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अब क्या करें बेटे तो नालायक ही होते हैं…

मैं तो किस्मत वाली हूँ कि मेरी दो बेटियां हैं, जो मेरा ख्याल रखती हैं। तुम्हारा तो बेटा है न, वह भी इकलौता! बेटे तो होते ही नालायक हैं।

मैं तो किस्मत वाली हूँ कि मेरी दो बेटियां हैं, जो मेरा ख्याल रखती हैं। तुम्हारा तो बेटा है न, वह भी इकलौता! बेटे तो होते ही नालायक हैं।

सुषमा ऑफिस से थकी हारी घर की तरफ जा ही रही थी कि उसकी पड़ोसन रेखा उसे मिल गई।सुषमा का मन खट्टा हो गया और मन में बड़बड़ायी ,”फिर से शुरू होगा इसका पुराण।”

सुषमा को देखते ही रेखा बोली, “कितनी थकी हुई लग रही हो, पर घर जाकर भी कहाँ आराम मिलेगा तुम्हें? मैं तो किस्मत वाली हूँ कि मेरी दो बेटियां हैं, जो मेरा ख्याल रखती हैं। तुम्हारा तो बेटा है न, वह भी इकलौता! बेटे तो होते ही नालायक हैं। काम की तो सिर्फ बेटियां ही होती हैं। मेरी पीयू और मीतू तो बेस्ट हैं। अच्छा अब चलती हूँ।”

सुषमा को बहुत गुस्सा आया। ये पहली बार नहीं है जब रेखा उसे ऐसा ताना दे रही थी। उसके पास-पड़ोसियों के बेटों को लेकर उसकी एक ही राय थी, कि बेटे नालायक, कामचोर और खुदगर्ज़ होते हैं। पता नहीं हर लड़के के बारे में वह ऐसा क्यूँ सोचती है। सुषमा घर पहुंची और धम्म से सोफे पर जा बैठी। आज बहुत थक गई थी, ऑफिस में बहुत काम था और सिर में दर्द हो रहा था।

“माँ! पानी लो, मैं थोड़ी देर में चाय बना देता हूँ।” सुषमा का 16 साल का बेटा राघव प्यार से माँ के सिरहाने पानी लेकर खड़ा था। सुषमा को अपने बेटे पर बहुत प्यार आया और उसने कहा, “थैंक्स बेटा।”

अपने बेटे को सुषमा ने बचपन से हर काम सिखाया था। सुषमा के लिए लड़के और लड़की में कोई फर्क नहीं था। शादी के 7 साल बाद उसकी गोद भरी थी, पर उसने कभी अत्यधिक लाड़-प्यार से राघव को बिगड़ने नहीं दिया। घर के काम, लड़कियों का सम्मान और अच्छे संस्कार, उसने अपने राघव को सब दिया था। वह अपने बेटे को एक अच्छा इंसान बनाना चाहती थी।

एक दिन रात के ग्यारह बजे किसी ने दरवाज़े की घंटी बजाई। सुषमा ने सोचा इतनी रात को कौन आया है? दरवाज़ा खोला तो सामने रेखा को पाया। वो बहुत घबराई हुई लग रही थी। बोली, “सुषमा, प्लीज़ मेरी मदद कर दो। मेरे पति दो दिन के लिए बाहर गए हैं और मेरी बड़ी बेटी पीयू बहुत बीमार है। कोई टैक्सी भी नहीं मिल रही। घर पर छोटी बेटी मीतू को अकेले छोड़कर कैसे जाऊं?”

सुषमा बोली, “रेखा तुम चिंता मत करो, मैं तुम्हे और तुम्हारी बड़ी बेटी को अपनी कार में हॉस्पिटल ले चलती हूँ। तब तक राघव मीतू का ख्याल रख लेगा।” रेखा कुछ असमंजस में पड़ गई। सुषमा बोली, “भरोसा रखो, मेरा बेटा ख्याल रख लेगा।”

अगले 3-4 घंटे सुषमा ने रेखा और उसकी बेटी की बहुत देखभाल की। डॉक्टर ने कहा कि अब वे पीयू को घर लेकर जा सकते हैं। सुषमा ने कहा, “चलो रेखा, मेरे घर चलो। मेरे पति भी टूर पर गए हुए हैं। कल दोपहर तक रुक जाओ।” घर पहुंचे तो देखा राघव पढ़ रहा था और रेखा की छोटी बेटी दूसरे कमरे में सो रही थी। दोनों को देखते ही राघव ने पूछा, “अब पीयू की तबीयत कैसी है आंटी? मैंने मीतू को सुला दिया था। वह बिलकुल ठीक है। मैं आप दोनों के लिए चाय बनाकर लाता हूँ। आप दोनों थक गए होंगे।”

रेखा की आँखों में आँसू आ गए। सुषमा की तरफ देखकर बोली, “मैं कितनी गलत थी। मैंने हर लड़के को एक ही जैसा समझा। राघव को देखकर जाना कि परवरिश पर सब कुछ निर्भर है। तुमने और भाई साहब ने राघव की इतनी अच्छी परवरिश की है की क्या कहूँ। कोई भी लड़का या लड़की लायक या नालायक पैदा नहीं होता, उनकी परवरिश उन्हें लायक या नालायक बनाती है। मुझे माफ़ कर देना।”

सुषमा ने रसोई में चाय बनाते हुए राघव को बड़े ही प्यार और गर्व से देखा।

मूल चित्र : Leo Brunett India via YouTube

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Ritwika Roy Mutsuddi

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