं?” संचित अपनी मां से बोला।

“अरे! मेरे जीवन में रोना ही लिखा है बेटा। तेरे पापा को मुझसे ज्यादा अपनी सौतन से प्यार है। मैं कुछ भी कहूँ जब तक उसके पास जाकर मिल नहीं लेते, इनको चैन नहीं आता”, मालिनी जी गुस्से से बोलीं। 

श्रीवास्तव परिवार में जल्द ही शहनाई बजने वाली है। शरद जी के इकलौते सुपुत्र संचित की शादी होने जा रही है। यूँ तो हर कोने से परिवार में बस खुशियां ही खुशियां छाई हैं। पर शरद जी की सौतन से उनका परिवार परेशान है। 

क्या आवाज़ है और रंग-रूप में तो किसी भी नई हीरोइन को मात दे सकती है। चाल तो ऐसी कि इसके आगे अच्छे-अच्छे फेल हो जायें। आज भी इतने साल में इनके रंग की चमक नहीं। बस शादी का समय आ रहा है तो एक बार फिर से चमकना बनता है। शरद जी ये सोचते-सोचते अपनी प्रिया से बातें कर रहे थे।

“हाय राम! घर के काम छोड़ इस मुई के साथ रंगरलियाँ मना रहे हैं। आग लगे इसे पता नहीं कोई इसे किडनैप क्यूं नहीं करता।

लोगों के सामान गायब होते हैं पर मजाल इसको कोई देखे। यहां घर में आपकी जरूरत है और आप अब मैं क्या कहूं। किससे रोना रोऊँ, कौन मदद करेगा मेरी।”

“अरे मालिनी जी! आहिस्ता बोलें लोग सुनेंगे तो क्या सोचेंगे हमारे बारे में।”

“कौन लोग? अरे मोहल्ले के हर शख्स को तुम्हारे मिज़ाज का पता है कि इस प्रिया को लेकर पगलाए फिरते हो मोहल्ले भर में। नासपीटी ना खुद फटती है ना मुझे…मतलब संभलने देती है। भूली नहीं हूं पिछली बार का दर्द जो इसने दिया था वो जख्म आज भी हरा है। बस मेरे बच्चे की शादी निपट जाए फिर रहना अपनी प्रिया के साथ। मैं चली जाऊंगी मायके। तुम्हें ये खाना पानी देगी, पड़े रहना मैं भी देखती हूँ।” मालिनी जी ने कहा। 

“अरे! भाग्यवान सुनो तो अपने पति से कोई भला ऐसे बात करता है और प्रिया, तुम बुरा मत मानना। चलो बस इस बार मालिनी जी को अच्छे से संभाल लेना। फिर देखना तुमसे सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी।” पतिदेव ने कहा। 

“पापा! आप मम्मी को बाजार लेकर जा रहे ना आज तो उनका पारा हाई है”, संचित बोला।

“अरे देखना मैं और प्रिया कैसे उनका पारा नीचे करेंगे। क्यूं प्रिया?” शरद जी ने प्रिया को प्यार भरी नजरों से देखा।

“पापा! गज़ब कर रहे लास्ट टाइम कैसा बवाल हुआ था भूल गए?”

“अरे! वो पिछली बार की बात थी पर इस बार मैंने प्रिया को अच्छे से सब समझा दिया है। यू जस्ट डोंट वरी…”

“अरे! गुलशन जरा प्रिया मैडम की डेटिंग पेंटिंग अच्छे से कर दे आज इन्हें मालिनी जी के साथ जाना है,”  शरद अपनी स्कूटर प्रिया पर हाथ फेरते हुए बोले। 

“अरे शरद‌ भैया! अब इस कबाड़ में कुछ नहीं रखा। ये तो कूड़े के भाव ना बिके और तुम भाभी को इस पर बिठाओगे?”

“देख गुलशन मुझे गुस्सा ना दिला जो इसे कबाड़ बोला। मेरे दिल में बसती है मेरी जान है प्रिया।”

“ठीक है शरद भैया। थोड़ा समय दो ठीक करते हैं।”

शाम को शरद‌ जी अपनी प्रिया के साथ मालिनी जी को बैठा जैसे ही नुक्कड़ तक पहुंचे ही थे कि धड़ाम की आवाज़ आई।

“हाय! मर गई!” अब तो शरद जी का मुंह देखने लायक था कि पहले किसे उठाए प्रिया को या मालिनी जी को क्योंकि दोनों ही सूरत में शरद जी की शामत थी।

मूल चित्र: FatCamera from Getty Images Signature, via Canva Pro

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