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पैसा होने की वजह से समाज में रूतबा भी ससुराल वालों का बहुत था, लेकिन दरवाजे पर लगे महंगे पर्दे के पीछे की सच्चाई बिलकुल ही उलट थी।
“प्यारा भैया मेरा दूल्हा राजा बनकर आ गया, प्यारा भैया मेरा!” आज शांति निवास में ये गाना अपने तेज धुन पकड़े हुए बज रहा था। पूरे घर में हलचल और खुशियाँ थी। हो भी क्यों ना आज इस घर के छोटे बेटे ऋषभ की शादी थी।
ऋषभ देखने में सुन्दर और स्मार्ट, पेशे से इंजीनियर था। लेकिन स्वभाव से निहायत ही घमंडी और बदमिजाज, बदतमीज था। साक्षी इस घर की बड़ी बहू जो एक मध्यमवर्गीय परिवार से थी। उसकी शांति निवास में कोई इज्जत नहीं करता था बात-बात में उसको उसके मायके वालो को लेकर ताने देना और नीचा दिखाना सास दमयंती जी, ननद निशा और पति अखिल के साथ साथ पूरे परिवार की आदत थी। हर बात में, हर रिश्तेदार के सामने ये जताया जाता कि बिना दहेज शादी कर के उन लोगों ने साक्षी पर कितना बड़ा एहसान किया है।
जबकि सच इसके बिलकुल उलट था। दमयंती जी को अपने शराबी और शक़्क़ी बेटे के लिए कोई रिश्ता ही नहीं मिल रहा था। आखिर में झूठी प्रोफाइल बनाकर और झूठ बोलकर अखिल का विवाह साक्षी से करा दिया गया। पढ़ी लिखी साक्षी दोहरे चरित्र के लोगों के बीच आकर फंस गयी। किसी से कहकर कोई फायदा नहीं था उसको, क्योंकि जब भी वो अपने मायके वालों को ये बात बताती। कोई उसकी बात सुनने की बजाय सब उसको भाग्य का नाम दे देते।
पैसा होने की वजह से समाज में रूतबा और रसूक भी ससुराल वालों का बहुत था। लेकिन दरवाजे पर लगे महंगे पर्दे के पीछे की सच्चाई बिलकुल ही उलट थी। आये दिन साक्षी के साथ छोटी-छोटी बातों पर गाली-गलौज, ताने मारना, व्यंगों के बाण चलाना आम बात थी। ऐसा कोई दिन ना बिताता जिस दिन उसको सुख की रोटी सम्मान से नसीब हो। पूरे घर के काम और घर के हर सदस्य के छोटे से छोटे काम उसके भरोसे ही थे।
एक बार हिम्मत की आवाज़ उठाने की कि इतना काम उससे अकेले नहीं हो पाता। तभी निशा ने कहा, “अच्छा महारानी जी बात तो ऐसे कर रही हैं जैसे महलों में रही हैं। बाप की औकात नहीं थी कि बेटी को विदा कर सके और बेटी के इतने नखरे? दहेज लेकर आती और बोलती तो अच्छा भी लगता।”
गुस्से में साक्षी ने कहा, “पहली बात दीदी आप शायद भूल रही है कि आप लोगों ने ही कहा था कि हम लोग दहेज के खिलाफ हैं, हमें कुछ नहीं चाहिए। और दूसरी बात महल में तो ना सही लेकिन मेरा छोटा सा मायका किसी महल से कम भी नहीं। जहाँ लोगों के बीच में एक दूसरे के लिए प्यार और सम्मान तो है।” साक्षी का जवाब सुनकर माँ-बेटी का मुँह बन गया। निशा की शादी हो चुकी थी लेकिन वो अपने ससुराल में ना रहकर मायके में ही रहती थी क्योंकि वहाँ संयुक्त परिवार की वजह से काम बहुत होता।
शाम को दमयंती जी ने गुस्से में बात को इतना बढ़ा चढ़ा कर अपने बेटे अखिल के सामने परोसा की अखिल ने साक्षी को इतना मारा की वो ठीक से चल भी नहीं पा रही थी। अपनी पुरानी यादों के साथ काम करते करते साक्षी के आंखों के कोर गीले हो गए। तभी दमयंती जी ने आवाज़ दी, “कुछ ही देर में ऋषभ के ससुराल वाले आएंगे, तो खाने की तैयारी कर लेना और हाँ सबसे जरूरी बात कि अपने मायके के जेवर मुझे दे देना, वही ऋषभ के दुल्हन को चढ़ाऊंगी।”
“लेकिन माँजी वो तो मेरी मां के जेवर है।”
“हाँ! तो वैसे भी तेरे बाप ने दिया ही क्या था शादी में? तो उस जेवर पर नियम से हक हमारा ही बनता है। समझी?”
साक्षी ने तय कर लिया कि अब वो और बर्दाश्त नहीं करेगी। ना समाज के डर से ना किसी और डर से। शाम को ऋषभ के ससुराल से सभी लोग आ गए। सबके आवभगत के बाद ऋषभ के होने वाले ससुर जी सुरेंद्र जी ने कहा, “समधन जी मन में एक सवाल था बुरा ना माने तो पूछूं?”
