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सासू माँ के घुटने और मेरी पीठ का दर्द…

नीता की बात सुन ऑंखें दिखाती उसकी सासू माँ बोलीं, "बोला ना घुटने में दर्द है? मुझसे ना होगा कोई काम वाम और ना ही मोनू को संभाल पाऊँगी।"

नीता की बात सुन ऑंखें दिखाती उसकी सासू माँ बोलीं, “बोला ना घुटने में दर्द है? मुझसे ना होगा कोई काम वाम और ना ही मोनू को संभाल पाऊँगी।”

आज सुबह से नीता आश्चर्य से अपनी सासूमाँ को देखे जा रही थी। बात थी ही थोड़ी अजीब। पिछले दस दिनों से जो सासूमाँ बिस्तर से उठने का नाम नहीं ले रही थीं, क्यूंकि उनके घुटनों में दर्द था, आज वो ही सासूमाँ ऐसे हिरणी सी उछल रही थीं, जैसे साठ साल की नहीं बीस साल की युवती हों।

नीता का ससुराल उदयपुर में था टूरिस्ट स्पॉट होने के कारण अकसर कोई ना कोई आता जाता रहता था। नीता उनकी उचित आवभगत भी करती और नीता के पति समय निकाल खुद या कैब और टैक्सी करवा मेहमानों के घूमने की वयवस्था भी कर देते।

शादी के पांच सालों बाद इस बार पहली बार छुट्टियों में नीता की बड़ी बहन, जीजाजी और उनके बच्चों के घूमने का प्रोग्राम उदयपुर का बना था। अपनी प्यारी दीदी और जीजाजी के आने की ख़बर सुन नीता बहुत ख़ुश थी नीता के पति अशोक भी ख़ुश हुए।

जब नीता ने अपनी सासूमाँ को बताया, “माँजी मेरी बहन और जीजाजी अपने बच्चों के साथ पहली बार उदयपुर घूमने कुछ दिनों के लिये आ रहे हैं।” ये सुनते नीता की सासूमाँ मुँह बन गया। नीता को अजीब लगा क्यूंकि आज तक सब उसके ससुराल वाले ही उनके घर आते जाते रहे थे और उनके आने की ख़बर सुन माँजी बहुत ख़ुश होती थी और बेसब्री से इंतजार भी करती थीं। अपना वहम समझ नीता ने ज्यादा ध्यान देना उचित नहीं समझा और अशोक के साथ उनके आने की तैयारियों में लग गई।

जिस दिन नीता की दीदी को आना था, उस दिन माँजी कमरे से निकल ही नहीं रही थीं।

‘क्या बात हो गई? आज माँजी कमरे से निकली नहीं वैसे तो सुबह उठ जाती है और कोई आने वाला हो तो सुबह से खाने नाश्ते की तैयारी में हाथ भी बंटा देती हैं’, ये सोचते हुए नीता ने कमरे में झांका तो सासू माँ आराम से चादर ताने सो रही थीं।

“माँजी आपकी तबीयत तो ठीक है? आप आज बाहर नहीं आयीं? आज दीदी आने वाली है ना? शायद आप भूल गई होंगी। अशोक तो स्टेशन भी चले गए उन्हें लेने”,  सिर पे हाथ रख बुखार चेक करती नीता ने पूछा।

“वो मेरे घुटने दर्द कर रहे हैं, मुझसे उठा नहीं जा रहा।”

“अचानक घुटनों में इतना दर्द कैसे हो गया? कल तक तो आप ठीक थीं माँजी?” थोड़ा आश्चर्य से नीता ने पूछा।

“क्यों बहु क्या मेरे घुटनों में दर्द तेरे से पूछ कर होगा? अब दर्द तो आता जाता रहता है ना।”

