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अब वही होगा जो मैं चाहूंगी…

वह अपनी जिंदगी की मालकिन खुद है कोई और नहीं। त्याग और तपस्या की बलिबेदी पर उसने बहुत कुछ खोया है। अब नहीं!

वह अपनी जिंदगी की मालकिन खुद है कोई और नहीं। त्याग और तपस्या की बलिबेदी पर उसने बहुत कुछ खोया है। अब नहीं!

रमा किचन में काम करते हुए गुनगुना रही थी। समय पर सब काम खत्म हो गया। सब लोगों ने समय पर नाश्ता भी कर लिया। पति राकेश लैपटॉप लेकर औफिस के काम निपटाने बैठ गए और बच्चों को भी पढ़ाई के लिए वह बैठा दी। अब उसके पास कुछ पल सुकून के बचे। वह आराम से बैठकर पिछले सालों की घटनाओं का आकलन करने लगी। वह दूसरे के नजरिए से चलते चलते थक गई थी।

शादी से पहले हर माता पिता अपनी बेटी को इस लायक बनाने में लगे रहते हैं कि ससुराल में उनकी बेटी हर कसौटी पर खरा उतरे। उसे ससुराल में कैसे बात करनी है, कैसे उठना है, कैसे बैठना है, हर सीख दी जाती है। बेटी भी माता पिता का मान बनाए रखने के लिए सब बात मानती है।

ससुराल की देहलीज़ पर पैर रखते ही वह बहू बन कर नयी जिंदगी शुरू करती है। नये लोगों के साथ नये माहौल में खुद को बदलने की हर संभव कोशिश करती है। स्वयं को भूलाकर नये माहौल में ढलती है। फिर भी ताने, उलाहने और लांछन उस पर लगाए जाते हैं। जो उसने कभी किया नहीं, वो भी उस पर थोप दिया जाता है। प्यार और प्रशंसा के लिए तो वह तरस ही जाती है।

उसके बाद एक समय ऐसा आता है कि दूसरे के नजरिए से स्वयं को तौलते हुए वह टूटने लगती है। वह आज की नारी है, टूटती है पर बिखरती नहीं। वह अपना बुरा भला सोच सकती है। इसलिए सबसे पहले वह त्याग करती है, उन बातों का, जिससे दूसरे लोग हर पल उसे बदलने में लगे रहते हैं। वह बहू है, पत्नी है और माँ है तो क्या? वह एक औरत है और एक इंसान है। उसकी भी इच्छा, अनिच्छा है।

हर पल दूसरे के नजरिए से अपनी जिंदगी को नहीं चलने देगी। बस, अब बहुत हो चुका। वह भी अपनी राह स्वयं चुनेगी। उसे गुनगुनाना पसंद है, उसे पढ़ना पसंद है, उसे सजधज कर इठलाना पसंद है। वह सब करेगी। वह अपनी जिंदगी की मालकिन खुद है कोई और नहीं। त्याग और तपस्या की बलिबेदी पर उसने बहुत कुछ खोया है। अब नहीं!

वह भी एक समझदार इंसान है। उसे भी मान और मर्यादा का ख्याल है। ये सब सोच सोच कर ही तो वह आजकल खुश रहने लगी है। मानसिकता बदलते ही माहौल बदल जाता है। वह आज भी बड़ों का आदर करती है। वह अपना हर कर्तव्य बखूबी निभाती है। सिर्फ दूसरे के नजरिए के अनुसार चलना छोड़ दी है। वह जैसा सोचती है, वैसा करती है। वह खुश रहती है।

रमा की मुस्कान में अब उसका आत्मविश्वास छलकता है, बेचारगी नहीं। उसकी खुशी में पति का प्यार है और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का सपना भी। रमा गुनगुनाने लगी और अपने लगाए बगिया के पौधों की सेवा करने चल दी।

सचमुच, बदल गयी है न वो। रोती नहीं है, अफसोस नहीं करती है। मुस्कुराती हुई घर में प्यार से गृहस्थी संवारती रहती है वो।

मूल चित्र : Photo by rvimages from Getty Images Signature, via Canva Pro

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