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जब आपकी बहु खायेगी तभी तो बच्चे का पेट भरेगा…

जब रूचि का पेट नहीं भरता तो मुन्ने का कैसे भरता? भूखा बच्चा रात दिन रोता और सास कहती कैसा रोंदू बच्चा है बिलकुल अपनी माँ पर गया है। 

जब रूचि का पेट नहीं भरता तो मुन्ने का कैसे भरता? भूखा बच्चा रात दिन रोता और सास कहती कैसा रोंदू बच्चा है बिलकुल अपनी माँ पर गया है। 

“भाभी आपका खाना”, इतना कह रूचि की नन्द ने खाने की थाली टेबल पर रख दी। भूख से बेहाल रूचि की नज़र जब थाली पर गई तो दिल रो उठा। सिर्फ दो सुखी रोटी, एक कटोरी दाल और चटनी जितनी सब्ज़ी।

आज सातवां दिन था रूचि को माँ बने नार्मल डिलीवरी थी तो तीन दिनों में छुट्टी मिल गई थी। घर पे आते ही अपने कमरे तक रूचि सिमट गई थी। घर के कामों का बहाना कर सासू माँ ने बच्चे की जिम्मेदारी भी रूचि पर डाल दी।

जब से डिलीवर हुई थी एक समय भी भरपेट खाना रूचि ने नहीं खाया था। सास कहती, “ज्यादा ज्यादा खाओगी तो बच्चे का पेट दुखेगा।” चाय तक के लिये भी नौ दस बज जाते तब जा के चाय मिलती। सुखी रोटी दाल में भिगो मुँह में रखते ही रूचि के आँखों से आंसू निकल गए।

रूचि के पति रवि बाहर नौकरी करते थे। जब रूचि प्रेग्नेंट हुई तो बेहतर देखभाल के लिये रवि ने रूचि को अपने घर भेज दिया था, लेकिन यहाँ तो कभी भी भर पेट खाना रूचि को नसीब नहीं होता। बच्चा समय से थोड़ा पहले हो गया था, तो अचानक से रवि को भी छुट्टी नहीं मिली थी अगर रवि होते तो रूचि कुछ कहती भी उनसे, लेकिन ससुराल में किससे क्या कहती।

किसी तरह खाना खा मुन्ने के बगल में लेटी ही थी की मुन्ना उठ गया और रोने लगा। ज़ाहिर सी बात थी जब रूचि का पेट नहीं भरता तो मुन्ने का कैसे भरता? भूखा बच्चा रात दिन रोता और सास कहती कैसा रोंदू बच्चा है बिलकुल अपनी माँ पे गया है। रूचि की आत्मा रो देती।

तभी रवि का फ़ोन आ गया ख़ुश हो रवि ने कहा, “हेलो रूचि! कल सुबह-सुबह तुम्हारे सामने रहूँगा मैं। अपने बेटे को देखने के लिये दिल तरस गया।”

रवि के आने की खबर सुन रूचि बेहद ख़ुश हो गई। अगले दिन रवि आ गए, सबसे मिल जब रवि कमरे में आये तो रूचि को देख हैरान रह गए, “रूचि ये क्या हालत बना रखी है? रंग इतना काला, आँखों के नीचे काले घेरे और इतनी कमजोर क्यों लग रही हो?” मुन्ने को देख कर भी रवि दंग था।  मुन्ना भी कमजोर लग रहा था।

रवि को देख रूचि का इतने दिनों का बांधा सब्र टूट पड़ा और रवि के गले लग रूचि रोने लगी।

“क्या बात है बताओं रूचि?” घबरा कर रवि ने पूछा। रूचि से सारी बातें जान रवि दंग रह गया।

“तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया सब? और तुरंत रसोई में जा थाली सजा के ले आया और रूचि को खिलाने लगा। रवि को खाना निकालते देख रवि की माँ नाराज़ हो गई।

“ये क्या इतना सारा खाना क्यों खिला रहा है बहु को? तो बहु ने आते ही कान भर दिये तुम्हारे लगता है! देख रवि तेरी बीवी बहुत पेटू है। इतना खिलाओ, लेकिन इसका तो कभी पेट ही नहीं भरता।”

अपनी माँ की बातें सुन रवि अपने आपे से बाहर हो गया, “रूचि तुम खाना खाओ और माँ आप बाहर आइये मेरे साथ।”

“माँ ये क्या हालत हो गई है रूचि की? इतनी कमजोर और मुन्ना भी कितना कमजोर हुआ है और आप रूचि को पेटू कह रही हैं? क्या पेटू लोग इतने कमजोर होते हैं? नहीं माँ रूचि पेटू नहीं है।  भूख तो सबको लगती है, प्रेगनेंसी और नई माँ को तो दुगनी खुराक देनी चाहिये, तभी तो स्वस्थ माँ और स्वस्थ बच्चा होगा। लेकिन अफ़सोस माँ आपने कभी रूचि को भरपेट खाना दिया हो तब तो पेट भरेगा ना उसका माँ।”

“ये कैसी बातें कर रहा है क्या हमने इसे खाना नहीं दिया?”

“माँ, दिया तो ज़रूर लेकिन ज़रुरत से कम अगर सही खुराक मिली होती तो ऐसी हालत नहीं होती दोनों की। जब मुन्ना पेट में था तब आप कहती ज्यादा खाने से बच्चा दबेगा और अब डिलीवरी के बाद ज्यादा खाने से मुन्ने का पेट दुखेगा?

कैसी हालत हो गई मेरे बच्चे और बीवी की? मैंने तो यहाँ रूचि को बेहतर देखभाल के लिये भेजा था और आप एक नई माँ के स्वाभाविक भूख को पेटूपन कह रही हैं? आप तो खुद माँ हैं, कैसे भूल गईं? नई माँ को तो ज्यादा भूख लगती है। जब माँ पौष्टिक खायेगी, तभी तो अपने बच्चे दूध पिला पायेगी।”

आज ही रूचि अपनी माँ के घर जायेगी और जब स्वस्थ हो जायेगी तो वहीं से मेरे साथ दिल्ली जायेगी। रवि ने दो टूक अपना निर्णय सुना दिया और मन ही मन पछता भी रहा था की उसकी वजह से कितना कुछ रूचि और बच्चे को सहना पड़ा था।

मूल चित्र : Photo by Laura Garcia from Pexels

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