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क्या आप जानते हैं कि सावित्री बाई की चित्रकला को देखकर उन्हें परमवीर चक्र तैयार करने का प्रस्ताव दिया गया जो उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया?
परमवीर चक्र का अर्थ है वीरता का चक्र। इसे भारतीय सेन्य सेवा तथा उससे जुड़े हुए लोगों को दिया जाने वाला सर्वोच्च वीरता सम्मान है। यह पदक शत्रु के सामने अद्वितीय सहस दिखने वाले परम वीर को दिया जाता है। 26 जानवरी 1950 से प्रारम्भ हुआ यह चक्र मरणोप्रांत भी दिया जाता है। इस चक्र को अमेरिका के सम्मान पदक और यूनाइटेड किंगडम के विक्टोरिया क्रॉस के बराबरी का दर्जा हासिल है।
परमवीर चक्र का डिज़ाइन तैयार करने का श्रेय एक महिला को जाता है। स्विट्ज़रलैंड मूल की महिला इवा योन्ने लिण्डा ने परम वीर चक्र, अशोक चक्र, महावीर चक्र, कीर्ति चक्र,वीर्य चक्र और शौर्य चक्र भी डिज़ाइन किया है। 1913 में जन्मी इवा योन्ने लिण्डा के पिता हंगरी के थे और उनकी माता रशिअन मूल की थी। उनके पिता लीग ऑफ़ नेशंस के पुस्तकाल्याध्यक्ष थे और उनका अधिकतर समय पुस्तकों के बीच व्यतीत होता था। वहाँ पर ही उन्होंने भारतीय संस्कृति और इतिहास की ओर अपना झुकाव महसूस किया।
किसी चीज़ को शिद्दत से चाहने पर वो आपके पास खींची चली आती है और ईवा के जीवन में भी यह ही हुआ। एक दिन समुद्र तट पर टहलते हुए उनकी मुलाकात ब्रिटेन के सेन्डहर्स्ट मिलिटरी कॉलेज में पढ़ने वाले कुछ भारतीय युवकों से हुई। उनमें से एक, विक्रम खानोलकर से उनकी लम्बी बातचीत हुई। इसके बाद दोनों के बीच पत्राचार भी हुआ। बात बढ़ती गयी और विक्रम की पहली पोस्टिंग औरंगाबाद में होने के बाद ही ईवा और विक्रम ने शादी कर ली।
1932 में शादी के बाद ईवा ने अपना नाम सावित्री बाई रख लिया और पूरी तरह भारतीय रंग ढंग में ढल गयी। उनका रहन-सहन, खान-पान और बोल-चाल सब भारतीय हो गयी। विक्रम के पटना तबादला होने के बाद उन्होंने वेद, उपनिषद्, संस्कृत नाटक आदि में भी पारंगत हासिल कर ली। साथ ही साथ उन्होंने रामकृष्ण मिशन में प्रवचन देना भी प्रारम्भ कर दिया। इसी के साथ इन्होने अपनी चित्रकला और स्केचिंग को भी खूब निखार लिया। उन्होंने पूरी तरह से अपने आपको एक भरतीय महिला के रूप में बदल लिया था। उनका कहना था कि उनकी आत्मा भारत से जुडी हुई है और उन्हें फोरेनर कहलाना बिलकुल पसंद नहीं था।
1947 में हुए भारत पाकिस्तान के युद्ध में सैनिकों द्वारा प्रदर्शित अद्वितीय पराक्रम को सम्मानित करने के लिए भारतीय सेना एक नए पदक को तैयार कर रही थी। इसको पूरा करने की ज़िम्मेदारी मेजर जनरल अटल को दी गयी थी। सावित्री बाई से मुलाकात होने पर वो उनकी भारतीय संस्कृति, पौराणिक प्रसंग और आध्यात्मिक ज्ञान की समझ से बहुत प्रभावित हुए। उनकी चित्रकला को देखकर उन्होंने उन्हें यह पदक तैयार करने का प्रस्ताव दिया। सावित्री बाई ने उसको सहर्ष स्वीकार कर के कुछ ही दिनों में उसे पूरा भी कर दिया।
अपने अथाह ज्ञान का इस्तेमाल करते हुए सावित्री बाई ने वीरता, त्याग और शांति के सूचक को शामिल करके परम वीर चक्र का डिज़ाइन तैयार किया। इस डिज़ाइन में इंद्र का वज्र है और महृषि दधीचि का त्याग है। चक्र के चरों और वज्र का चिन्ह है, बीच में राष्ट्रीय चिन्ह का चक्र है और दूसरी ओर कमल का चिन्ह है। यह अद्भुत कलाकृति करने वाली महिला वास्तव में भारतीय मूल की भी नहीं है।
किसी और देश में जन्मी और पली-बढ़ी इस महिला ने भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रति अपनी लगन और अनूठे जुड़ाव से भारत के इतिहास में अपनी जगह बना ली है। उनका भारत के प्रति लगाव और झुकाव उन्हें भारत ले आया और उन्हें पूरी तरह से बदल दिया। भारतीय मूल की न होने के बाद भी उनका परिचय और उनका व्यक्तित्व एक भारतीय जैसा ही था।
आज वीरता क सर्वोच्च पुरस्कार प्राप्त करने वाले भले ही सभी पुरुष हों और भले ही समाज में वीरता का परचम हमेशा पुरुषों के पास ही रहा हो, परन्तु महिलाओं ने भी समय समय पर अपना सहर और शौर्य प्रदर्शित किया है। इतिहास भी अन्य मुद्दों की तरह एक पुरुषवादी मुद्दा है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में और स्वतंत्रता के पश्चात् सभी गतिविधियों में महिलाओं का भरपूर योगदान रहा है परन्तु उनके योगदान को कभी भी बराबरी का दर्जा नहीं मिला है। वैसे ही एक अनजाने देश में जाकर अपना वर्चस्व स्थापित कर सवित्री बाई ने 1947 में हुए युद्ध में सैनिकों के लिए अपनी सेवाएँ दी। 1990 में उनका देहांत हो गया परन्तु आज भी भारत के सर्वोच्च वीरता सम्मान में उनका नाम अमर है।
परमवीर चक्र के इतिहास में सावित्री बाई का नाम गुम हो गया है और हमें उसे फिर से सामने लाने की ज़रुरत है। साथ ही ऐसी और भी महिलाओं के नाम को ढूंढने की ज़रुरत हैं जो पुरुषवादी इतिहास में खो गए हैं।
मूल चित्र : Bharat Discovery/ YouTube
Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...
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