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निखिल का शक निर्मूल नहीं था और एक दिन वही हुआ जिसका उसे अंदेशा था। परन्तु निखिल ने अपनी बुद्धिमत्ता और त्वरित गतिविधियों से रश्मि को बचा लिया।
अतीत में पुरूष वर्ग संबंधित कुछ कटू अनुभवों से रश्मि के मन ने पूर्वाग्रहों के लिजलिजे घावों को पाल रखा था, जिसे न तो उसकी घृणा भरने देती और ना ही उसका दर्द सुखने देता। रश्मि एक स्वाभिमानी और स्वालंबी लड़की थी, जिसे कम उम्र में परिजनों के विछोह और जटिल परिस्थितियों ने बड़ा बना दिया था। जाहिर है अनाथालय में पले बढ़े बच्चे से रिश्तों,परिवारों भावनाओं की संवेदनशीलता की उम्मीद रखना बेमानी है।
रश्मि व्यवहार और विचार में निर्भीक, मुंहफट और रूखी सी थी। सारे साथी ,पड़ोसी और सोसायटी उससे परहेज करते कि ना जाने कब छिछालेदरी कर दें। कहीं ना कहीं वो सबकी कोपभाजक भी थी। पर उसके साथ काम करने वाला निखिल उसमें अपनी कम उम्र में कालग्रसित बहन ढ़ूंढा करता। वही रूप, रंग, चाल, ढाल। वो कई बार स्नेहवश उसके पास गया पर रश्मि के पास सबको हांँकने के लिए एक ही लाठी थी और वो कभी निखिल के ममत्व को महसूस ही नहीं कर पाती। लेकिन निखिल जानता था कि सब लोग उससे खार खाए रहते हैं, कोई भी उससे कभी भी बदला ले सकता है और इसलिए जिस दिन दफ्तर में ज्यादा शाम हो जाती सोसायटी तक उसके पीछे जाता।
निखिल का शक निर्मूल नहीं था और एक दिन वही हुआ जिसका उसे अंदेशा था। परन्तु निखिल ने अपनी बुद्धिमत्ता और त्वरित गतिविधियों से रश्मि को बचा लिया। उसको घर छोड़ जब वो निकलने लगा तो पीछे से रश्मि बोली और उसके कदम जड़वत हो गए। रश्मि ने कहा, “भैया चाय तो पीकर जाओ, एक बार मुझे अपने व्यवहार के लिए माफी तो मांँगने दो। मुझे ऐसा लगता था कोख जाये ही अपने होते हैं, जिसका दुनियां में कोई सगा नहीं उसका कोई देखनेवाला नहीं और मेरा बीता कल मेरी इस सोच को हर बार एक नई चोट से सही सिद्ध करता गया। पर मैं भूल गई, जब इस कलयुग में दुर्योधन और दु:शासन भरे है तो द्रोपदी की रक्षा करने वाला कन्हैया भी जरूर होगा। रोती हुई रश्मि को अपने सीने से लगाते हुए निखिल को लगा उसकी खोयी हुई बहन सुमी वापस मिल गई और एक अनाथ को उसका भैया मिल गया।
मूल चित्र: Ashwini Chaudhary via Unsplash
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