कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
आंसू जैसे सूख गए हैं। न्याय का तो दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं। बस सब कुछ जैसे समाचार बनके रह गया है जिसे सिर्फ एक कान से सुनना है और दूसरे कान से निकाल देना है।
कुछ दिनों से चुप रहना अच्छा लग रहा है। इसलिए नहीं कि मैं सोच समझ के चुप रहना चाहती हूँ पर इसलिए कि अब बोलने के लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं है। हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि मानों अन्दर से जो पहले तक टीस भी निकलती थी वो टीस भी अब मर चुकी है। पहले कभी जब किसी पे किए गये अत्याचार के बारे में सुनते थे तो जो बस में होता था वह करते थे। रोते थे, प्रार्थना करते थे और उम्मीद करते थे कि आज नहीं तो कल न्याय होगा।
आज कल वक्त काफी बदल गया है। आंसू जैसे सूख गए हैं। न्याय का तो दूर-दूर तक कोई अता पता नहीं। बस सब कुछ जैसे समाचार बनके रह गया है जिसे सिर्फ एक कान से सुनना है और दूसरे कान से निकाल देना है। शायद इन्हीं दिनों के लिए दो कानों का महत्व बताया गया था।
हाँ, एक चीज़ जो नहीं बदली है वो है प्रार्थना।एक वहीं है जिसे करते हुए यह विश्वास आता है कि हम अभी भी जिंदा हैं। नहीं तो जैसे बदलाव हम अपने में महसूस करते हैं वह मरे हुए होने से कम नहीं है। अब यह प्रार्थनाएं ही हैं जो बदलाव ला सकतीं हैं , जो हमें वापस एक इंसान बना सकती हैं। नहीं तो जीते जी मर तो हम बहुत पहले गये थे।
मूल चित्र :Diana Simumpande via Unsplash
Ruchi is a new person who has dared to break all walls of monotony in life, a dreamer, a learner and likes to derive inspiration in all situations she is into. Recently plunged into a read more...
Please enter your email address