कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
पूरी तबीयत के साथ ठूँसे हुए गुटखे को निगलते हुए मैनेजर साहब बोले, "कल मैडम जी इन्वाईटेड हैं। विदेश से आ रही हैं, कल हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में बोलेंगी।"
पूरी तबीयत के साथ ठूँसे हुए गुटखे को निगलते हुए मैनेजर साहब बोले, “कल मैडम जी इन्वाईटेड हैं। विदेश से आ रही हैं, कल हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में बोलेंगी।”
“अरे मिश्रा जी! कल हिंदी दिवस है क्या करना है? सुना है कोई आर्डर आया है।”
“सहगल जी! बस वही हर बार की खाना पूर्ति करनी है। सुना है कोई यंग मैडम आ रहीं इस बार, वो भी क्या हिंदी बोलेंगी। ये आजकल के बच्चे क्या जानें हिंदी! खैर हम और आप क्या कर सकते हैं,” मिश्रा जी ने कहा।
तभी मैनेजर साहब अश्विन कमरे में प्रवेश करते हैं। पूरी तबीयत के साथ ठूँसे हुए गुटखे को निगलते हुए बोलते हैं, “आप सभी को पहले ही सूचना मिल चुकी है कि कल मैडम जी इन्वाईटेड हैं। विदेश से आ रही हैं, कल हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में बोलेंगी।”
“का बोलेंगी अश्विन बाबू?” मिश्रा जी खिखियाते हुए बोले। “अब इन नई पीढ़ी से हम सीखेंगे हिंदी का इतिहास।”
“अरे! मिश्रा जी फाॅरमेल्टी ही तो करनी है। का जा रहा है? हर साल की तरह इस साल भी एक घंटे का काम आधा घंटा में निपटा कर पान खाने चलेंगे”, अश्विन जी हंसते हुए बोले। “तो ठीक है सब टाइम पर पहुंचना।”
दूसरे दिन कार्यालय में बड़ी चहल-पहल थी। “अरे सहगल जी! चाय- वाय नहीं मिलेगा क्या? वैसे भी मैडम तो टाइम से आने से रहीं। इन औरत लोगों को फैशन से फुर्सत कहां”, मिश्रा जी ने कहा।
“ये बात तो सही कही मिश्रा जी बस इंतज़ाम एक बारी और चेक हो जाए फिर चलते हैं,” सहगल जी बोले।
“अरे! बनारसी ई का ससुरे एकौ दोहा ना चौपाई और ना ही प्रेमचंद के कउनो फोटो लगावा है। कईसन पता चली आज हिंदी दिवस है। चल लगा जाकर इन कर फोटो,” सहगल जी चपरासी को डांटते हैं।
तभी मेन गेट पर कार की आवाज़ आती है। अश्विन जी माला लेकर गेट पर भागते हैं। आज तो ऐसे कूदकर भागे जैसे कोई मैराथन जीत ली हो।
“अरे! सौदामिनी जी… वेलकम… वेलकम… प्लीज़ कम दिस साइड। प्लीज़ सी अवर आफिस…होप यू लाइक इट ही..ही..ही”, अश्विन जी ने कहा।
सौदामिनी जैसा नाम वैसा पहनावा। कहीं से देखकर ऐसा नहीं लगा कि विदेश से आई हैं। इतनी कम उम्र में भी अपनी परंपरा को संजो रखा है। सौदामिनी विदेश में हिंदी भाषा का प्रचार प्रसार कर रहीं हैं। अक्सर कई देशों में उनका आना जाना लगा रहता है। हिंदी को ऊँचाइयों पर ले जाने के लिए विदेशों में काफी सराहना मिली है। उनके विद्यार्थी भी इस काम में लगे हैं।
सौदामिनी ने पूरे आफिस को ध्यान से देखा और अश्विन जी से पूछा, “अरे! ये किसकी फोटो लगी है।”
“हाँ! ये मैडम जी…वाट अ क्वेश्चन? प्रेमचंद जी की,” अश्विन जी ने कहा।
“आपको सच में पता है ना अश्विन जी?” सौदामिनी मैडम ने पूछा।
“जी मैडम आई एम वेरी कांफिडेंट,” अश्विन जी ने कहा।
“यहीं तो गलत हो गए आप,” सौदामिनी बोली। “फिर से अच्छे से देख लें ये अशोक कुमार की फोटो लगी है,” आश्विन जी को काटो तो खून नहीं गुस्से में बनारसी को देखा। तभी सहगल जी मंच के लिए सौदामिनी जी को आमंत्रित करते हैं।
सौदामिनी मंच पर चढ़ते ही सभी को धन्यवाद देती हैं। साथ ही वो सबसे पहला प्रश्न करती है, “क्या आप सबमें से कोई मुझे बता सकता है हिंदी दिवस क्यूँ मनाते हैं? इसका प्रयोजन क्या है?” हर तरफ सन्नाटा पसर गया।
“अच्छा, क्या किसी एक दिन हिंदी दिवस को मनाने से उसे वो सम्मान मिल जाता है। मैंने जब इस आफिस में प्रवेश किया तो हिंदी को दहलीज़ पर दम तोड़ते देखा। अब आप पूछेंगे कैसे? तो उसका भी उत्तर है मेरे पास। अश्विन जी कम से कम आज तो इतनी धाराप्रवाह अंग्रेजी ना बोलते। भले ही मैं विदेश से हूँ पर मेरा कार्य हिंदी का उत्थान करना है।
क्या हम भारत में रहकर ये भी नहीं पहचान पाते की कौन प्रेमचंद, शरतचंद्र, या रामधारी सिंह दिनकर हैं। क्या हिंदी का सम्मान एक दिन का है। आज सब कहते हैं युवाओं को अपनी मातृभाषा का क्या ज्ञान होगा। हमें यही तो बतलाना है सभी को। जैसे हम अंग्रेजी का धलड्डे से प्रयोग कर रहे वैसे हिंदी का क्यों नहीं।
क्यों हमें शर्म है अपनी मातृभाषा बोलने में। एक हिंदी भाषी को क्यों हेय दृष्टि से देखा जाता है। क्यों हिंदी को विकास की श्रेणी में बाधक माना जाता है। प्रश्न जितने ज्यादा जवाब उतने कम। मैं सिर्फ इतना कहूंगी एक दिन काफी नहीं मातृभाषा को सम्मान देने के लिए। बल्कि इसे तो अपने अंदर आत्मसात कर इसका प्रचार प्रसार करना होगा। तभी ये जिंदा रहेगी वरना दम तोड़ देगी।”
“अचानक से पीछे ताली की आवाज़ आई। वाह! सौदामिनी मैडम सच कहा आपने,” मिश्रा जी बोले। “झूठ नहीं बोलूँगा पर हमें लगा नहीं था कि आज आप हमारी आँखें खोल देंगी। हम सब हर बार की तरह समझते थे कोई आएगा चाय पानी होगा बस।पर एक यंग जनरेशन को इतनी बड़ी बातें कहते सुनते देख आज लगा हिंदी अभी भी जिंदा है और अब ये हमारे यहां के नौजवानों के सुरक्षित हाथों में है।”
पूरा प्रांगण तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंज उठा।
मूल चित्र: Bulbul Ahmed via Unsplash
read more...
Please enter your email address