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इन 5 महिला प्रधान डॉक्युमेंट्रीज़ ने बदली औरतों के बारे में मेरी सोच…

ये 5 महिला प्रधान डॉक्युमेंट्रीज़ हैं जो चर्चा में कम रहीं लेकिन इनमें समाज में औरतें अपनी व्यथा पर बात होते हुए स्क्रीन पर दिखेंगी।

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ये 5 महिला प्रधान डॉक्युमेंट्रीज़ हैं जो चर्चा में कम रहीं लेकिन इनमें समाज में औरतें अपनी व्यथा पर बात होते हुए स्क्रीन पर दिखेंगी।

हम हमेशा बराबरी की बात करते हैं और हमारे संविधान में बहुत पहले से ही हमें बराबरी का अधिकार मिल चुका भी है। पर हम कहीं न कहीं उस बात को अमल में ला नहीं पाए हैं। उसे जमीनी हकीकत नहीं बना पाए हैं। आखिर वो छोटी-छोटी पर मोटी-मोटी खामियां कहां है? वे हमारे समाज में ही हैं और इस समाज का दर्पण यानि सिनेमा उसे दिखाता है।

आज मैं आपको पांच ऐसी ही समाज को दिखाने वाली महिला प्रधान डॉक्युमेंट्रीज़ के बारे में बताना चाहता हूं, जिन्हें देखने के बाद मुझे जिंदगी में औरतों की स्थिति के बारे में सोचने का नया नज़रिया मिला। इन फिल्मों में एक LGBT+ कम्यूनिटी की भी दास्तां है। प्रेम चाहे किसी भी जेंडर के बीच हो प्रेम प्रेम है। इन डॉक्युमेंट्रीज़ में लड़कियों का बचपन है, उनकी तरह सोचने का नज़रिया, उनका इतिहास है।

ये हैं मेरी पंसदीदा महिला प्रधान डॉक्युमेंट्रीज़ और उनके पीछे की सोच

निर्णय

इसमें पहली डॉक्युमेंट्री है ‘निर्णय’। पुष्पा रावत द्वारा निर्देशित, डॉक्युमेंट्री ‘निर्णय’ साल 2012 में बनी जो कि चेन्नई, दिल्ली, धर्मशाला, लजुबलाना, मदुरै, सैन फ्रांसिस्को, सिक्किम, स्टॉकहोम, तर्दा, त्रिशूर और उदयपुर समेत बीस से अधिक फिल्म समारोहों में प्रदर्शित की गई। यह पुष्पा की यात्रा है जिनमें वह अपने जीवन और अपनी महिला मित्रों की समझ बनाने की कोशिश करती है।

यह डॉक्युमेंट्री लड़कियों के निर्णय पर बात करती है। प्रश्न करती है कि क्या एक लड़की अपने जीवनसाथी का भी चयन भी खुद नहीं कर सकती। साथ ही शादी करना, बच्चे पैदा करना? क्या यही एक स्त्री का जीवन है। क्या इसके आगे कुछ नहीं? ऐसे ही सवाल करती है फिल्म जो हमारी जिंदगी में पहले से ही मौजूद हैं। इस डॉक्युमेंट्री को आप यहां दिये गए लिंक पर जाकर देख सकते हैं।

माय सेक्रेड ग्लास बाउल

प्रिया थुवाससी द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री, ‘माय सेक्रेड ग्लास बाउल’ साल 2013 में बनी। जो कि चार पुरस्कारों की विजेता है। अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक टेलीविजन सम्मेलन, हेलसिंकी में आधिकारिक चयन, और कलकत्ता, चेन्नई, दिल्ली, जयपुर, गुवाहाटी, कोच्चि, मुंबई, पुणे और स्टटगार्ट समेत बीस से अधिक फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया गया।

ये महिला प्रधान डॉक्युमेंट्री कौमार्य (Virginity) और जिंदगी में महिलाओं की पसंद की पड़ताल करती है। समाज ने किस प्रकार से महिला की योनि में समाज की इज्जत बसा रखी है। ये उसका प्रदर्शन करती है। आप इसे PSBT के यूट्यूब चैनल पर जाकर देख सकते हैं।

