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लेकिन राधा ने भी मना कर दिया और वह बेचारी चलते-चलते निढाल होकर , किसी की गाड़ी के आगे आते आते बची।
“अरे !!तुम लोगों ने यह धंधा बना लिया है मांगने का कहां बाढ़ आ रही है???यहां तो कहीं बारिश की बूंदे भी नहीं। “गुस्सा होकर राधा ने उस औरत को भगा दिया और घरवालों से जाकर कहने लगी, कि “देखना कहीं ना कहीं से आ जाते हैं परेशान करने। कह रही है कि बाढ़ में घर बह गया। हम क्या करें ? वहां से यहां तक कैसे आ गए मांगने के लिए ? कुछ काम करो सरकार इतनी मदद कर रही है पर इन लोगों को मांग कर चैन पड़ता है। “इसके बाद वह अपने काम में लग गई। शाम को न्यूज़ में देखा कि बाढ़ से कई घर तबाह हो गए। अब उसे अपने किये पर पछतावा हुआ कि कुछ मदद तो वह कर सकती थी। लेकिन अब वह क्या कर सकती है क्योंकि वह बुढ़िया तो सुबह ही चली गई थी।
उधर बुढ़िया बहुत परेशान थी भरा पूरा घर था फिर चाहे झोपड़ी ही क्यों न थी। लेकिन जब बाढ़ में बह गई तो उसका आशियाना लुट गया। उसको मांगने में भी बहुत शर्म आती थी, लेकिन उम्र इतनी थी कि अभी कोई काम नहीं कर सकती थी। इसलिए राधा के घर एक वक्त का खाना मांगने गई जिससे थोड़ा और चल कर सरकार से मदद मांग सके। लेकिन राधा ने भी मना कर दिया और वह बेचारी चलते-चलते निढाल होकर , किसी की गाड़ी के आगे आते आते बची। गाड़ी में से एक सभ्य आदमी उतरे उन्होंने उसको उठाया और जो थोड़ी बहुत चोट लगी थी उसके लिए हॉस्पिटल में इलाज कराया और उसको कुछ खाने के लिए पैसे देने लगे। लेकिन उसने मना कर दिया और बोली, “नहीं साहब आपने इतनी मदद की वही बहुत है। हमारा भी अपना एक घरौंदा होता था लेकिन बाढ़ के कारण बह गया नहीं तो आज हम भी अपने बच्चों और परिवार के साथ आराम से रहते। सड़कों पर दर-दर की ठोकरे ना खाते।” वह सरकारी अफसर थे उन्होंने बुढ़िया की हर हाल में मदद की और उनको राहत शिविर तक पहुंचा दिया और आगे भी उनकी मदद करने की कोशिश जारी रखी। बुढ़िया उनको दुआएं देते नहीं थक रही थी। उधर राधा को पश्चाताप हो रहा था कि काश उसने समय पर रहते बुढ़िया की मदद की होती और काश समय वापस आ जाए और वह उसकी मदद कर सके। इसीलिए अब राहत शिविरों में कुछ धनराशि भिजवा रही है|
मूल चित्र: ElCarito via Unsplash
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