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तुम्हारी बहू गंवार है गंवार ही रहेगी…

क्या मम्मी, तुम भी किस गंवार को क्या समझा रही हो? एक हफ्ता हो गया समझाते हुए इस बात को उसको, अभी तक कुछ भी समझ में आया?

क्या मम्मी, तुम भी किस गंवार को क्या समझा रही हो? एक हफ्ता हो गया समझाते हुए इस बात को उसको, अभी तक कुछ भी समझ में आया?

सुबह अपने कमरे से निकलकर सीमा ने सासू मां के पैर छुए। सुरेखा जी सीमा की सास ने अपनी बहू को आशीर्वाद देते हुए कहा, “अरे सीमा ये पल्लू क्यूं रखा है? हटाओ इस पल्लू को, इसकी ज़रूरत नहीं हमारे घर में। तुम यहां आज़ादी से रह सकती हो। हम तुम्हें यहां रीति-रिवाजों में बांधने के लिए नहीं लाये हैं।”

“क्या मम्मी, तुम भी किस गंवार को क्या समझा रही हो? एक हफ्ता हो गया समझाते हुए इस बात को उसको, अभी तक कुछ भी समझ में आया?” रवि ने अपनी मां को गुस्से में बोला। रवि और सीमा की शादी को अभी एक हफ्ता ही हुआ था। सीमा गांव के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पली बड़ी थी। जहां पर रीति-रिवाजों को ज्यादा सम्मान दिया जाता था।

रवि ने अपनी मां को फिर से टोका, “मां देखो ना मैं कितना हैंडसम हूं और ये उतनी ही गंवार है। पता नहीं आपने मेरे शादी इससे क्यों करा दी? इसको तो किसी चीज़ की अक्ल नहीं है। मुझे तो एक से एक बढ़कर एक लड़कियां मिल जातीं। पता नहीं आपको इस लड़की में क्या दिखा?”

रवि की मां बोली, “बेटा लड़कियां तो बहुत मिल जातीं, पर जो संस्कार सीमा के अंदर हैं वह आज के समय में किसी भी लड़की के अंदर नहीं मिल पाते हैं।” रवि गुस्से में अपने ऑफिस के लिए निकल गया।

सीमा अपने ससुराल में घुलने-मिलने की अच्छे से कोशिश कर रही थी। ससुराल के सारे तौर-तरीके उसके अपने मायके से बिल्कुल विपरीत थे। जहां उसके मायके में सभी रीति-रिवाजों के बंधन में बंध कर चीजें प्रस्तुत की जाती थीं, वहीं उसके ससुराल में इसके विपरीत था सब कुछ। ससुराल में सभी एक साथ डाइनिंग टेबल पर बैठकर भोजन करते थे।

घर में किसी के बोलने और कुछ भी करने की किसी भी तरह की रोक नहींं थी। बस कमी थी रवि के प्यार की जो सीमा को दूर-दूर तक नहीं दिख रही थी। रवि को सीमा का एक गांव से संबंधित होना पसंद नहीं था। वह हमेशा से एक मॉडर्न और ऊंचे ख्यालात की लड़की से विवाह करना चाहता था।

सीमा ने वैसे तो स्नातक तक की पढ़ाई अपने कॉलेज से की हुई थी। पर कभी शहरी माहौल में रहना नहीं हुआ। इस बीच रवि का तबादला मुंबई हो जाता है। उसे ना चाहते हुए भी सीमा को अपने साथ ले जाना पड़ता है। घर पर रहते हुए मां के दबाव के चलते रवि की सीमा से थोड़ी बहुत बात भी हो जाती थी। पर जब से रवि मुंबई आया था उसने सीमा से दूरी बना ली थी।

देर रात अपने दोस्तों के साथ पार्टियां करता और कई-कई दिन तक घर भी नहीं आता था। सीमा को अब इन सब चीजों की आदत पड़ चुकी थी। उसने घर पर घुटने से अच्छा बाहरी दुनिया को जानने की कोशिश की। खाली समय में वो शहर की छोटी बड़ी हर जानकारी को जानने की कोशिश कर रही थी।

कुछ दिन बाद रवि की मां का संदेश आया वो कुछ समय के लिए मुंबई रहने के लिए आ रही थी। सीमा बहुत खुश थी उसे लग रहा था कम से कम इस एकांत की दुनिया में उसको कोई साथी तो मिलेगा कुछ दिन के लिए। इधर सीमा की सास का मुंबई आना होता है।दोनों सास बहू अपना सुख दुख बांट रहे होते हैं और उन्हें खाली समय में मुंबई दर्शन भी करा रही थी सीमा। सीमा की सास देख रही थी कि रवि किसी भी हाल में सीमा को स्वीकार नहीं कर रहा था उसके घर आने के बाद भी रवि का वही हाल था।

एक दिन सीमा की सास को अचानक से सीने में दर्द की शिकायत होती है। उन्होंने रवि को फोन किया, पर उधर से कोई उत्तर नहीं आया। इधर सीमा ने देखा कि जैसे ही सास की तबीयत बिगड़ रही है, उसने तुरंत अस्पताल में फोन मिलाया और उन्हें भर्ती कराया। रवि को जैसे-तैसे यह सूचना मिली वह भागते हुए अस्पताल को आया। इधर सीमा की सास को होश आ चुका था। रवि और सीमा दोनों मां से मिलने के लिए गए।

रवि ने अपनी मां से पूछा, “मां आपको अस्पताल किसने पहुंचाया?” तो रवि की मां ने बोला, जिसे तू गंवार समझता था ना आज उसी की वजह से मैं जिंदा हूँ।” अपनी मां की बात सुनकर रवि को आत्मग्लानि हो रही थी। उसको समझ नहीं आ रहा था कि वह सीमा का सामना कैसे करे। आज उसको समझ में आ गया था कि सिर्फ कपड़े पहनने से मॉडर्न नहीं होते। बल्कि समझदारी से जो परिस्थिति को संभाल ले वो मॉडर्न है।

मूल चित्र : Manu_Bahugauna from Getty Images via Canva Pro 

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