कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

लोकसभा में महिला हित के कई सवालों के साथ शामिल होने वाली डॉ सुशीला नायर

डॉ सुशीला नायर के ये सवाल स्त्री आंदोलनों, स्त्री संघर्ष और महिलाओं के सामाजिक विकास में आज भी अपने जवाब की तलाश कर रहे हैं।

डॉ सुशीला नायर के ये सवाल स्त्री आंदोलनों, स्त्री संघर्ष और महिलाओं के सामाजिक विकास में आज भी अपने जवाब की तलाश कर रहे हैं।

डॉ सुशीला नायर महात्मा गांधी के निजी सहायक प्यारेलाल के बहन साथ ही साथ महात्मा गांधी और बा की निजी डॉक्टर के रूप में आधुनिक भारत के इतिहास में चस्पा है। उनका शुरुआती जीवन जब तक महात्मा गांधी जीवित रहे, उनके आस पास ही केंद्रित रहा। वह उन युवा महिलाओं में शामिल थी जो महात्मा गांधी के बेहद करीब थी। जब महात्मा गांधी को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी को तीन गोलियां मारी तब गांधीजी के एक बगल सुशीला नायर खड़ी थी और दूसरी बगल मनुबेन।

इसके बरक्स डॉ सुशीला नायर का दूसरा परिचय पीछे छूट जाता है जहां वे डाक्टर के होने के साथ-साथ राजनीतिज्ञ-समाज-सेवी और स्त्री चेतना के निमार्ण के लिए ख्याल पसंद महिला भी थी। डॉ  सुशीला नायर के व्यक्तित्व का यह केवल एक पहलू है जो उनके जन्म 26 दिसंबर 1914 जो कुंजाह (पाकिस्तन) के साथ शुरू हुआ। 1939 में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद भाई से मिलने सेवाग्राम आश्रम पहुंची तो वहां हैजा फैला हुआ था। उन्होंने वहां अपनी सेवाएं देना शुरू किया और बापू और बा की निजी चिकित्सक बन गई।

डॉ सुशीला नायर की किताब ‘बापू की कारावास की कहानी’

1942 से 1944 तक बापू और बा जब पुणे के आगा खां पैलेस में नजरबंद थे तब वे उनके साथ रही। गांधीजी के हत्या के बाद आगे के पढ़ाई के लिए अमेरिका चली गई, जहां पब्लिक हेल्थ पर अपनी पढ़ाई की। इसी दौरान उन्होंने आगा खां पैलेस में कारावास के दौरान अपने अनुभवों को एक किताब में साझा किया जिसको राष्ट्रपति पुरस्कार का सम्मान मिला। किताब का नाम था ‘बापू की कारावास की कहानी।’

डॉ सुशीला का आजाद भारत में राजनीतिक सफर और जनस्वास्थ्य पर उनका ध्यान

आजाद भारत में उनकी राजनीतिक सफर की शुरूआत 1952  में हुई। उन्हें पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना गया, परंतु पहली सरकार में उन्होंने बतौर स्वास्थ्य मंत्री अपनी जिम्मेदारी संभाली। बाद में उन्हें दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी मिली। दिल्ली के राजनीति में सुशीला नायर 1956 तक स्वयं को सक्रीय रखा। उसके बाद वे कांग्रेस के टिकट पर तीन बार झांसी से चुनाव जीता चौथी बार वह जनता पार्टी के टिकट पर संसद पहुंची।

अपनी राजनीतिक पारी में उनका ध्यान देश के जन-स्वास्थ्य पर अधिक  केंद्रित रहा। वर्धा, झांसी समेत देश के कई इलाकों में अस्पतालों का निमार्ण, फरीदाबाद में उन्होंने टयूवरक्लोसिस सेनेटोरियम बनवाया। उन्होंने डॉक्टरी के पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों को ग्रामीण भारत में अपनी सेवाएं देने के लिए प्रेरित किया। यह उनके राजनीतिक और सामाज सेवा का एक पक्ष ही है जिसमें वह जनस्वास्थ्य पर पूर्ण रूप से समर्पित रही।

उनका अधिक जोर जनस्वास्थ्य के लिए और चिकित्सा के लिए शैक्षणिक संस्थानों के निमार्ण पर अधिक था। वह नहीं चाहती थी कि देश के युवा, चिकित्सा की पढ़ाई के लिए विदेश जाना पड़े। भारत के निमार्ण में उनकी इसकी भूमिका की अधिक चर्चा नहीं होती

राजनीतिक सफर का दूसरा पहलू स्त्री चेतना से भी जुड़ा है

उनके राजनीतिक सफर का दूसरा पहलू स्त्री चेतना से भी जुड़ा हुआ दिखता है। जहां लोकसभा में वे स्त्री-चेतना के सवालों के साथ शामिल होती हैं :

महिला ने अगर संपत्ति भी अर्जित की तब भी वह परिवार का हिस्सा होने के कारण उसे वह अधिकार प्राप्त नहीं है?  क्यों हम सांसद के कानून को बदलने में असक्षम हुए?  क्यों सभी तरफ पुरुषों को स्थान है, महिलाओं को क्यों नहीं? महिलाओं के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों के लिए पुरुषों में स्त्री चेतना का लोकतांत्रिक विकास क्यों नहीं हो पा रहा है? अगर उनमें बाध्य चेतना तो है लेकिन अंतःचेतना का अभाव क्यों है? क्या महिला राजनीतिज्ञ महिलाओं के सामाजिक विकास के लक्ष्य को केवल राजनीति चेतना से ही प्राप्त कर सकती है, सामाजिक चेतना के निमार्ण की आवश्यकता नहीं है? सुशीला नायर के यह सवाल आज भी स्त्री आंदोलनों, स्त्री संघर्ष और महिलाओं के सामाजिक विकास में आज भी अपने जवाब की तलाश कर रहे है।

महात्मा गांधी और बा के साथ रहकर सुशीला नायर ने अपने व्यक्तित्व को तपाया और निखारा, उसका सहारा लेकर आजीवन अकेले रहकर उन्होंने भारत के निमार्ण में न केवल अपना योगदान दिया। महिलाओं के हित के कई सवालों से संघर्ष करते हुए भारतीय महिलाओं के जीवन को सहज-सरल करने का प्रयास किया। दुनिया जब नए दशक में प्रवेश कर रहा था जहां नई उम्मीद की कहानियां दर्ज होनी थी तब डॉ सुशीला नायर ने 3 जनवरी 2001 को दुनिया को अलविदा कह दिया और स्त्री चेतना के सवालों को नई पीढ़ी के जिम्मे छोड़ दिया।

नोट:- इस लेख को लिखने के लिए डां सुशीला नायर पर लिखे गए कुछ लेखों का सहारा लिया गया है।

मूल चित्र :  Wikipedia, www.jhsph.edu  streekaal.com

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

240 Posts | 734,176 Views
All Categories