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अब संतानहीनता एक बड़ी परेशानी नहीं है क्योंकि आई वी एफ की जानकरी से लोग जागरूक हो रहें हैं और इस तकनीक से माता-पिता बन रहे हैं।
भारत में संतान उत्पन्न नहीं कर पाने की समस्या आम बनती जा रही है। हर साल भारत में अनेक दंपति माता-पिता बनने के सुख से वंचित रह जाते हैं। वहीं आंकड़ों की माने तो भारत में साल 2020 में वर्तमान प्रजनन दर 2.200 जन्म प्रति महिला है, इसमें साल 2019 से 0.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
साल 2019 में भारत के लिए प्रजनन दर 2.220 जन्म प्रति महिला रही। साल 2018 से 0.89 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस तरह इन आंकड़ों से यह साबित होता है कि दंपतियों में कहीं ना कहीं बॉयोलोजिकल परेशानी है, जिस वजह से ऐसी परेशानियां आ रही हैं। हालांकि जिस तरह से साइंस ने तरक्की की है, उसके अनुसार देखा जाए तो अब संतानहीनता एक बड़ी परेशानी नहीं है क्योंकि आई वी एफ की जानकरी से लोग जागरूक हो रहें हैं और इस तकनीक से माता-पिता बनने का सपना आज अनेक दंपति पूरा कर रहे हैं।
आई वी एफ का पूरा अर्थ है- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, मतलब यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें पुरुष के स्पर्म और महिला के अंडे को बाहर फर्टिलाइज करवा कर उसे दोबारा महिला के शरीर में डाल दिया जाता है। जब कोई विवाहित दंपत्ति पिछले 6 महीनों में बिना किसी सुरक्षा के सेक्स करते हैं मगर तब भी महिला प्रेंगनेंट नहीं हो पाती है, ऐसे में महिला या पुरुष में किसी तरह की समस्या का अंदाजा होने लगता है। यदि दोनों में ही कुछ दिक्कतें हो तो इस समस्या को युगल इनफर्टिलिटी (Couple Infertility) कहा जाता है।
आईवीएफ को लेकर लोगों में आशंका होती है क्योंकि उम्र को लेकर संशय बना रहता है। हालांकि इसका लाभ डॉक्टर के देखरेख में लेना जरुरी होता है मगर असिस्टेड रिप्रोडक्शन तकनीक रेगुलेशन बिल 2017, चैप्टर चार, पारा 37, सब पारा 7 ए के अनुसार आईवीएफ तकनीक से मां बनने जा रही महिला की आयु 18 साल से कम नहीं होनी चाहिए और 45 साल से अधिक नहीं होनी चाहिए।
डॉक्टरों के अनुसार 20 वर्ष से 35 वर्ष के बीच की आयु गर्भधारण करने के लिए सबसे बेहतर मानी जाती है। 30 से 40 साल की उम्र में प्रजनन उपचारों के बिना गर्भधारण करने की पूरी संभावना होती है।
31 साल की उम्र के बाद महिला की प्रजनन दर में कमी आने लगती है। यह एक ऐसी कमी है, जो 37 साल की उम्र के बाद तेज़ हो सकती है और नि:संतानता की ओर ले जाती है।
आईवीएफ के जरिये सामान्य बच्चों का ही जन्म होता है। अनेक लोगों के मन में आशंका होती है कि तकनीक के इस्तेमाल से बच्चे के होने के कारण बच्चों में कमी या कोई ना कोई बीमारी हो जाती है, मगर आईवीएफ इसे पूरी तरह खारिज तो नहीं करता मगर इसमें इस तरह की आशंका का होना गलत है। यह एक सामान्य प्रक्रिया ही है, जिसमें केवल फर्टिलाइजेशन का प्रोसेस शरीर के बाहर होता है।
हर प्रक्रिया कहीं ना कहीं हर इंसान के शरीर के अनुरुप रिएक्ट करती है। इस प्रक्रिया में कुछ महिलाओं में कब्ज की समस्या देखी जाती है। साथ ही युरीन में बल्ड आना, मूड स्विंग होना, पेल्विक पार्ट में दर्द होना, पेट में दर्द होने की परेशानियां महिलाओं में देखी जाती है। हालांकि इन्हें डॉक्टर की निगरानी में दवाईयां खाने से ठीक किया जा सकता है।
पुरुषों में अगर शुक्राणुओं की कमी है, तब अन्य किसी डोनर के स्पर्म से मां बना जा सकता है। यह गर्भपात की समस्या को भी कम करता है और बेहतर शिशुऔं के निर्माण में सहायक बनता है। अब तो आईवीएफ का लाभ समलैंगिक जोड़े, सेरोगेट मदर्स और वैसी महिलाएं भी ले रही हैं, जिन्हें सिंगल मदर बनने की चाह है। बच्चे में अगर किसी प्रकार की अनुवांशिक बीमारी देखी जाती है, तब उसे अर्बाट कराने का भी विकल्प होता है क्योंकि भ्रूण को विकसित होने के बाद ही शरीर में डाला जाता है। एक जरुरी बात जो ध्यान रखने योग्य है वह है कि मेडिकल इंशयोरेंस आईवीएफ को कवर नहीं करते इसलिए इसमें होने वाले खर्चों को स्वयं उठाना पड़ता है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो आज आई वी एफ की जानकरी के कारण ये लोगों द्वारा अपनाया जा रहा है।
आईजीएमएस की वरिष्ठ डॉक्टर कल्पना सिंह, जो कि स्त्री रोग विशेषज्ञ हैं, वे बताती हैं कि सही उम्र में माता-पिता नहीं बन पाने से लोगों को चिंता घेर लेती है। हालांकि इसका कारण बदलती लाइफ स्टाइल और लोगों का बदलता नजरिया भी है मगर अब तकनीक भी विकसित हो गई है, जिस कारण से लोग अब माता-पिता बन सकते हैं, जिसमें आईवीएफ एक सरल और बेहतर विक्लप है। हालांकि विशेषज्ञों की राय बेहद आवश्यक होती है।
नोट- लेख में दिए गए बातें इंटरनेट की मदद से लिए गए हैं। आपसे अनुरोध है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले अपने डॉक्टर से जरुर संपर्क करें।
मूल चित्र : Vaishuren from Getty images Signature via Canva Pro
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