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क्यों माँगता है यह समाज औरत से प्रमाण पत्र?

जब लगी पुकारने उन समाज के ठेकेदारों को, तो लेकर लेखा जोखा उसके आज़ाद खयालों का, तो करने लगा हिसाब समाज उसके फटे चीथड़ों का।

जब लगी पुकारने उन समाज के ठेकेदारों को, तो लेकर लेखा जोखा उसके आज़ाद खयालों का, तो करने लगा हिसाब समाज उसके फटे चीथड़ों का।

धिक्कार है! हाँ हाँ! धिक्कार है!
उसकी लुटी अस्मत का भी
मांगता प्रमाण पत्र ये संसार है।

करती रही सवाल उन अपनों की झुकी नज़रों से
मेरा क्या कसूर क्यों भेद रहा हर कोई मुझे सवालिया नज़रों से?

समेट अपने बुत शरीर और पीकर सूखे आंसुओं को
जब लगी पुकारने उन समाज के ठेकेदारों को,
तो लेकर लेखा जोखा उसके आज़ाद खयालों का
करने लगा हिसाब समाज उसके फटे चीथड़ों का,
धिक्कार है उस विधि विधान पर
जो दरिंदों के कुकर्म का मांगता है अबला नारी से प्रमाण पत्र।

मूल चित्र: R.D. Smith via Unsplash

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Ruby Jain

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