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मैं ना रुकूंगी, मैं ना झुकूँगी

दुनियां का है कैसा ये खेल निराला, कमजोर को सब दबाये, मजबूत के चूमे कदम, दुनियां की ये कैसी अनोखी रीत, है जो बिलकुल बदरंग। 

दुनियां का है कैसा ये खेल निराला, कमजोर को सब दबाये, मजबूत के चूमे कदम, दुनियां की ये कैसी अनोखी रीत, है जो बिलकुल बदरंग। 

माना आज जिंदगी की तराजू में,
मेरा पलड़ा थोड़ा सा कम है,
फिर भी ना थक के हौसला टूटेने दूंगी,
ना डर के ये कदम रुकने दूंगी,
सशक्त बन दिखा दूंगी की मुझमें भी है दम।

दुनियां का है कैसा ये खेल निराला,
कमजोर को सब दबाये,
मजबूत के चूमे कदम,
दुनियां की ये कैसी अनोखी रीत,
है जो बिलकुल बदरंग।

ये सोच बदलने की सोच रखती हूँ,
हाँ, मैं दुनियां को जीतने का भी जोश रखती हूँ।

हाँ ! हूँ मैं आज ज़रा सी कम,
ना आंकना इससे मुझे निर्बल,
ना हौसला टूटने दूंगी,
ना क़दमों को रुकने दूंगी,
सशक्त बन दिखा दूंगी मुझमें भी है दम।

मूल चित्र: Sai Maddali via Unsplash

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