कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

ये कर्तव्य की चाबियाँ हैं या एक कैद…

रसोई से शयनकक्ष तक, घुमाती रही, कर्तव्यों की चाबियां। लगाती रही ताले अपने आदतों, अरमानों पर, प्रगति के पायदानों पर...

रसोई से शयनकक्ष तक, घुमाती रही, कर्तव्यों की चाबियां। लगाती रही ताले अपने आदतों, अरमानों पर, प्रगति के पायदानों पर…

चाबियाँ थमा,
बना दिया गया मुझे मालकिन,
और मैं इस भुलावे में आ
तालों में उलझती रही, दिन-ब-दिन।

रसोई से शयनकक्ष तक,
घुमाती रही, कर्तव्यों की चाबियां।
लगाती रही ताले अपने आदतों, अरमानों पर
प्रगति के पायदानों पर,
कभी आँसू ,और कभी मुस्कानों पर।

धीरे धीरे यूं ही, घुटन बढ़ती रही।
समझने लगी, कि इन चाबियों से
कैद करती जा रही हूँ,
खुद को कहीं।

अचानक एक दिन, जब छटपटाती हूँ,
अपने लगाए इन बंधनो को,
तोड़ने की हिम्मत जुटाती हूँ,
वही चाबियाँ बार बार घुमाती हूँ।
हताश निराश हो, आखिर हार जाती हूँ।

जब होश में आती हूँ,
यही सवाल दोहराती हूँ,
कर्तव्यों की चाबियों से,
अधिकारों के ताले,
क्यों नहीं खोल पाती हूँ।
क्यों नहीं खोल पाती हूँ।

मूल चित्र : Azraq Al Rezoan via Pexels

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

19 Posts | 53,470 Views
All Categories