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जिन मर्दों की मानसिकता पर पुरुषवाद का नशा सिर चढ़ कर बोलता है, उनके लिए किसी भी लड़की से छेड़खानी, लड़की की गलती से ही होती है।
महज़ मिनी स्कर्ट, नाईट आउटिंग, बाइक राइडिंग और भी न जाने क्या-क्या बहाने बनाते हैं लोग। यहां लोगों से मतलब है पितृसत्ता के मरीज़, जिन पर पुरुषवाद का नशा सिर चढ़ कर बोलता है। उनके लिए किसी भी लड़की से छेड़खानी यहां तक की बलात्कार भी लड़कियों की गलती से ही होता है। और उनके लिए लिपस्टिक और काजल लगाने वाली लड़की भी कैरेक्टर लेस है, मतलब चरित्रहीन!
कितना अजीब लगता है। ज़रूरी नहीं कि लड़की ने छोटे कपड़े, स्कर्ट, शॉर्ट्स, या बाल खोले हुए हैं तो ही उसके छेड़छाड़ का सामना करना पड़ेगा। अगर उसने मेकअप भी किया है, यहां तक कि सिर्फ लिपस्टिक और काजल भी लगाया है, तो भी समाज को पालने वाले लोग उसकी छेड़खानी का ज़िम्मेदार उसको ही ठहरा देंगे। इसमें ताज्जुब की बात भी नहीं होगी कि उसने अगर सूट सलवार में पूरे ढ़के हुए कपड़े पहने हुए हों और अपने बालों को खोल रखा है तो यकीन मानिए इस पितृसत्तात्मक समाज के लिए वो भी आपको निमंत्रण दे रही है। और यही है कुछ मर्दों की मानसिकता।
मेरी नज़र में तो बुर्का पहनना भी कहीं न कहीं कुछ मर्दों को इल्ज़ाम की दावत देता है। लड़कियों को देख कर अकसर उन लड़कों के मन की दशा यही होती है कि ‘काश वो मिल जाए!’ इसके लिए ज़रूरी नहीं की कोई अंग दिख रहा हो। सामने वाले को महज मतलब होता है, बस आप महिला हों। ऐसी सोच रखने वाले लोगों को, खासकर के, कुछ मर्दों की मानसिकता को हमारा समाज हवसी कहता है, कहते हैं वासना के समुद्र में डूबा हुआ है। यकीन मानिये, ऐसा बोलने वाले अगर खुद के गिरेबां में झांक कर देखें तो पता लगेगा कि शायद वे सब भी इसी फेहरिस्त के हिस्सेदार हैं। पितृसत्ता है ही ऐसी।
लेकिन ऐसे मर्दों की मानसिकता को दायरों से ज़रा सा बाहर निकालने की ज़रूरत है। खुद को एडुकेट कीजिए, ताकि आप लड़कियों के शरीर से बाहर आ सकें। आजकल हम घरों में देखते हैं, बचपन से ही लड़कियों के लिए एक दायरा बना दिया जाता है। जब उसकी उम्र 3-4 साल की हो जाती है तो उसके लिए पेरेंट्स सूट- सलवार वाला स्कूल ढूंढने लगते हैं। नर्सरी से ऐसा स्कूल ढूंढते हैं जो सिर्फ गर्ल्स के लिए हो। लड़कियों की स्कर्ट को सलवार बनाने से कोई फायदा नहीं आप बस लड़को के विचार को फिल्टर करें। उनके दिमाग की इस प्रवृति को ठीक करना घर से ही शुरू करना होगा।
वहीं ऐसे हालातों को देख कर न जाने कितनी कामयाबियाँ हमारे देश से मर जाती हैं। कई लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता, लड़कियों को स्कूल भेजने से पेरेंट्स घबराते हैं। या फिर पास का स्कूल चुनते हैं ताकि ड्राइवर और कंडक्टर से बच्ची को बचा सकें। अक्सर सुनाई देता है, बच्ची का अपहरण कर लिया, छोटी बच्ची का बलात्कार कर दिया। इन सब से डर की वजह से कई लड़कियों की ज़िंदगी खराब हो जाती है।
पुरुषों को ठीक करने, या उनकी सोच को बदलने के लिए महिलाओं की ज़रूरत नहीं। पुरुषों को खुद आगे आना होगा। पुरुषों को आंदोलन करना होगा। जिससे लोगों के बीच जागरूकता फैलेगी और समाज में भेदभाव का मज़बूत बीज निकाल फैंक दिया जाएगा। महिलाओं की लिपस्टिक या उनके बुर्के पर नज़र जमाने से अच्छा है अपने जीवन के उन पहलुओं को समझें जो वास्तव में ज़रूरी हैं। एक सुखी और सुलभ जीवन जीने के लिए।
मूल चित्र : Photo by Dibya Bhattacharjee on Unsplash
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