टू थींक लाइक अ वुमन

अर्पिता सिन्हा द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री, ‘टू थींक लाइक अ वुमन’, शहरी भारत में युवा स्वतंत्र महिलाओं के शांत जीवन में छुपे मौन के बारे में बात करती है। ये बैंग्लोर, चेन्नई, स्टटगार्ट और त्रिशूर में प्रदर्शित की गई। इसमें दिखाया गया है कि कैसे स्कूली जिंदगी में लड़कियों को बांधकर रखा जाता है, बिल्कुल एक कॉन्सनट्रेशन कैंप के जैसे या यूं कहे एक कठपुतली डॉल की तरह।

हमने अब तक दुनिया पुरुषों की नज़र से देखी है। यह फिल्म हमें लड़कियां कैसे दुनिया को देखती है, वो दिखाती है। अब तक हमने आधा सच देखा था। आधा सच यह डॉक्युमेंट्री बताती है। इस महिला प्रधान डॉक्युमेंट्री को आप नीचे दिये लिंक पर जाकर ज़रूर देखें।

इन हर वर्डस : जर्नी ऑफ़ इंडियन वीमेन

एनी जैदी द्वारा निर्देशित डॉक्युमेंट्री,  ‘इन हर वर्डस : जर्नी ऑफ़ इंडियन वीमेन’ 2015 में बनी। जिसमें नारीवादी लेखिकाओं द्वारा रचित साहित्य के माध्यम से भारतीय महिलाओं की ऐतिहासिक और सामाजिक यात्रा के बारे में बताती है। हमने अपनी स्कूली जीवन में जो इतिहास पढ़ा वह आधा सच है। हमने इतिहास में महिलाओं को नहीं देखा। यह डॉक्युमेंट्री उस इतिहास को गढ़ती हुई खुद एक इतिहास बन गई है।

इसका सिएटल, मद्रास, फ्लोरेंस, कंबरलैंड, ताइपे, जोहान्सबर्ग, गोलेमोग, मुंबई और त्रिशूर में कई फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन हो चुका है।

पर्पल स्काईज

श्रीधर रंगायन द्वारा निर्देशित है डॉक्युमेंट्री, ‘पर्पल स्काईज’। ये साल 2014 में समकालीन भारत में LGBT+ लोगों से संवेदनशील बातचीत और जीवन को दिखाती है। उनके प्रेम को भी हम प्रेम की तरह देखते हैं। उनकी कामुकता को समझते हैं। तो यह भारत में उनके संघर्षों की कहानी है। यह कहानी है आर्टिकल 377 के खिलाफ एक लंबी लड़ाई की, जिसे देखा जाना चाहिए।

सैन फ्रांसिस्को, कलकत्ता, सिएटल, शिकागो, उत्तरी केरोलिना, जेनेवा, लाहौर, डबलिन, प्राग, मुंबई, दिल्ली लूज-नापाका, जकार्ता, फ्लोरेंस, सियोल, मॉन्ट्रियल, वाटरलू, बैंग्लोर, ग्लासगो, डरबन में अबतक कई बार स्क्रीन हो चुकी है। आप भी अपनी स्क्रीन पर नीचे दिये लिंक से देख सकते हैं।

मेरा मानना है कि जब आप ये महिला प्रधान शॉर्ट डॉक्युमेंट्रीज़ देखेंगे तो आप भी थोड़ा तो औरतों के नज़रिया को समझ पाएंगे। हाँ, ये कुछ ऐसी दमदार डॉक्युमेंट्रीज़ हैं जो आम जनता के बीच बहुत कम चर्चा में रही लेकिन इनमें बेशक कम समय में औरतें अपनी व्यथा पर बात होते हुए स्क्रीन पर दिखेगी। इनसे आप जुड़ाव महसूस करेंगे और साथ ही नई उम्मीद की किरण मिलेंगी। मेरे लिए तो ये महिला प्रधान डॉक्युमेंट्रीज़ समाज का एक ऐसा आईना लेकर आई जिनसे मैं अनजान सा था। अब मैं एक अलग नज़रिये से नारीवाद को देखता हूँ। तो बताइये, आप इस हफ्तें में देख रहें है ना? 

मूल चित्र : Stills from the above-mentioned documentaries, YouTube

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