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मेरे लिए बहु और बेटी में कोई फ़र्क़ नहीं…

जैसा व्यवहार हमारी सास ने हमारे साथ किया आप वैसा ही शुचि बहु के साथ करती हैं। वो जमाना कोई और था दीदी, अब समय बदल गया है।

जैसा व्यवहार हमारी सास ने हमारे साथ किया आप वैसा ही शुचि बहु के साथ करती हैं। वो जमाना कोई और था दीदी, अब समय बदल गया है।

जानकी जी के दो बच्चे हैं, बेटा अभिषेक और बेटी अनु, पति अशोक जी रिटायर्ड प्रिंसिपल है और एक प्यारी सी बहु है अंतरा।

अंतरा और अभिषेक की शादी को एक साल हुआ था। जब अंतरा और अभिषेक की शादी हुई तो अंतरा का फर्स्ट ईयर कॉलेज का था। अंतरा की दादी की तबियत ख़राब रहती थी, तो अपनी पोती की शादी देखने की ज़िद में अंतरा के पापा को उसकी शादी जल्दी करनी पड़ी। उम्र में अंतरा और जानकी जी की बेटी अनु बराबर ही थी।

जानकी जी और उनके पति की नज़रो में अंतरा और अनु में कोई अंतर नहीं था। दोनों बहु को बेटी ही समझते। अंतरा भी अपने ससुराल में रच बस गई थी। अशोक जी प्रिंसिपल रह चुके थे और लड़कियों की शिक्षा को ले कर बहुत सजग भी थे, वे चाहते जैसे अनु अपनी पढ़ाई कर रही है वैसे ही अंतरा भी अपनी पढ़ाई पूरी करे। अपने ससुर जी के निर्णय को सहर्ष स्वीकार कर अंतरा भी मन से पढ़ाई करती। परीक्षा के दिनों में जैसे अनु की जानकी जी देखभाल करती वैसे ही अंतरा की भी।

जानकी जी के पड़ोस में ही उनकी जेठानी सुजाता जी का भी परिवार रहता था। अपनी देवरानी के परिवार के सुख शांति को देख उनका कलेजा जलता। खुद के घर में रोज़ सास बहु के कलेश जो होता थे। सास बहु दोनों एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाती थीं।

ऐसे ही एक दोपहर अपनी बहु से लड़ झगड़ के जानकी जी की जेठानी जानकी जी के घर आ रोने लगी, “मेरे तो किस्मत ख़राब है जो ऐसी बहु मिली। एक दिन शांति से नहीं गुजरता मेरा।”

अपनी रोती जेठानी को चुप करा पानी पिलाया जानकी जी ने और पूछा, “कुछ खाया दीदी आपने?”

“कहाँ जानकी! सुबह से तो लड़ रही है मेरी बहु। एक कप चाय का नहीं पूछा, खाना क्या देगी?”

“ऐसी बात है तो आप बैठो, मैं अभी रोटियां सेंक देती हूँ। सब्ज़ी तो बनी रखी है, आप गर्म गर्म खा लो”, इतना कह जानकी जी रसोई की तरफ बढ़ीं।

“तो तू क्यों जा रही है? अंतरा कहाँ है?” सुजाता जी ने कहा।

“दीदी, उसकी परीक्षा चल रही है, वो पढ़ रही है। दो रोटियों को सेंकने के लिये उसे क्यों परेशान करना?”

“वाह रे जानकी! बहु पढ़ रही है और तू रसोई बना रही है? खुब सिर चढ़ा लिया है अपनी बहु को?” व्यंग से मुस्कुराते हुए सुजाता जी ने कहा।

अपनी जेठानी की बात सुन जानकी जी के पैर ठिठक गए, “ये क्या दीदी? कैसी बातें कर रही हैं  आप? जब मैं अनु को परीक्षा में काम के लिये नहीं उठने देती, तो अंतरा को क्यों उठने दूंगी? मेरे लिये जैसे बेटी वैसे बहु।”

“बुरा मत मानना दीदी लेकिन आपके इसी स्वभाव की वजह से आज आपको रात दिन का कलेश देखना पड़ रहा है। आपकी बहु शुचि दिल की बुरी नहीं है। जब मुझे इतना मान देती है, तो क्या अपनी सास को नहीं देगी? लेकिन आपके सौतेले व्यवहार ने उसके मन में आपके लिये कटुता भर दी है। याद करें आप क्या अपने कभी उसे दिल से अपना माना?

जब उसकी डिलीवरी हुई, आपने भर पेट खाना भी नहीं देती थीं और बेटी होने के कितने ताने दिये? जबकि बेटा बेटी कुछ भी अपने हाथ में नहीं होता दीदी। खुद आपके कटु व्यवहार ने ही उसके दिल से आपके लिये मान सम्मान ख़त्म कर दिया है।

जैसा व्यवहार हमारी सास ने हमारे साथ किया आप वैसा ही शुचि बहु के साथ करती हैं। वो जमाना कोई और था दीदी, अब समय बदल गया है। भलाई इसी में है की समय के साथ आप भी बदल जाये। कोई लड़की जब मायका छोड़ ससुराल आती है, तो कितना कुछ करती है हमारे लिये। बदले में कुछ मदद और स्नेह हम कर दें तो वो हमारा मान हमारी बहु के नज़रो में बढ़ाता ही है।

हमारे घर में ये सब नहीं है दीदी। दो रोटियों को सेंकने के लिये मैं अपनी बहु पे निर्भर नहीं रहती और ना ही बेटी और बहु में कोई फ़र्क मेरे घर में किया जाता है। इसलिये हमारी बहु के दिल में हमारे लिये सम्मान बना हुआ है और ये घर सिर्फ ससुराल नहीं, अंतरा का घर बन गया है।”

इतना कह जानकी जी रोटियाँ बनाने रसोई में चली गई और पीछे से उनकी जेठानी अपने पिछले कर्मो का हिसाब लगाने लगी।

मूल चित्र : StephenHeorold from Getty Images Signature, via Canva Pro

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