दमयंती जी ने कहा, “अरे क्या आप भी समधी जी? कहिये क्या कहना चाह रहे थे?”
सुरेंद्र जी ने कहा, “समधनजी बहुत बार मन में आया कि आपकी बड़ी बहू से कभी नहीं मिला। अगर कोई बात हो या वो मिलना ना चाहती हो तो रहने दीजिए। माफी चाहूंगा अगर मेरी बात खराब लगी हो तो।”
“अरे! नहीं नहीं समधी जी रूकिये अभी बुलाती हूँ।” आवाज लगाते हुए दमयंती जी ने कहा, “साक्षी जरा इधर आना तो। दअरसल वो क्या है समधी जी की साक्षी छोटे घर से है। दो साल हो गए लेकिन अभी भी बिलकुल नहीं बदली। वही पुरानी सोच। हमने तो बहुत समझाया कि अच्छे से कपड़े पहनो, थोड़ा रहन सहन बदलो। लेकिन नहीं किया तो अब क्या कर सकते हैं? आप तो जानते ही हैं कि आजकल लड़कियां सुनती कहाँ हैं किसी का? हमने तो शादी भी बिना दहेज की करी। यहाँ तक कह दिया को अगर आपके पास ना हो तो एक साड़ी में आशीर्वाद दे के भेज दो हमारी बहु। हमारे घर में तो बेटी बहु में कोई फर्क नहीं होता। मेरे लिए तो जैसे निशा वैसे ही मेरी दोनों बहुएँ।”
तभी उनकी नजर पीछे खड़ी साक्षी से जा टकराई। नजरे चुराते हुए दमयंती जी ने कहा, “ये लीजिये आ गयी साक्षी।”
सुरेंद्र जी ने साक्षी को देखकर कहा, “आप से मिलना चाहता था क्योंकि आप मेरी बेटी की तरह ही हैं। बारात में आप भी आइयेगा।” बातों बातों में उन्होंने कहा कि बेटा अगर मेरी बेटी से कभी कोई भूल हो जाये तो माफ कर दिजिएगा छोटी बहन समझ कर, अभी उम्र ही कितनी है सिर्फ 21 साल।
तब साक्षी ने कहा, “तो अंकल जी क्या मैं जान सकती हूं कि इतनी कम उम्र में आप अपनी बेटी की शादी क्यों कर रहे हैं?”
“बिटिया आप तो जानती ही हैं कि आज कल समाज में दहेज कितना बढ़ गया है और मध्यमवर्गीय परिवार के लिए बिना दहेज दिए योग्य वर मिलना नामुमकिन है। सामने से इतना अच्छा रिश्ता चल कर आया तो भला कौन मना करेगा? वैसे भी समधी जी की अमीरी दूर दूर तक प्रसिद्ध है।”
साक्षी ने बीच में बात काटते हुए कहा, ” माफ कीजियेगा अंकल जी, थोड़ा कड़वा होगा लेकिन आप अपनी बेटी को प्यार ही नहीं करते वो तो बोझ है आपके लिए जिसे आप उतारना चाहते हैं।”
“नहीं बेटा ऐसी बात नहीं। बेटियां तो पिता के दिल का टुकड़ा होती हैं, चाहे अमीर की हों या गरीब की।”
“अच्छा फिर भी आप उसकी शादी उससे बड़े लड़के, जो उम्र में उससे 15 साल बड़ा है, जो शक़्क़ी, शराबी, अय्याश होने के साथ साथ बदमिजाज और बदतमीज भी है, जिसके लिए लड़कियों का मतलब नैपकिन है, जिसे इस्तेमाल करो और फेंको, उसके साथ कर देना चाहते हैं? अंकल जी आप जैसी ही भूल चार साल पहले मेरे पिता ने की थी, जिसका दंश मैं आज तक झेल रही हूं।
बड़े घर के लड़कों के साथ बिना दहेज शादी करना जिंदगी भर एहसानों की भारी गगरी सिर पर ढोने के जैसा ही है, जिसे मैं आजतक ढो रही हूं। मकान और रसूख़ देखकर नहीं, लड़की की शादी लड़के का और उसके परिवार का चरित्र और व्यवहार देखकर करनी चाहिए। चलती हूं आगे आपकी मर्जी आपको जो ठीक लगे।”
और जाते जाते साक्षी ने अपनी सास से कहा, “और हाँ माँजी मैं अपनी मां के जेवर किसी भी शर्त पर या डर से शादी के लिए नहीं दूँगी।” कहते हुए साक्षी वहाँ से जाने लगी।
तभी उसकी नजर अखिल पर पड़ी जो गुस्से में घूरते हुए उसे देखे जा रहा था। पास आ के उसने साक्षी के कानों में धीरे से कहा, “अब अपना हश्र याद रखोगी तुम।”
आज पलट कर उसी लहजे में साक्षी ने भी कहा, “फिर तो आजीवन जेल की सलाखों के पीछे भी जाने के लिए अपने पूरे परिवार के साथ तैयार रहना तुम भी। चलती हूं। घर के अंदर रहना है कि जेल के सोचकर रखना।”
कहते हुए साक्षी वहाँ से चली गयी। और लड़की वालों ने रिश्ते से मना कर दिया।
मूल चित्र : Krishna Studio from Pexels
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