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अगर आने दोगे अपनी सीरत को कभी सूरत पर तो इस ज़िंदगी का सच्चा सुकून पाओगे। पल भर के लिए ही सही पर खुली हवा की तुमको भी ज़रूरत है।
कब तक दुनिया का चेहरा, अपने चेहरे पर लगा कर घूमोगे, क्या सारी उम्र मुखौटों से ही काम चलाओगे?
खुली हवा में साँस लेने का लुत्फ़, फिर कब उठाओगे? अगर आने दोगे अपनी सीरत को कभी सूरत पर, तो इस ज़िंदगी का सच्चा सुकून पाओगे।
पल भर के लिए ही सही, पर खुली हवा की तुमको भी ज़रूरत है, फेंक दो इस मुखौटे को और गहरी साँस लो, पल भर के लिए ही सही, पर खुद ही खुद का हाथ थाम लो।
कर दो खुद को खुद से रूबरू, और इस दुनिया को भी दिला दो एहसास, कि तुझमें तू अभी भी ज़िंदा है तुझमें तू अभी भी ज़िंदा है!
मूल चित्र : Surya Deepak via Unsplash
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