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अगर, कोई लड़की पहल कर दे तो वो डेस्परेट कहलाती है। और अगर, न करे, तो भाव खाती है। लड़कियाँ दोनों तरफ से फंसी हुई हैं।
इस समाज में एक समय था जब लड़कियों को पर्दे के पीछे, घूंघट या बुर्क़े के अंदर रहना पड़ता था और आज अभी भी नए रूपों में रहना पड़ता हैं। इस समाज की लड़कियाँ प्रेम नहीं साहस करतीं हैं। जब वे प्रेम करतीं हैं तो वो इस पितृसत्ता को चुनौती देतीं हैं। अपने वस्तु होने को नकारते हुए, समाज में अपने अस्तित्व के होने बारे में बताती है।
जब एक पुरुष प्रेम करता है तो उसके सामने वो चुनौतियाँ नहीं होती जो एक लड़की के सामने होती हैं। लड़की को सबसे पहले अपनी इज़्ज़त का ख्याल होता है। इस समाज ने औरतों की योनि में इज़्ज़त बनाकर बुरा काम कर रखा है। उसका ख्याल सबसे पहले एक औरत को होता है।
एक लड़की किसी को अपना दिल यूं ही नहीं दे देती और अपना देह देने से पहले वो लाखों बार सोचती हैं। लड़कियां इसीलिए पहल नहीं करतीं क्योंकि उनके अंदर एक झिझक बैठी है, जो इस समाज ने ही उन पर डाल रखी है। अगर, कोई लड़की पहल कर दे तो वो डेस्परेट कहलाती है। और अगर, न करे, तो भाव खाती है। लड़कियां दोनों तरफ से फंसी हुई है।
इसीलिए, लड़कियां प्रेम नहीं करतीं, साहस करतीं हैं। वो लोग प्रेम करने के लिए बड़ी हिम्मत जुटातीं हैं और समाज से लड़तीं हैं। पितृसत्तात्मक व्यवस्था को ललकारती हुईं, लेबल लगने से न घबराकरतीं हुईं, घर की चार दीवारी और संस्कृति के ढोंग ढकोसले को तोड़तीं हुईं, अपने जिस प्रेमी की ओर आकर्षित होतीं हैं उससे अपने दिल की बात कहती हैं। उसके तरफ बढ़ते हुए, वो साहसी लड़की घबराती नहीं है। समाज द्वारा शर्म के चोगे को बढ़ते कदमों के पांव तले कुचल देती है। वो साहसी लड़की अपनी प्रेम का इज़हार सरे आम कर देती है।
मूल चित्र : PacoRomero from Getty Images Signature, via Canva Pro
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