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पौरूषपुर में कहानी को कहने के लिए जिस भव्यता, प्यार वासना और अय्याशी का सहारा लिया है, वह दर्शकों का ध्यान आने देगी इसमें संदेह है।
साल के अंतिम दिनों में अपने ऊपर इंटिमेट सीन्स की भरमार की तोहमत लेते हुए, एकता कपूर की बेव सीरीज पौरुषपुर zee5 पर रिलीज हुई। पौरूषपुर के टेलर रिलीज होते ही यह सवाल अपनी जगह बनने लगा था कि मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता के प्रदर्शन का एक जरिया बनता जा रहा है ओटीटी प्लेटफार्म? भारतीय दर्शक इस तरह की नग्नता को कभी पसंद नहीं करेगे? यह भारतीय संस्कृत्ति के खिलाफ है। इस तरह की सीरीज एक देश के रूप में भारत और उसकी संस्कृत्ति की गलत छवि पेश किया जा रहा है और कई ब्ला-ब्ला…
इन सवाल के साथ-साथ एक आरोप यह भी था कि पौरूषपुर के एक चरित्र बोरिस जो ट्रांसजेडर व्यक्ति है का रोल मिलिंद सोमन कर रहे हैं। क्या ट्रांसजेंडर चरित्र को निभाने के लिए ट्रांसजेंडर आर्टिस्ट को मौका नहीं मिलना चाहिए? जिससे न केवल वह अपने अभिनय काबिलियत को दिखा सके, कितने ही ट्रांसजेंडर के लिए एक मिसाल भी बन सके। मनोरंजन उद्योग को इस सवाल पर विचार करना चाहिए कि वह ट्रांसजेंडर चरित्र का अभिनय ट्रांसजेंडर आर्टिस्ट से ही कराए। यह कदम समाज के एक उपेक्षित समुदाय के लिए नये जीवन के हजारों-लाखों रास्ते खोल देगा।
एकता कपूर ने पौरूषपुर की कहानी कहने के लिए निर्देशन का जिम्मा सचीद्रं वत्स को दिया है। जिन्होंने अपनी कहानी कमोबेश आधे घंटे के सात एपीसोड में कहने की कोशिश की है। 16वीं सदी की एक पीरियड कहानी को कहने के लिए जिस भव्यता, प्यार वासना और अय्याशी का सहारा लिया है, वह कहानी के मूल पर दर्शकों का ध्यान आने देगी इसमें संदेह है।
कहानी राजा भद्रप्रताप सिंह (अन्नू कपूर) के अय्याशी के इर्द-गिर्द नाचती है जो अपनी काम वासना को तृप्त करने के लिए शादियां करता है पर एक-एक करके उसकी चार रानियां गायब हो चुकी है। भद्रप्रताप अपनी काम वासना के लिए शादियां करता है पर महिलाओं के यौनिकता को नियंत्रित करने के लिए कठोर कानून का सहारा लेता है जिसका दंश अतंत: महिलाओं को ही झेलना पड़ता है।
इस दंश के खिलाफ जो पौरूषपुर में महिलाओं को केवल मनोरंजन का वस्तु मानता है रानी मीरवती (शिल्पा शिंदे), बोरिस (मिलिंद सोमन) के साथ मिलकर राजा के खिलाफ एक मोर्चा खोलती है। रानी मीरवती इसमें सफल होती है या नहीं? राजा भद्रप्रताप सिंह कि चारों रानियां कहां गायब हो जाती है, वह जीवित रहती है या नहीं? बोरिस क्या केवल राज्य के महिलाओं के हक और न्याय के लिए रानी मीरवती का साथ देता है? इन सारी सवालों का जवाब के लिए पौरूषपुर देखना होगा। पूरी कहानी में सूत्रधार जिसकी आवाज़ केवल बैकगाउंड में बीच-बीच में आती है उसके अनुसार पौरूषपुर प्रेम और प्रतिरोध की कहानी है।
