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जाते-जाते ये साल न जाने कितने ही सवाल हम सबों के ज़हन में छोड़ रहा है, लेकिन साथ में बहुत सारे सवालों का जवाब भी दे गया।
2020 कोरोना के कारण हमारे आपके लिए ही नहीं, हर घर-परिवार और समाज-देश-दुनिया के लिए चुनौतियों भरा साल रहा है। न जाने कितनों के सपने ले गया और न जाने कितनों के अपनों को ही ले गया। क्या खोया, क्या पाया इसका आकंलन ही ठिठक सा गया है हम सब के जीवन में।
जाते-जाते न जाने कितने ही सवाल हम सबों के ज़हन में छोड़ रहा है, लेकिन साथ में बहुत सारे सवालों का जवाब भी दे गया। जो कई सैकड़ों साल में देश-दुनिया के साथ नहीं हुआ वह हम सबों के साथ हुआ है। इसमें कोई शक नहीं है बीता साल में हमलोगों की जीवन की दृष्टि बदल गई है, नजरिया बदला है। हम सजग हुए हैं मानवता, समाजिकता और बंधुत्व को लेकर। अब हमारी जिम्मेदारी भी है कि परिवार, समाज-राज्य और देश लिए हम सब एकजुट हो और उम्मीद का दिया जलाये। क्या पता, विकट निराशा और अंधेरे में जलाया गया कौन सा दीया सूरज हो जाए और आने वाले साल 2021 में हम फिर से मुस्काना सीख लें।
कविवर सुमित्रानंदन पंत ने ‘प्रथम रश्मि’ में लिखा –
“प्रथम रश्मि का आना रंगिणि, तुने कैसे पहचाना?
कहां, कहां हे बाल-वहंगिनी! पाया तूने वह गाना?
सोयी थी तू स्वप्र नीड़ में, पंखो के सुख में छिपकर,
ऊंघ रहे थे, घूम द्वार पर, प्रहरी-से जुगनू नाना।
शशि-किरणों से उतर-उतरकर, भू पर कामरूप नभ-चर,
चूम नवल कलियों को मृदु-मुख सिखा रहे थे मुसकाना॥”
2021 में प्रथम रश्मि का आना, जीवन के रंगिणि में नव-तरंग भरना और दीवार पर टंगी कैलेंडर की करवट लेना भर नहीं होगा। कहने को साल बदला है लेकिन केवल साल ही नहीं बदला है बहुत कुछ बदला है जो रुककर सोचने को विवश करता है कुछ नया करने के लिए प्रेरित करता है। बीते साल की ठिठके-ठिठके जीवन का ठहराव नए साल के रश्मि किरण से जरूर टूटेगी यह तो तय है। हर किसी की कामना होगी कि कोरोना वायरस से ठिठका हुआ सबों का जीवन, नए साल की उष्मा पाकर नीर(पानी) की तरह सरल हो जाए, हम सबों का पहाड़ सी दुख-तकलीफ सब बह जाएं। जो सुख ठिठके पड़े हैं, वह नव-कली के तरह खिल जाएं, जो मुस्काम चेहरों पर सहमी हैं, वह खुल जाए।
आने वाला नया साल हमारे देश में ही नहीं पूरी दुनिया के सामाजिक परिवेश और जीवन शैली में बदलाव लाने का साल होगा। बदलते हुआ समय अपने साथ खुशियां तभी लाता है जब हम सब समय के साथ बदलकर अपने लिए खुशियों को बटोरकर उन्हें साल भर सहेज कर रखते हैं। जिंदगी हमें खूशियां तभी देती है जब हम जिंदगी से खुशियां लेना चाहते है तो नये साल में हमें अपने जिंदगी से अपने आप से वादा करने की जरूरत है कि हमें अपने जीवन में मानवता, सामाजिकता और बंधुत्व के भाव में खुशियां खोजनी है।
हमारे जीवन शैली में परिवार का महत्व अधिक बढ़ेगा। हम अपने आस-पास के लोगों के प्रति थोड़े सजग और भावनाओं से लबरेज होंगे। हमारे लिए राष्ट्रीयता के पहचान के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ मिलना-जुलना और खुख-गम बांटना ही हमारी अनमोल धरोहर थी जो दुनयावी भाग-दौड़ में खो गई थी या दूसरे शब्द का सहारा लूं तो वह धूमिल हो गई थी। उम्मीद की जानी चाहिए है कि आने वाले साल में हमारी संस्कृत्ति में अपनेपन और अपनत्व का भाव गहरा होगा। राष्ट्रीयता, मानवता और भाईचारा ही हमारी संस्कृत्ति का मूल है इस जिम्मेदारी का सकल्प ही समाज के लिए नया विकल्प देने में सक्षम होगा।
नए साल आता है, तो आगे की सोचने और जिंदगी को बेहतर बनाने के संकल्प लेने के अलावा एक पुनरावलोकन करने का मौका भी देता है। दरो-दीवार पर टंगा कैलेंडर भले बदल जाता है पर दीवार वही रहती है। हम सबों की छोटी-छोटी आदतों से मिलकर ही हमारी जीवनशैली बनती है तो फिर क्यों न पूरी जीवनशैली बदलने के लिए छोटी-छोटी आदतें बदली जाएं?
