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मेरा सत-सत नमन है धनिष्ठा और उसके महान माता-पिता को जिन्होंने अपनी 20 महीने की बच्ची के अंगदान कर उसे सबसे कम उम्र की कैडेवर डोनर बना दिया।
जो भी इस दुनिया में आया है उसे एक दिन इस संसार से विदा होना ही है, लेकिन अगर जाते-जाते हम किसी को अपने अंग दे जायें और उसका जीवन बचा जायें तो इससे बड़ा पुण्य कार्य कोई नहीं। शायद इसलिए अंगदान को महादान की संज्ञा दी जाती है।
वैसे तो हर साल 13 अगस्त को विश्व भर में अंगदान दिवस मनाया जाता है। जब किसी जीवित या मृत्यु व्यक्ति के स्वस्थ अंग या टिशूज़ को ले कर किसी जरुरतमंद व्यक्ति में ट्रांसप्लांट कर उसकी जान बचाई जाती है तो उसे अंगदान कहते हैं। अंगदान कभी जीवित तो कभी मृत्यु के बाद भी होता है। लेकिन मुझे अफ़सोस है कि अंगदान जैसे नेक काम के मामले में हमारे देश में जागरूकता की कमी और पिछड़ापन साफ साफ दिखता है।
अंगदान करने से मोक्ष नहीं मिलता, आत्मा को शांति नहीं मिलती, हमारा धर्म अंगदान की इज़ाज़त नहीं देता, मेरी उम्र कम है या फिर वजन कम है। ऐसे कई भ्रम और अंधविश्वास हमारे समाज में फैले है जो अंगदान की राह में रोड़ा अटकाते हैं। समाज में फैले या फिर कुछ वर्ग विशेष द्वारा फ़ैलायी गई ऐसी भ्रामक बातें उन लाखों लोगों के लिये सिर्फ निराशा ही लाती है जो पल पल इस इंतजार में रहते हैं कि कोई तो भगवान बन आयेगा जो उन्हें नया जीवन दे जायेगा।
ये तो हम सब जानते है की भारत में रोड एक्सीडेंट में लाखों जाने हर साल जाती है अगर ऐसे में मरने वाले का ऑर्गन डोनेशन का रजिस्ट्रेशन हुआ हो और परिवार तैयार हो तो एक व्यक्ति भी जाते जाते आठ लोगो को जीवन दे कर जा सकता है। लेकिन ये बेहद अफ़सोस जनक बात है कि 5 लाख से अधिक लोग सिर्फ कॉर्निया, हार्ट, किडनी, लिवर के साथ अन्य कई अंगों के इंतजार में ही मर जाते हैं और ये सिर्फ अंगदान के अभाव में होता है।
आज कई तरह से जागरूकता कार्यक्रम के द्वारा लोगो में जागरूकता लाने का प्रयास किया जा रहा है। आम लोगों को ये समझाया जा रहा है कि डोनर कोई भी स्वस्थ व्यक्ति हो सकता है, चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो। 18 वर्ष के कम आयु वाले अपने गार्जियन के अनुमति से डोनेट कर सकते हैं।
आज इसी विषय पर मैं धनिष्ठा की बात करुँगी। यूं तो बीस माह की उम्र खेलने की अपने माता-पिता का दुलार पाने की होती है लेकिन धर्मिष्ठा नाम की एक नन्ही परी ने मात्र बीस माह की उम्र में ही दुनियां में एक मिसाल कायम कर दिया कि अंगदान जैसे पुण्य के काम के लिये उम्र कोई मायने नहीं रखता। धनिष्ठा सबसे कम उम्र की कैडेवर डोनर बन हमारे समाज के लिए एक मिसाल बन गयीं।
दिल्ली के रोहणी नगर की रहने वाली धनिष्ठा ने इस दुनिया को विदा करते करते भी पांच लोगों को नई जिंदगी दे गई। बीते 8 जनवरी को खेलते समय धनिष्ठा को चोट लग गई। हॉस्पिटल में डॉक्टर्स के अथक प्रयास के बाद भी 11 जनवरी को धनिष्ठा को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया। धनिष्ठा के ब्रेन को छोड़ सभी अंग अपना काम कर रहे थे।
ऐसे कठिन समय पर अपने ह्रदय को मजबूत कर बेहद ग़मगीन माता-पिता बबिता और आशीष ने अपनी बच्ची के अंगदान का निर्णय लिया। इस तरह मात्र 20 माह की बच्ची धनिष्ठा के पांच अंग ह्रदय, दोनों किडनी, दोनों कॉर्निया और लिवर को सर गंगा राम अस्पताल को डोनेट कर दिया गया जिन्हें बाद में अलग अलग जरूरतमंद लोगों को लगाया जायेगा।
संतान को खोने का दुःख संसार का सबसे बड़ा दुःख होता है और ऐसे समय में अपनी संतान के अंगदान का निर्णय लेना किसी भी माता पिता के लिये आसान नहीं होता। मेरा सत-सत नमन है धनिष्ठा और उसके महान माता-पिता को जिन्होंने ऐसा मजबूत निर्णय ले अपनी बच्ची को अमर कर दिया। साथ ही समाज को एक जागरूक करने वाला सन्देश भी दे दिया।
भारत में विगत कुछ वर्षो के मुकाबले अंगदान की परंपरा बढ़ी है। जहाँ पहले लोग हिचकते थे वहीं अब लोग सामने आने लगे हैं लेकिन इसके बावजूद अंगदान की आज भी बेहद कमी है। मुझे आशा है कि धनिष्ठा की ये ख़बर पढ़ सुन कर लोगों की पुरानी मानसिकता बदले और वे अंगदान के लिये आगे आयें जिससे गंभीर बीमारियों से जूझते लोगों को जिंदगी की एक नई राह मिले।
अंत में यही कहूँगी कि यदि आपको आपका धर्म अंगदान से रोकता है तो उस महान ऋषि दघीचि को याद कीजियेगा जिन्होंने समाज की भलाई के लिये अपनी हड्डियां तक दान कर दी थीं। ज़रा सोचिये अगर दघीचि जैसे धर्मज्ञ ऐसा कर सकते हैं तो आम लोगों को डरने की क्या जरुरत है?
धनिष्ठा सबसे कम उम्र की कैडेवर डोनर हैं, आइये इनसे सीखें, आगे बढ़ें और अंगदान करें जिससे किसी को नई जिंदगी मिल सके।
मूल चित्र : Dharmishtha & Family
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