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खुद ही सीखा है उसने तूफानों में खुद को संवारना, पर फिर वो वो नहीं रह जाती इन सब बातों में, भूल जाती है ठहाके लगाकर हंसना खिलखिलाना।
पसंद है उसे ख्वाबों की ताबीर को सच करना, ख्वाबों की गीली मिट्टी पर धीरे से पांव रखना। कंकड़ चुभें या नर्म मिट्टी हो पांवों को जमाना, इरादा है पांव के गहरे निशानों की छाप छोड़ना।
उस सोंधी मिट्टी की महक का रूह में बस जाना, और पूरे होते ख्वाबों के इत्र से उसका वो महकना। ख्वाबों की जमीन और भी पक्की होने लगती है, फिर हुआ वही सब कुछ किसी को रास ना आना, कि उसका अपना ही अस्तित्व बनाने में लग जाना।
सीमाओं का टूटना और उसका खुद का बिखरना, टूट-टूटकर ही सीखा है फिर उसने खुद को समेटना। पर उसको आता है खूबसूरती से सब कुछ संभालना, एकदम से एक गहरी चुप्पी फिर सब कुछ थम जाना।
फिर अचानक एक शोर का बढ़ना, बढ़ते ही जाना, पर रुकती नहीं है वो शोर भी बांध नहीं पाता उसे। खुद ही सीखा है उसने तूफानों में खुद को संवारना, पर फिर वो वो नहीं रह जाती इन सब बातों में, भूल जाती है ठहाके लगाकर हंसना खिलखिलाना।
काश सबका साथ वो पा जाती तो क्या ही था कहना, तुम देखना उसकी कोशिशों के अस्फुट निशान ढ़ूंढ़ना। कोशिश थोड़ी तुम भी करना उसको थोड़ा समझना, जैसे धूप संग रहे छांव वैसे ही तुम उसके संग चलना, फिर खिल जाएगी वो, जरा सा तुम बस साथ निभाना खुद का पा लेगी वजूद तो सीखेगी फिर से मुस्कुराना।
मूल चित्र : Photo by Anil from Pexels
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