अन्नू कपूर, मिलिंद सोमन, शिल्पा शिंदे, शाहीर शेख, अनंत वी जोशी और पौमली दास जैसे दमदार एक्टर्स से सजी यह वेब सीरीज अपनी भव्यता, दमदार सेट्स के बाद राजा के अय्याश छवि को स्थापित करने की कोशिश अधिक करती है। यही बात कहानी के अन्य पात्रों की अपनी मह्त्वकांक्षा को स्थापित करने में दिखती है जो कहानी को बोझिल और ऊबाई बना देती है।
कभी-कभी यह भी लगता है कि निर्देशक ने कुछ बोल्डनेस और हॉटनेस को अधिक ही भाव दे दिया है इसके बिना भी कहानी कही जा सकती थी। जहां तक अभिनय का सवाल है अन्नू कपूर और मिलिंद सोमन अपने अभिनय से कम प्रभावित करते है उनमें इससे बेहतर करने की क्षमता है। शिल्पा शिंदे और पौमली दास का अभिनय प्रभाव तो छोड़ती है खासकर अभिनय अपने अंदर यह अंदर टोन लेकर चलती है कि महिलाओं को अगर अपना स्वाभिमान पाना है तो उसकी लड़ाई खुद लड़नी होगी, कोई मसीहा या देवता उसके लिए कहीं से नहीं आएगा। अन्य कलाकारों पर कहानी में फ्रेम जरूर खर्च किया गया पर न ही वह प्रभावित करते है न ही उनका अभिनय।
कहानी का मूल विषय, कहानी को प्रस्तुत करने वाली भव्यता, अभिनय की नाटकीयता और फिजूल का अश्लील प्रदर्शन से संघर्ष करने लगती है और अचानक से मूल कहानी धमक पड़ती है। पूरी कहानी अपने साथ-साथ जेंडर अस्मिता के सवाल भी पूछती है।
भारतीय समाज में समय 16वीं सदी हो या आज का महिलाओं का हर सवाल लैंगिक असमनता से जुड़ा हुआ है उसमें ट्रांसजेंडर के सवाल भी शामिल है। आंदोलन-संघर्ष के दौरान स्त्री चेतना का सवाल जेंडर चेतना से आगे निकल गया है और लैंगिक चेतना के सवाल के साथ ट्रांसजेंडर चेतना के प्रति संवेदनशीलता पीछे छुट गई।
स्त्री चेतना कभी भी अपने लिए स्वतंत्रता और समानता का निमार्ण लैंगिक चेतना के दमन से नहीं कर सकती है। ट्रांसजेंडर समुदाय को जब भारतीय न्याय व्यवस्था से समतामूलक अधिकार प्राप्त हो चुके है उनके इतिहास, वर्तमान और भविष्य की कहानी बुनने या कहने में बहुत अधिक संवेदनशील होने की जरूरत है।
यह कहने की जरूरत नहीं है कि मनोरंजन उधोग ट्रांसजेडर विषयों का दोहन सिर्फ मानवीय संवेदनाओं को झकझोर कर मुनाफा बटोरने में कर रही है। इससे ट्रांसजेंडर समुदाय के हकीकत की कोई तस्वीर नहीं बदल रही है। ट्रांसजेंडर विषयों को अपनी कहानी का हिस्सा बनाने के पहले मनोरंजन उधोग को इस समुदाय के इतिहास, संस्कृत्ति और महत्वकांक्षा को समझना अधिक जरूरी है।
मनोरंजन के माध्यम से ही अगर समाज को संवेदनशील करना है तो उसके लिए हर अस्मिता या चेतानाओं के प्रति मौलिक नज़रिये प्रति अधिक गंभीर और वस्तुनिष्ठ होने की आवश्यकता है। इसके अभाव में संवेदनाओं का भौड़ा प्रदर्शन बनकर रह जाएगी और कुछ नहीं।
मूल चित्र : Screenshots from Trailer, Paurashpur
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