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सारे ताने सुनते हुए वो बड़ी होती गयी और आगे बढ़ती गयी ये सारे ताने उसे और मजबूत करते गए। देखते देखते उसने अपनी स्कूलिंग पूरी कर ली।
“ओह! कृष्णा लड़की हुई है। थोड़ी सांवली है।”
ये सुनते ही बबलू को एक झटका सा लग गया, ‘कृष्णा, क्या बोला?’
राधा और कृष्णा का ये दूसरा बच्चा था। उनका पहला बच्चा स्वस्थ नहीं था, इस लिए उन्होंने दूसरा बच्चा प्लान किया। उनकी दूसरी बच्ची इतनी लकी थी कि उसके आते ही उनके पहले बच्चे का स्वस्थ भी सुधरने लगा था और इस बात से राधा और कृष्णा दोनों बहुत खुश थे। पर सांवली बच्ची का दर्द उनको अन्दर से कचोट रहा था। पर वक़्त के साथ सब नार्मल होने लगा। कृष्णा और राधा भी उस बच्ची को अपनाने लगे और उन लोगों ने उसका नाम सलोनी रखा। पर सलोनी को जनम लेने से लेकर जिंदगी के हर मोड़ पर एक ही ताना सुनना पड़ा “एक तो लड़की ऊपर से सांवली क्या करेगी तू”
कोई उसको सुझाव देता “उबटन लगाओ”, “ओलिव आयल लगाओ”, “कोई कहता हलके रंग के कपड़े पहनो” इस तरह के न जाने कितने सुझाव उसको आते, पर वो थी कि किसी की सुनती नहीं। वो बचपन से ही महत्वकांक्षी ,विश्वासी ,आशावादी और साहसिक थी। वो कहते है न जिसको ऊपर वाला कुछ कम देता है उसमें कुछ न कुछ करने की क़ाबलियत देता है। वो थी अपनी सलोनी दुनिया से अलग “छोटे से शहर के बड़ी सोच रखने वाली सलोनी।
सारे ताने सुनते हुए वो बड़ी होती गयी और आगे बढ़ती गयी ये सारे ताने उसे और मजबूत करते गए। देखते देखते उसने अपनी स्कूलिंग पूरी कर ली और स्कूल मे हर चीज़ मे अव्वल रहने वाली सलोनी आज अपनी बाहरवीं मे टॉप किया। जब उसने टॉप किया तो सब से पहले उसके पापा ने जाकर पूरे मोहल्ले मे बताते हैं कि मेरी बेटी ने टॉप किया और मिठाई बटवाते है, तो सलोनी बहुत खुश होती है और उसे लगता है कि उसके पापा उसे बहुत प्यार करते है और उसके क़ाबलियत पर भरोसा करते है। ये सोच सोच कर वो बहुत खुश हो रही थी, अब उसको आगे पढ़ने का मौका मिलेगा।
ये सोच कर उसने अपने पापा को बोला कि मुझे बहार शहर जाकर बी.टेक करना है पर ये सुन कर उसके पापा को बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने कहा “नहीं! मुझे जितना पढ़ाना था तुम्हे पढ़ा दिया अब मेरे पास तुम्हे पढ़ाने के लिए पैसा नहीं है। मुझे अपने बेटे को भी पढ़ाना है और उसे डॉक्टर बनाना है। तुम्हारा क्या, तुम तो कल को अपने ससुराल चली जाओगी और उन्हें कमा कर दोगी। तुम्हारी पढाई पर जो पैसा खर्च करना है वो मै तुम्हारी शादी में कर दूंगा।” इतना कहकर उसके पापा उसके शादी के लिए रिश्ता ढूंढा जाने लगे। वक़्त गुजरा और जो रिश्ता आता वो लड़की सांवली है बोल कर चले जाते।
कृष्णा बड़ा ही परेशान रहने लगा, एक दिन वो अपने गेट पर था तभी एक लेटर आया जो उसकी बेटी का था। उसने वह फॉर्म अपने स्कॉलरशिप के पैसो से फॉर्म भरा था और उसका एग्जाम सर्वोच्च रैंक के साथ क्लियर हुआ था। वही कृष्णा का बेटा डॉक्टरी छोड़ कर भाग आया था। ये सब देख कर कृष्णा सोच मे पड़ गया, और बहुत सोचने के बाद वो अपनी बेटी सलोनी के पास गया और बोला, “बेटी मुझे माफ़ कर दो मैं तुम्हारे प्रतिभा को समझ नहीं पाया, जाओ कर लो बी.टेक।”
जाओ कर लो बी.टेक
ये सुन कर सलोनी के आँखो से आँसू रुक न पाये और उसने अपने पापा को गले लगा कर बोला “पापा मै आपकी बेटी हूँ और आप लोगो को कभी अकेला नहीं छोड़ सकती। आप ने जो विश्वास मुझ पर किया है वो टूटने नहीं दे सकती। ” इस वादे के साथ वो आगे बढ़ गयी और ज़िन्दगी का वो मुकाम पाया कि उसके माँ, पापा उसके नाम से जाने जाते है। ऐसे बहुत सी सलोनी है हमारे समाज मै, जिसमे से कुछ आगे बढ़ जाती है और कुछ के कदम वही रोक दिए जाते है,पर हमे रुकना है या आगे बढ़ना है ये हम तय करेंगे कोई और नहीं।
“रंग रूप के बन्दिश किसी को रोक न पायी , है जिसके अंदर प्रतिभा उसको झंझोर न पाए”
मूल चित्र : Riya Kumari via Pexels
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