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उम्मीद पर टिकी हैं साँसों की डोर..

वो जानती है कि तन से जख्मों के निशान मिटा नहीं करते, पर मन पे पड़े ज़ख्मों के निशान शायद अकूट प्रेम, समर्पण, पश्चाताप के एहसास और वक्त मिलकर पोंछ  देते हों।

वो जानती है कि तन से जख्मों के निशान मिटा नहीं करते, पर मन पे पड़े ज़ख्मों के निशान शायद अकूट प्रेम, समर्पण, पश्चाताप के एहसास और वक्त मिलकर पोंछ  देते हों।

कोर्ट की चौखट पर पहुँचा रिश्ता, घर की चारदीवारी में वापस तो आ गया था,पर जलालत और शब्दवाणों से  बुरी तरह बींध गया था। मन रक़्त से तर था क्योंकि अपनों के दिए हुए ज़ख्म बहुत गहरे होते हैं और दूसरे ज़ख्मों से ज्यादा दर्द भी देते हैं। इसके बाद भी समय और बदला हुआ सोम पूरे तन-मन-धन से उस ज़ख्म की मरहम पट्टी की पुरजोर कोशिश में लगे हुए थे। वही सोम जिसके प्रेम में कभी वो कशिश थी जिसने उसे अपने धर्म की रेखा तक लंघवा दी थी।

प्यार के तोते उड़ने लगे और….

हद से ज्यादा प्यार करने वाले प्रेमी से शादी के बाद भी बहुत सारी उम्मीदें जुड़ी होती है।  प्रेम पेट से तो फिर भी समझौता कर लेता है पर दिल से समझौते करने पड़ें तो, प्रेम अपना ही अस्तित्व खोने लगता है। शादी के बाद का समय तो पखेरु सा गुजर पर दोनों के घर की तरफ से आती बेरूखी की बयार सना पर बेअसर रही परन्तु सोम को उड़ा ले गई। प्यार के तोते उड़ने लगे और प्रताड़ना की जंज़ीरें कसने लगीं। और वही हुआ जैसा समाज और परिवार चाहता था। अलगाव तय था,सोम के लिए सब दरवाजे खुले थे,पर सना को तो अब अपने अस्तित्व ने भी जवाब दे दिया था।

लेकिन एक उम्मीद और… 

अचानक से कोर्ट की एक तारिख के ही दिन टूटी सना को अपने अंदर आस के एक बिरवे का आभास हुआ। फिर तो जिंदगी बदल गई,सब पूर्ववत से भी अच्छा हो गया और जख्म भरने लगे। सना ने सोम को माफ़ भी कर दिया था। उसके इश्क की शिद्दत और अंदर पलती जान उसको विश्वास दिलाते। वो जानती है कि तन से जख्मों के निशान मिटा नही करते, पर मन पे पड़े ज़ख्मों के निशान शायद अकूट प्रेम, समर्पण ,पश्चाताप के एहसास और वक्त मिलकर पोंछ  देते हों। जिसके आभास मात्र ने दोनों की जिंदगी पटरी पर ला दी, उसके आने से तो सबकुछ बदल जाएगा और उसका जीवन फिर से इंद्रधनुषी हो जाएगा।

काश ऐसा ही हो..सना को एक साथ दो-दो उम्मीदें थी।

मूल चित्र: Chad Madden via Unsplash 

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