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क्यूँ आप अपनी बेटी में ये नहीं भरते कि वह अपनी आर्थिक आज़ादी का ख्याल हमेशा रखे? समझिये कि लड़कियों की आर्थिक आज़ादी ज़रूरी है।
आए दिन हम पढ़ते हैं तो कभी चर्चा करते हैं कि लड़कियों की आर्थिक आज़ादी पुरुषों की आर्थिक आज़ादी के सामान ज़रूरी है, लेकिन कुछ को छोड़ कर अगर हम देखेंगे तो, ये अभी पूरी तरह से झूठ ही पाएंगे। इसके लिए ज्यादातर एक पुरुष, जो कि ‘पति’ है, उसे ही दोषी ठहराया जाता है लेकिन मैं ये नहीं मानती। क्यूंकि इसके लिए सिर्फ पति ही नहीं एक दूसरा पुरुष जो कि आपके पिता हैं, वो भी दोषी हैं जिन्होंने आपके भविष्य को ध्यान में रखकर शिक्षा नहीं दिलायी। और कहीं ना कहीं और भी कई सारे लोग और आप थोड़ा बहुत आप खुद भी, जो अपने लिए आवाज नहीं उठा पायीं! हो सकता है कि आप में से बहुत से मेरी इस बात से सहमत नहीं होंगे लेकिन एक बार सोचकर देखिए शायद आपका नजरिया भी बदल जाये।
वहीं समाज के कुछ वर्ग को अगर छोड़ दिया जाए, तो आज से 15-20 साल पहले, कितने ऐसे परिवार थे जो लड़की को अच्छी शिक्षा दिलाते थे? या कितने माँ बाप ऐसे थे जिन्हें लड़की की शादी से ज्यादा उनकी पढ़ाई या उनके कैरियर की चिंता होती थी? और तो और कहीं कहीं तो माँ-बाप कहते हैं, जो करना अपने घर जाकर करना। फिर लड़की भी बहुत बार शादी से पहले का जीवन ये सोच कर निकाल देती है कि जब शादी होगी तब मन का करेगी और यही उसका सबसे बड़ा भ्रम होता है। तो क्या यहाँ माँ बाप दोषी नहीं हैं? क्यूँ वो लड़की को इस लायक नहीं बनाते कि दूसरे का ना सही लेकिन समय पड़े तो अपना व्यक्तिगत खर्च तो वह निकाल ही सके। छोटे-छोटे खर्चों के लिए पति के सामने उसे हाथ ना फैलाना पड़े!
हो सकता है आप कहें कि इतनी पुरानी बातें क्यूँ कर रही हो? तो यहाँ मैं कहना चाहूंगी कि जो औरत (आज की बहू) आज अपने आर्थिक स्वतंत्रता के लिए लड़ रही है, या थोड़े पैसों के लिए पति पर निर्भर है, ये वही लड़की (बेटी) है जिसे इतने समय पहले शिक्षा चाहिए थी। और अगर आपने उसे शिक्षा दिलाई तो उसे अपनी आर्थिक आज़ादी बनाये रखने की हिदायत भी आपको ही देनी थी।
आज भी एक पिता बेटी की शिक्षा से ज्यादा उसकी शादी के लिए जोड़ता है और सच कहूं तो कुछ तो लड़की के लिए वो भी नहीं करते हैं और बड़ी शान से कहते हैं जो इसका नसीब होगा पाएगी। जबकि बाद में अगर बेटी परेशान भी हो तो मायके से यह कह कर कि तेरा घर है अब चाहे जैसे रह इतिश्री कर ली जाती है। उनका लड़कियों की आर्थिक आज़ादी से कोई लेना देना नहीं है।
आज एक परिचित के बारे में पता चला जिसका हाल बिल्कुल ऐसा ही है। वैसे मुझे वो बाहर से हमेशा खुश और समृद्ध ही नज़र आती थीं, लेकिन कहते हैं ना अंदर का ज्वालामुखी कभी तो बाहर आता ही है। हर छोटी से छोटी चीज़ के लिए भी कहने से पहले उन्हें सोचना पड़ता है, जब भी उन्हे कोई भी छोटी सी चीज़ भी चाहिए होती है तो उनके पति उनके लिए लाएंगे जरूर लेकिन उसके बाद वो उतना ही सुना भी देते हैं कि ‘इतना खर्च होता है, ये वो जाने क्या क्या?’ और ऐसा भी नहीं है कि उनकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो, ठीक ठाक आमदनी है उनकी। लेकिन पत्नी को जताना नहीं छोड़ते कि वो कुछ नहीं करती, सिर्फ वो कमाते हैं।
ऐसे मामलों में पति बिन हाथ उठाए ही पत्नी को कई बार प्रताड़ित करता है। वैसे तो ये हर दूसरे घर का किस्सा है लेकिन मैंने पाया है कि जो महिलाएं ज्यादा शिक्षित नहीं होती हैं या उनकी शिक्षा ज्यादा प्रोफेशनल नहीं होती उन्हें इस दंश से ज्यादा गुजरना पड़ता है, क्यूंकि देखने में आता है कि उनके पति उन्हें ज्यादा एहसास दिलाते हैं कि वो पूरी तरह उन पर निर्भर है। ऐसे में वो औरत भी अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाती है क्यूंकि सच में उसके पास अपने और अपने बच्चों के लिए जीविका जुटाने का कोई साधन नहीं होता है।
तो ऐसे में कौन जिम्मेदार है? क्या सिर्फ एक पति? या वह पिता भी जिसने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं। लड़की शादी के बाद बाहर जाकर काम करे या ना करे ये उसकी इच्छा है लेकिन जरूरत पड़ने पर कर सके ऐसा बनाने की ज़िम्मेदारी माता पिता की भी होती है। और इस दु:ख को झेलने वाली बहनों, थोड़ा सा फर्ज़ तुम्हारा भी है अपने प्रति। रिश्ते बचाने के लिए समझौते करो, लेकिन इतने भी नहीं की खुद का कोई अस्तित्व ही ना बचे!
