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क्या हुआ? मुझे तो लग रहा था कि आप बहुत ख़ुश होंगे ये बात सुनकर...अब हमारी शादी को भी ३ साल हो गए हैं। अब हमें अपनी फ़ैमिली बढ़ानी चाहिए।
क्या हुआ? मुझे तो लग रहा था कि आप बहुत ख़ुश होंगे ये बात सुनकर…अब हमारी शादी को भी ३ साल हो गए हैं। अब हमें अपनी फ़ैमिली बढ़ानी चाहिए।
सरिता आज बहुत ख़ुश है वो गुनगुना रही है साथ ही साथ अपने रसोई के काम भी ख़त्म कर रही है। आज सुबह ही उसे पता चला कि अब वो गर्भ से है। पहले उसने सोचा कि वो विकास को फ़ोन पर ही बता दे .फ़ोन करने जा ही रही थी कि उसके मन में ख़याल आया कि इतनी बड़ी ख़ुशख़बरी यूँ फ़ोन पर बताना ठीक नहीं, ‘शाम को जब विकास घर आएँगे तो इन्हें सर्प्राइज़ दूँगी।’
फिर वो शाम की तैयारी में जुट गयी। लेकिन बार-बार घड़ी की तरफ़ उसकी निगाहें जा रही है। दिल में बेचैनी और ख़ुशी दोनों एक साथ महसूस जो ही रही है? काम ख़त्म होते होते ४ बज गए। अब बस बालकनी में बार-बार चक्कर लगा रही है। उसकी आँखें तो मानो सड़क पर ही ठहरी हुई हैं। अचानक से दूर से ही उसे विकास की गाड़ी दिखती है और वो झट से घर के अंदर जाकर विकास को सर्प्राइज़ देने की तैयारी को एक बार ठीक से देखती है।
जैसे ही विकास घर की बेल बजाता है वो दरवाज़ा खोलती है। विकास अंदर घुसते ही, “क्या बात है बहुत अच्छी ख़ुशबू आ रही है, क्या बनाया है? घर भी एकदम सुंदर और तुम भी! क्या बात है? आज कुछ स्पेशल है?
सरिता बोलती है, “हाँ कुछ ख़ास तो है!”
“क्या?”
“आप पहले अंदाज़ा लगाओ, क्या हो सकता है?”
“शादी की सालगिरह तो नहीं है, तुम्हारा जन्मदिन? मेरा भी नहीं…मैं समझ नहीं पा रहा। तुम्हीं बताओ?”
सरिता थोड़ी देर चुप रहने के बाद शर्माते हुए बोलती है, “आप पापा बनने वाले हो…”
विकास एकदम शांत हो जाता है। सरिता को बड़ा अजीब लगता है। और तभी वो विकास से पूछती है, “क्या हुआ? मुझे तो लग रहा था कि आप बहुत ख़ुश होंगे ये बात सुनकर…अब हमारी शादी को भी ३ साल हो गए हैं। अब हमें अपनी फ़ैमिली बढ़ानी चाहिए।”
“सरिता, अभी मैं बच्चे के लिए तैयार नहीं हूँ। अभी मुझे बहुत कुछ करना है। बच्चे का क्या है, वो तो जब चाहो तब हो जाएगा। मेरे भी कुछ सपने है जिन्हें पूरा करना है। एक बार बच्चा आ गया तो फिर कुछ नहीं कर पाऊँगा। अपने लिए और ये सब बच्चे के लिए ही तो है। जितना अच्छे से कमा लेंगे बच्चे की उतनी ही अच्छे से परवरिश कर लेंगे।”
सरिता को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या बोले। फिर भी सरिता ने विकास को समझाने की कोशिश की, “भगवान ने हमें इतनी बड़ी ख़ुशी दी है और ज़रूरी नहीं कि जब हम चाहें तब हमें ये ख़ुशी मिल पाय।”
लेकिन विकास ने कड़े शब्दों में सरिता से बोल दिया, “ये बच्चा हम अबॉर्ट कर देंगे!”
फिर भी सरिता ने एक और कोशिश करते हुए बोला, “अगर बच्चा नहीं हुआ तब क्या करेंगे?”
इस बात पर विकास ने ग़ुस्से में सरिता को बोला, “नहीं हुआ तो क्या? इतने बच्चे हैं जो अनाथ हैं। हम कोई बच्चा गोद ले लेंगे।”
सरिता का मन टूट गया। सरिता बेचारी रोती रह गयी पति के सामने उसकी एक ना चली!
प्रिय पाठकों में अपनी कहानी के माध्यम से बस इतना कहना चाहती हूँ कि बच्चे की ज़्यादा ज़िम्मेदारी पत्नी पर होती है पर हमारे समाज में अक्सर देखा गया है कि बच्चा कब करना है, कितने करने हैं, ये सब बातें ज़्यादातर पति की मर्ज़ी मुताबिक़ ही होती हैं।
क्या अपने बच्चे को दुनिया में लाना है, इस बात का फ़ैसला सिर्फ़ पति ही कर सकता है? एक स्त्री, एक माँ का कोई अधिकार नहीं इस फ़ैसलें में? क्या फ़ैमिली को बढ़ाने के फ़ैसले में पत्नी का कोई अधिकार नहीं?
ये तो थी सरिता और विकास की कहानी! दोस्तों, ऐसे ही अनेक जोड़े हैं जिनकी ये समस्या होती है।
अगर आपके दिल को मेरी कहानी ने छुआ हो तो इसे अपने परिवार और दोस्तों तक भी पहुँचाएँ!
मूल चित्र : Photo by Bhoopal M from Pexels
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