सासूमाँ को नाराज़ होता देख नीता झट से बाम ले आ गई, “ओह! आइये ना माँजी, मैं बाम लगा देती हूँ, घुटनों में फिर थोड़ा आराम मिल जायेगा। फिर आप मोनू को थोड़ी देर संभाल लेना, ताकि में जल्दी से नाश्ते की तैयारी कर लूँ। सब को भूख लगी होगी।”

नीता की बात सुन ऑंखें दिखाती उसकी सासू माँ बोलीं, “बोला ना घुटने में दर्द है? मुझसे ना होगा कोई काम वाम और ना ही मोनू को संभाल पाऊँगी।”

नीता को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन घर का माहौल ना ख़राब हो इसलिए चुप रह गई। अशोक स्टेशन जा सबको घर ले आये। नीता खुशी खुशी अपने दीदी जीजाजी से मिली, बच्चे तो मासी मासी कह सीधा गोद में चढ़ गए।

सबको कमरे में बिठा मोनू को अशोक को पकड़ा जल्दी से रसोई में चाय बनाने भागी। पीछे से दीदी भी आ गई, “नीता, माँजी कहाँ हैं? मिल लेते उनसे भी।” तब तक अशोक माँजी को लेकर कमरे से बाहर आ गए।

अशोक को देख माँजी ने बेमन से सबका हाल चाल पूछा और फिर जो अपने कमरे में घुसीं, तब तक बाहर नहीं आयी जब तक दीदी चली ना गई।

सिर्फ काम से निकलती वर्ना अपने कमरे में बैठी रहती घुटनों के दर्द का बहाना ले। छोटे बच्चे के साथ नीता को परेशान होता देख, दीदी मदद को दौड़ी चली आतीं। नीता को शर्म भी आती जब दीदी काम में मदद करती और अपनी सासूमाँ पे गुस्सा भी आता उसे। इतने साल ससुराल वालों की इतनी आवभगत की उसने लेकिन आज जब चार दिन के लिये उसकी बहन आयी तो माँजी अपने घुटनों के दर्द का बहाना कर रही हैं।

चार दिनों बाद दीदी चली गईं। बहन के जाने से नीता उदास हो गई थी। शाम को ऑफिस से अशोक आये तो माँजी को कहने लगे, “नमन (अशोक के मामा का बेटा ) का फ़ोन आया था कोई परीक्षा है दो दिन के लिये कल आयेगा।”

नीता ने चुपके से माँजी का चेहरा देखा जो अपने भतीजे के आने की ख़बर से खिल उठा था। अगले दिन नीता के पहले उठ उसकी सासूमाँ अपने भतीजे के पसंद की चीज़ें बनाने लगी उनकी फुर्ती देख नीता का शक यकीन में बदल गया की माँजी घुटनों के दर्द का नाटक कर रही थीं। बस फिर क्या था, मोनू का दूध और अपनी चाय ले सीधा अपने रूम में चली गई।

भतीजे के आने का समय हो चला और नीता को कमरे से बाहर आता ना देख माँजी बेचैन हो कमरे में आयीं, “बहु, नमन आ रहा है। थोड़ी तैयारी मैंने कर दी, बाकि तुम देख लो।”

“माँजी मुझसे कुछ ना होगा, मेरे कमर में बहुत दर्द है। आप खुद देख लेना। आपका भतीजा है।”

“कल तक तो ठीक थी? आज इतना दर्द कैसे हो गया बहु तुम्हें?”

“वैसे ही माँजी जैसे आपके घुटनों के दर्द हुआ था। अब दर्द का क्या है, कभी भी आ जाता है और चला जाता है।”

नीता की बात सुन उसकी सासू माँ को काटो तो खून नहीं जैसा हाल हो गया लेकिन कहती भी क्या।

“माँजी! जाते जाते दरवाजा लगा देना, मोनू सो रहा है”, और नीता ने चादर तान ली। माँजी मुँह लटका कमरे से निकल पड़ीं, अपने भतीजे की सेवा करने।

मूल चित्र : rvimages from Getty Images Signature, via Canva Pro 

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