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पावा कढ़ईगल मतलब है ‘पाप कथाएं’, जिसे आज भी औरत जीती है!

महिलाओं के शरीर और दिमाग पर हिंसा की मानवविज्ञानी व्याख्या को पावा कढ़ईगल सटीक तरीके से कहानी और फिल्मांकन के माध्यम से कहने में सफल होती है।

महिलाओं के शरीर और दिमाग पर हिंसा की मानवविज्ञानी व्याख्या को पावा कढ़ईगल सटीक तरीके से कहानी और फिल्मांकन के माध्यम से कहने में सफल होती है।

विमन एंड किंगशिप लीला दुबे की प्रसिद्ध किताब है। लीला दुबे प्रसिद्ध मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री रही हैं। विमन एंड किंगशिप किताब उन्होंने एन्थ्रोपालिजिकल नजरिये से भारत के अधिकांश भाग में महिलाओं के बीच उनके जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव का अध्ययन करके लिखा।

लीला दुबे अपने अध्ययन में इस निष्कर्ष पर पहुंचीं कि महिलाओं का शरीर परिवार, समाज और समुदाय के लिए सम्मान का विषय से जुड़ा है, इसको वो अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं। इसलिए वे महिलाओं के ऊपर नियंत्रण रखने के लिए कई तरह के नियम-कायदे बनाते हैं। इस सम्मान के संभाल कर रखने के लिए वह शर्म, पाप और विश्वासघात जैसी भावों की परवाह नहीं करते है।

इस विषय को निर्देशक सुधा कोंगारा, गौतम मेनन, विग्रेश शिवम और वेत्रिमरण ने चार छोटी कहानियों के माध्यम से नेटफिलिक्स पर  रिलीज हुई अन्थोलॉजी पावा कढ़ईगल में कहने की कोशिश की है। पावा कढ़ईगल का मतलब होता है पाप कथाएं।

चारों कहानियां प्रेम, गर्व और सम्मान से निपटती हैं और बताती हैं कि वो प्यार के जटिल संबंधों को कैसे प्रभावित करती हैं? फिल्म के माध्यम से दिखाने की यह दक्षिण भारत की नेटफिलिक्स इंडिया की पहली कोशिश है। यह अन्थोलॉजी दक्षिण भारतीयों को कितना पसंद आती है इसका जवाब मिलना अभी बाकी है।

पहली कहानी थंगम (मेरा अनमोल) है जिसे सुधा कोंगार ने कही है। यह एक ट्रांसजेडर की कहानी है जो यह जानता है कि वह इतरलिंग है और वह इस सच्चाई के साथ जीना सीख चुका है। वह अपने परिवार-समाज में मजाक और घृणा का पात्र है पर वह अपने बचपन के दोस्त के साथ प्रेम करता है। उसके साथ वह अपना बाकी जीवन जी सके इसलिए सेक्स चेंज कराने के लिए पैसा जमा कर रहा है। उसका बचपन का दोस्त उसकी बहन से प्रेम करता है तब वह अपने दोस्त और बहन के प्रेम के लिए विकल्प का चयन करता है। आगे बहुत कुछ होता है जो अपने साथ सवाल छोड़ता है। क्यों इतरलिंगी लोगों के लिए समाज में कोई विकल्प नहीं है? कालिदास, जयराम, शांतनु भाग्यराज और भवानी श्री सभी ने अपने-अपने हिस्से के अभिनय मे काफी प्रभावित किया है।

दूसरी कहानी प्यार पन्ना उत्तरानुम (उन्हें प्यार करने दो) में जिसका निर्देशन विग्रनेश शिवम ने किया है। कल्कि कोचलिन इस कहानी का मुख्य आकर्षण है। ये कहानी जाति की राजनीति के बारे में है जिसमें समामलिंगी प्रेम अचानक से आता है और अपनी बात कह जाता है। कहानी में एक पिता जो अपने समुदाय में काफी सम्मानित है कि वह जाति को नहीं मानता है और अंतरजातिय प्रेम विवाह करवाता है। परंतु, जब बात अपनी जुड़वाँ बेटियों की हो तो? वह अपनी जुड़वा बेटियों के प्रेम को मंजूरी नहीं देता है। आगे क्या होता ये ये आप जान चुके होंगे।

तीसरी कहानी वाङ्मगल (Vaanmagal डॉटर ऑफ़ द स्काईज़) गौतम मेनन  ने एक माता-पिता और उसके बच्चों की कहानी कही है जो एक घटना के बाद, उसका परिवार के सदस्यों पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है को दिखाती है?  कहानी में  बड़ी बेटी के महावारी के शुरुआत होने पर घर में हुए उत्सव को देखकर छोटी बहन बहुत उत्साहित है कि उसके साथ यह सब कब होगा? मां, बड़ी बेटी को महावारी के शुरुआत होने पर बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में सचेत करती है। पर अनहोनी उसकी छोटी बेटी के साथ हो जाती है। पिता और मां दोनों को पता है उसकी बेटी के साथ क्या हुआ होगा? लेकिन वह अपनी बेटी से बात ही नहीं कर पा रहे हैं। कहानी अपने अंत में जिस चरमोत्कर्ष पर ले जाकर एक मोड़ लेती है वह एक साथ कई सवाल उठाती है। सिमरन ने मां की भूमिका में काफी प्रभावित किया है।

अंतिम कहानी ऊर इरावु (वह रात) वेत्रिमरण ने कही है जिसके मुख्य आकर्षण प्रकाश राज और साई पल्लवी है, जो पिता और बेटी के संबंधो में विश्वास की खोज की तरह है। प्रकाश राज समाज में एक प्रतिष्ठित  परिवार से है। उनकी बेटी अपनी इच्छा से अंतरजातीय शादी करके अपने पति के साथ खुश है और मां बनने वाली है। पिता अपनी गर्भवती बेटी साई पल्लवी को गोद भराई के लिए अपने घर वापस बुलाने के लिए कामयाब हो जाते हैं। लेकिन आगे पिता अपने सम्मान की रक्षा करने के लिए और जातिगत गौरव को बनाए रखने के लिए जो  बदसूरत चेहरा जब सामने लाता है तो रूह कांप जाती है। प्रकाश राज और साई पल्लवी अपने प्रदर्शन को सपाट और यथार्थवादी बना दिया जो कमाल का है।

चारों कहानी देखने के बाद यहीं लगता है कि सब में समाज में मौजूद हिंसा को अलग-अलग तरीके से कहने की कोशिश की गई है। महिलाओं के शरीर और दिमाग पर क्रूर हक आखिर कब तक चलेगा और कितने ही पर्दों में छिपा रहेगा। महिलाओं के शरीर और दिमाग पर हिंसा की मानवविज्ञानी व्याख्या को पावा कढ़ईगल सटीक तरीके से कहानी और फिल्मांकन के माध्यम से कहने में सफल होती है।

मूल चित्र : YouTube 

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