थोड़ा संघर्ष तो करना पड़ेगा इसके लिए। सबका खयाल रखती हो लेकिन कभी अपना ख़याल रखना और रखवाना भी तो सीखो! जो पति कहते हैं कि आप कुछ नहीं करती तो जरा एहसास दिलाओ कि आप वो करती हैं जो आदमी भी नहीं कर पाता है! अगर वो जॉब करते हैं तो आप भी होम-मेकर्स हैं। अगर वो 8-10 घंटे काम करते हैं तो आप भी काम करती हैं! अगर वो काम का मानसिक तनाव झेलते हैं तो आप भी घर के बड़े, छोटे और आपके पसंद की हर चीज़ हाजिर करने में मानसिक सुकून खोती हैं।
एहसास दिलाए उन्हें कि आप दिन भर आराम नहीं करतीं बल्कि पूरे दिन चकर घिन्नी की तरह घूम कर सबकी जरूरतों को पूरा करतीं हैं। पति से कहिए आप एक दिन अगर उनका काम करने की कोशिश करे तो क्या वो आपका काम करेंगे? जरा एक दिन वो भी बच्चों के टिफिन बनाकर बच्चों को भेजें, अपने माता पिता के लिए खाना बनाए और आपकी पसंद भी आपके लिए हाज़िर करें। कह सकती हूँ पति देव एक दिन में चक्कर खा कर गिर जाएंगे।
और मेरी बहनों जरा बाहर भी निकलो। अगर आपकी शिक्षा आपका साथ नहीं दे रही है तो अपने टैलेंट को बाहर निकालिए। कुछ ना कुछ टैलेंट सबमें होता है – कढ़ाई, बुनाई, सिलाई, अचार पापड़, खाना बनाना, ब्यूटीशियन, डांस चाहे कुछ भी। थोड़ा ही सही आत्म निर्भर बनिए। जब तक ख़ुद अपना सम्मान नहीं करोगी तो दूसरो से कैसे पाओगी? याद रखिए आप स्त्री हैं और स्त्री भगवान् की अनुपम रचना यूँ नहीं कहलाती हैं।
ये मत सोचिए समय निकल गया है। मत सोचिए आप ज़िन्दगी के किस पड़ाव में हैं, बल्कि सोचिए अभी ज़िन्दगी के कितने पड़ाव है, जिन्हें आप खूबसूरत बना सकती हैं। सच मानिए अगर आपमें आत्म निर्भरता के गुण आ गए, तो पति के ताने चाहे ना बदले लेकिन उनके तरीके जरूर बदल जाएंगे। और जो आपके साथ हुआ वो अपनी बेटी के साथ नहीं होने देना, नहीं तो शायद कल वह भी वहीं सुनेगी जो आप आज सुन रही हैं।
तो आज के माता पिता होने के नाते यह हमारा ही फर्ज़ है कि हम हमारी बेटियों को बहुत महंगी शिक्षा दिलाए या ना दिलाए लेकिन थोड़ी बहुत प्रोफेशनल शिक्षा जरूर दिलाएँ, जिससे समय पड़ने पर वह आत्मनिर्भर बन सकें और ना कमाने के लिए कभी किसी से ताने ना सुनने पड़ें।
मूल चित्र : Deepak Sethi from Getty images, via CanvaPro
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