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मोहम्मद अकबर के बहीखाते में कई बातें इतिहास में दर्ज की जाती हैं, जो उसके दौर में महिलाओं के हक में मील का पत्थर कही जाती थीं।
आज हम बात करेंगे उस शख्स की जिसके नाम से हिंदुस्तान का हर एक व्यक्ति परिचित है। हिंदुस्तान के नाम के साथ वह इस तरह पाबंद है कि उसे अलग ही नहीं किया जा सकता है। जब वह पैदा हुआ तब खानदान के सितारे गर्दिश में कतई न थे, उसके वालिद दर-बदर भटक रहे थे। पर उसके नसीब मे बादशाहत पहले से तय थी, उसने अपनी तलवार से अपने साम्राज्य के हदों को विस्तार दिया, उसने तमाम मज़हबों को अक्ल की कसौटी पर कंसने का काम किया। उसने हूकूमत और तहज़ीब को नए मायने दिए।
15 अक्टूबर 1542 का दिन जलालुदीन मोहम्मद अकबर के जन्म के तारीख इतिहास में दर्ज है उस लिहाज़ से आज अकबर का 478वां जन्मदिन है। भारत पर हकूमत करने वाला बेजोड़ व्यक्ति जिसको उस दौर के जनता से प्यार से जलालुदीन (आस्था का चांद) मोहम्मद अकबर कहा। आसान तो कतई नहीं रहा होगा अकबर का अपना शुरूआती बचपन असमय पिता के मौत के बाद। उसपर एक अस्थिर साम्रज्य का बागडौर थमा दिया गया नन्हे जलाल के हाथों। शुरूआती शासन और सीख जो भी मिली वो बैरम खां और महांमंगा के साये में ही मिली।
जैसे-जैसे अपनी समझदारी बनती गई, शासन की बागडौर को अपने हाथों में लिया, सम्राज्य का विस्तार किया और निजी रूप से स्वयं को इंसान के रूप में न केवल निखारने की कोशिश की। स्वयं को बेहतर करने रहने की सोच ने ही अकबर को कटटरता की जंजीरो से स्वतंत्र करके मुक्त चिंतन वाला इंसान बना दिया, इस हद तक कि उलेमाओं ने विद्रोह तक कर दिया।
महिलाओं के हक में अकबर के बहीखाते या रोजनामचे में कई बाते इतिहास में दर्ज की जाती है, जो उसके दौर में महिलाओं के हक में मील का पत्थर कही जाती थी। मसलन, वह विधवा विवाह का समर्थन करता था, बाल विवाह और सती प्रथा को रोकने के उसके प्रयास भी इतिहास में दर्ज है। लड़के-लड़कियों की विवाह की न्य़ूनतम आयु तय करना या फिर महिलाओं को अपनी मर्जी के व्यक्ति से विवाह करने की पैरवी उसकी प्राथमिकताओं में दर्ज रही। इन कोशिशों के लिए वह अपने और गैर मजहब के कटटरपथियों से भिड़ता भी रहा। मुस्लिम लड़कियों को सम्मति में अधिक हिस्सा देने का अकबर शुरू से पक्षधर रहा यहां तक कहा कि बेटियों को अधिक सम्पत्ति लोग इसलिए नहीं देते क्योंकि विवाह के बाद वह पति के घर चली जाएगी।
एक समान्य इंसान के तरह उसमें तमाम अच्छायाँ और बुराइयाँ भी थी पर एक शासक के बतौर इतिहास में दर्ज है कि वह न्यायप्रिय, तर्कशील, सहिष्णु और भारतीयता का सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति था। उसने दीन-ए-एलाही नामक विचार का धर्म भी चलाया पर एक शासक के बतौर उसे थोपने की कोशिश कभी नहीं की। जबकि उस दौर में मौजूद कमोबेश हर धर्म में यह हो रहा था। दीन-ए-एलाही का जन्म हिंदुस्तान के जमीन पर ही हुआ और बाद में इसी सरजंमी पर वह फ़ना भी हो गया। उसके विचार के कुछ अंश को बाद में धर्मनिरपेक्षता के ताने-बाने में या गंगा-जमुनी तहज़ीब में बांधने की कोशिश हुई जो कभी हाशिए पर चली जाती है तो कभी फिर जिंदा हो जाती है।
उसी गंगी-जमुनी तहज़ीब का व्यापारिक प्रतिष्ठान के लोग जब अपने व्यावसायिक हित में करते है तो आज वो कुछ लोगों के निगाह में खटकने लगता है। कभी कपड़े के लिए दाग साफ करने वाला सर्फ निशाने पर आ जाता है तो कभी महिलाओं को पसंद आने वाला जेवर। कभी गले की प्यास बुझाने वाली शरबत निशाने पर होती है तो कभी मनोरंजन करने वाली फिल्में। बौद्ध, जैन, सिख, और न जाने कितने ही सभ्यता संस्कॄति को अपने गोद में पालने वाले इस देश में जहां गंगा-जमुनी तहज़ीब लोगों के दिल में बसती है वहां यह महौल भी अधिक दिनों तक नहीं टिकेगा। वज़ह साफ है कि समय के गतिशीलता के साथ इस जमी पर कोई धर्म अधिक देर तक टिकता नहीं है यह इस सरजमी का इतिहास रहा है।
इतिहासकारों ने भारत के पूरे इतिहास में दो व्यक्ति को ही महान शासक का दर्जा दिया जिसमें पहला अशोक और दूसरा अकबर ही हैं। मेरे लिए बचपन के दिनों में अकबर-बीरबल के किस्से और उसकी कहानियां इसतरह से पैबंद है कि तमाम मीननेख के बाद भी वह शानदार और जिंदाबाद शासक था इस छवि को कोई बदल नहीं सकता है।
मूल चित्र: Wikipedia
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