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फॉर्म पढ़ते ही आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई। उषा जी ने मुस्कुरा कर अपने पति को देखा, "आपको याद रहा इतने सालों बाद भी?"
फॉर्म पढ़ते ही आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई। उषा जी ने मुस्कुरा कर अपने पति को देखा, “आपको याद रहा इतने सालों बाद भी?”
सारा दिन घड़ी देख देख उषा जी का समय निकलता कब शाम हो और कब रमेश, उनके पति, ऑफिस से आयें तो कुछ दिल लगे। दिन भर का खाली वक़्त जैसे काटने को दौड़ता। दोनों बेटियों की शादी के बाद घर बिलकुल सूना हो चला था। बच्चे घर पर रहते थे तो वक़्त ही ना मिलता और अब वक़्त जैसे कटने का नाम ही ना लेता।
सारा दिन दोनों बेटियां धमा-चौकड़ी मचाती और उषा जी का सारा वक़्त उनको मीठी डांट लगाने उनकी फरमाइशें पूरी करने में ही बीत जाता और अब एक बार का सिमटा घर ना बिखरता ना और ना ही फरमाइशों के पकवान रसोई में बनते।
अंतर्मुखी उषा जी का सोशल सर्किल भी कम था और जो थे वे सब अपनी गृहस्ती में मगन थे। ऐसे में उषा जी का अपकेलापन उन्हें मानसिक रुप से परेशान करने लगा। अपनी पत्नी के अकेलेपन को भांप लिया था रमेश जी ने और अपनी पत्नी के स्वाभाव से परिचित वो जानते थे उनकी सीधी सरल पत्नी सोसाइटी की किट्टी की भी मेंबर नहीं बन सकती। ऐसे में एक रास्ता उन्हें सुझा।
रात का खाना खा जब उषा जी सोने आई बिस्तर पर एक फॉर्म देख चौंक उठी।
“ये कैसा फॉर्म रखा है यहाँ?”
“तुम खुद देख लो…”
“अपनी पत्नी की इस दिली ख्वाईश को कैसे भूल सकता हूँ? घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी में तुम खुद को भूल बैठीं। लेकिन तुम्हारी इस ख्वाईश को मैंने नहीं भुलाया।”
“कल से तुम रोज़ बेकिंग क्लास जाओगी और अपने इस सपने को पूरा करोगी।”
“लेकिन इस उम्र में…”
“उम्र का क्या है मैडम? ऐज इस जस्ट अ नंबर और कुछ सीखने की कोई उम्र नहीं होती।”
सारी रात करवटें बदलते बीती उषा जी की अपनी पति पर प्यार और गर्व दोनों हो रहा था, आज उन्होंने कैसे सालों पुराने उनके सपने को याद रखा था। नई-नई शादी हुई थी तब बातों-बातों में उषा जी ने ये बात कही थी कि उन्हें बेकिंग का बहुत शौक है। लेकिन उस वक़्त की नई नौकरी छोटे बच्चों में ये बात दबी रह गई और आज उसी सपने को सीढ़ी बना उनके पति उनके अकेलेपन को अनोखे अंदाज में दूर करने का प्रयास कर रहे थे।
खाना बनाना तो उषा जी का पसंदीदा काम था। ऐसे-ऐसे व्यंजन बनाती की लोग उंगलियां चाटने पर मजबूर हो जाते, लेकिन उनकी ख्वाहिश बेकिंग सीखने की होती, वो भी प्रोफेशनल बेकिंग लेकिन कभी मौका ही नहीं मिला। आज जो मिला तो खुशी और घबराहट सी हो रही थी।
अगले दिन समय पर क्लास में उषा जी पहुंच गई। वहाँ जवान लड़कियों को देख एक बार तो दिल घबराहट से भर उठा लेकिन जल्द ही सब के साथ घुल-मिल गई उषा जी। छह महीने का समय पंख लगा उड़ गया। बेकिंग की बारीकियों को सीखती उषा जी की प्रतिभा देख उसको उसी इंस्टिट्यूट में अपॉइंट कर लिया गया।
शौक से शुरु किया काम अब नाम और पैसा दोनों दिलाने लगा था। एक वक़्त था, जब वक़्त काटे नहीं कटता था और एक वक़्त आज का था जब दो घड़ी सांस लेने की फुर्सत ना मिलती उषा जी को। उषा जी के सिर आँखों पर तो हमेशा से ही थे रमेश जी लेकिन आज अपनी पत्नी के दिल का रास्ता भी उन्होंने ढूंढ लिया था।
मूल चित्र : Image Source from Photo Images via Canva Pro
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