शुरुआत सिर्फ़ एक छोटे-से बदलाव से करना होगा तभी नये साल में कई संकल्प जीवन में नए विकल्प बनकर उभरेगे। मसलन परिवार के सदस्यों के साथ राष्ट्रीय, मानवता और भाईचारा पर संवाद करके किया जा सकता है। बच्चों को प्रेरक-प्रसंग बताकर उनमें मानवीय मूल्यों का संचार किया जा सकता है। मैकरावेन अपनी किताब मेक योर बैड के टैगलाइन “छोटी-छोटी चीजें जो जिंदगी बदल सकती हैं।”
छोटे-छोटे संकल्प बड़े संकल्पों से ज्यादा टिक सकते हैं और लंबे समय में अधिक प्रभावी भी साबित होते है। एकदम से सबकुछ कर लेने की इच्छा की वजह से अक्सर कुछ भी नहीं हो पाता है। कुछ छोटे-छोटे कदम उठाकर भी स्वयं से किए गए वायदे पूरे किए जा सकते है। yes we can बराक ओबाम के संकल्प संदेश भी दो ही बाते थी जो अहम शक्तियां है पहला प्रेरणा और दूसरा सरलता।
जिंदगी के साथ अनोखी बात यह है और वह सबों के साथ होता है कि हर रोज हमारी सोच से आगे निकल जाती है हम कितना भी तेज चलते है फासला कभी तय नहीं होता है। इससे यह तय नहीं होता है कि हमारी क्षमताओं में कमी है हमको बस अपनी कमियों पर काम करने करना होगा उसको ठीक करना होगा। किसी काम को पूरा नहीं कर पाने के स्थिति में निराश होना जरुरी नहीं है।
अपने कमियों का आकलन कर नए सिरे से काम करना जरूरी है। ध्यान बस यही रखना होता है कि पहली वाली गलतियां दुबारा से दोहराई न जाए। अगर आपका संकल्प सूत्र अटल है तो विकल्प भी उस संकल्प से ही निकलेगे। कोई भी रचनाकार चाहे वह मूर्तिकार हो या शिल्पकार या कोई अन्य अपनी कृति को अंतिम रूप देने से पहले बड़े मनोयोग से तमाम कमियों को दूर करता है। इसी तरह से अगर हमारा-आपका बीता हुआ साल अपेक्षा के अनुसार नहीं रहा और नये साल में अपने लिए ब्लूप्रिंट तैयार कर रहे हैं। तब शुरुआत अपने आप से करना चाहिए।
महात्मा गांधी जनता को कोई भी संकल्प सूत्र देने से पहले उसको स्वयं पर लागू करते थे तभी वह अपने सूत्र के कामयाब और नाकामयाब होने के बारे में सारी बातें जानते थे। बेंजामिन फ्रैंकलिन का कहना था, नए साल को खूबसूरत और सार्थक बनाना है तो अपने दोषों व कमियों को दुश्मन समझकर उनसे युद्ध लड़िए, अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर व्यवहार कीजिए और हर नए साल किसी अच्छे इनसान की तालाश कीजिए।
संकल्प से विकल्प एक सूत्र है तो फिर से जीने की उम्मीद भी है। अपने संकल्प को और प्रभावी बनाने के लिए उसके साथ कुछ हल्के-फुल्के नियम कायदे लगाने जरूरी है। अपनी क्षमताओं पर भरोसा करके हम कोई संकल्प चुन सकते हैं। बीता साल हमें यह सीखा गया है कि हम प्रकृत्ति, अपने-अपने परिवार-समाज और एक-दूसरे पर भरोसा करने का संकल्प लें। अपने संकल्प में समाजिकता का भाव जोड़ कर उसमें स्नेह का बीज बोने की आवश्यकता है और कुछ नहीं।
हमारे अंदर हर किसी के प्रति स्नेह-भाव ही मानवता, समाजिकता और बंधुत्व के जिम्मेदारियों को पूरा करने का बोध विकसित कर सकता है। जिस व्यक्ति में स्नेह देने की क्षमता होती है उसका जीवन भी चिकना होता है और उसका जीवन भी सफल हो जाता है। निराशा भरे अंधकारमय दौर में यही संकल्प का यही दिया हमारे लोक को बेहतर बनाए रखेगा और आने वाले नये साल 2021 को भी।
मूल चित्र : Vikramraghuvanshi from Getty Images Signature via Canva Pro
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