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टुकड़े टुकड़े में ही सही, सब कुछ तुम्हारे लिए ही व्यवस्थित किया है वैसे तो थोड़ा कम है लेकिन सब कुछ तेरे लिए सजा के रखा है।
टुकड़े टुकड़े में ही सही, सब कुछ तुम्हारे लिए ही व्यवस्थित किया है। वैसे तो थोड़ा कम है, लेकिन सब कुछ तेरे लिए सजा के रखा है।
डिअर ज़िन्दगी,अधिक विस्तार नहीं चाहिए मुझे,अधिक प्यार नहीं चाहिए मुझे,संग चलूँ और चलती चलूँ, रुकना कहीं नहीं है अब मुझे,ना तेज़ चल पाऊंगी, ना ही मैं तेरे संग दौड़ पाऊंगी,ना रुक के कभी मैं तुमको शर्मिंदा कर पाऊंगी,इन बहते हुए जलतरंग को देखो , मुझे ऐसे ही बहते रहना हैये ज़मीं से उड़ती हवा को महसूस करो, मुझे ऐसे ही चलते रहना हैये आस पास के वातावरण को देखो, इनकी तरह सब कुछ होके भी मुझे निराधार सा रहना है।
क्या ये सब घटना ऐसे ही हो पाई है, कुछ तो प्रयोजन होगा ना इनकामहसूस करो खुद की सांसों को, ये इन हवाओं जैसी मालूम होती हैएहसास करो अपनी नब्ज़ को, ये जीवन सारी ब्रह्मांड की प्रक्रिया सी मालूम होती है।
जो कभी अकेले हो, तो खुद को ही अब महसूस करो, क्या तुमको नहीं लगता तुम एक ऐसे जीव हो जिसे,सृष्टि कर्ता ने एक शानदार प्रयोजन के लिए बनाया है?कुछ है जो हम सबको किसी से जोड़े है और क्यों?क्या नारी का स्वरूप बस ऐसे ही था या है?ईश्वर की चाहत नारी को लेकर अतिविष्ट थी क्या?सब सहज, संतुलित, सौम्य, सामान्य, और शानदार रखनाकिसी और जीव के बस की बात है क्या?कि वो खुद को परेशान करके सब कुछ सामान्य या शानदार कर सके? नहीं ना?
नारी की चाहत क्या है? बस इतनी सी ही ना सब उसके लिए ना होके सबके लिए हो, गलत क्या है इसमें?जोड़ क्यों लगाया है नारी पुरुष का, की सब मिल के सृष्टि को उत्कृष्ट बना सके,बाहरी कड़ियां, या खुद की वो बनाई दुनिया सेजहां हम सहज होते है, सिर्फ अपने लिए याकभी इनके लिए ,कभी उनके लिएसिर्फ तेरे संग जीने के लिए जाने कितने खुद से सवाल बुनते हैं।
डिअर जिंदगी कभी तो संग बैठ के मेरे हाथो को पकड़ के ये बोलये जो है जहां में सब तुम्हारे लिए है, सब आंख बंद करो और सब कुछ महसूस करों, सब कुछ तुम्हारे लिए ही जोड़ा है टुकड़े टुकड़े में ही सही,सब कुछ तुम्हारे लिए ही व्यवस्थित किया है वैसे तो थोड़ा कम है लेकिन सब कुछ तेरे लिए सजा के रखा है।
मूल चित्र: Church of the King via Unsplash
Occupation -Lawyer , Blogger, Author, Social activities, " If my view at any one person to intratect and understanding my inner surface how to I explained and why I explained this is too much for me" ((कोई भी बदलाव एक ही दिन नहीं होता, उसके लिए सदिया जगनी पड़ती है)) ।।रंजनी श्रीमुख शांडिल्य।। read more...
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