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18 जनवरी को 6 महिला संस्थाओं द्वारा मनाया जाएगा महिला किसान दिवस

18 जनवरी को महिला किसान दिवस संयुक्त किसान मोर्चा के अंतर्गत मनाया जाएगा जिसमें देश भर से हज़ारों महिलाएँ राज भवन तक मार्च करेंगी।

18 जनवरी को महिला किसान दिवस संयुक्त किसान मोर्चा के अंतर्गत मनाया जाएगा जिसमें देश भर से हज़ारों महिलाएँ राज भवन तक मार्च करेंगी।

भारत में किसान आंदोलन अभी तक जारी है। किसान संगठन दिल्ली की सर्दी में बॉर्डर पर बने हुए हैं और अपने हक़ के लिए लड़ रहे हैं। हम सभी ने किसान आंदोलन की तस्वीरें देखीं हैं जो एकता और साहस की मिसाल हैं। इन किसानों में साथ साथ महिलाएँ भी बॉर्डर पर डटी हुई हैं और अपने साथियों का साथ दे रही हैं। बिना टॉयलेट की सुविधा और सुरक्षा के बिना महिलाएँ भी लगातार मोर्चे पर लगी हैं। 

महिला संस्थाओं ने निकाला जवाइंट स्टेट्मेंट 

किसान आंदोलन में महिलाएँ अपना योगदान दे रही हैं और छह महिला संगठनों ने हाल ही में १८ जनवरी को मोर्चा निकालने का जवाइंट स्टेट्मेंट निकाला है। इन संगठनों में नैशनल फ़ेडरेशन ओफ़ इंडियन विमन, ऑल इंडिया डेमक्रैटिक वेमेंस असोसीएशन, ऑल इंडिया प्रग्रेसिव वेमेंस असोसीएशन, प्रगतिशील महिला संगठन, ऑल इंडिया अग्रगामी महिला समिति और ऑल इंडिया महिला सांस्कृतिक संगठन शामिल हैं। इन संगठनों ने १८ जनवरी को मोर्चे का ऐलान किया है और उनकी माँगे हैं, किसान क़ानूनों की वापसी, फ़ूड, वर्क, हेल्थ सर्विसेज़, सेल्फ़ हेल्प ग्रुप के लोन की माफ़ी और वह किसान आंदोलन को समर्थन देने के लिए यह आंदोलन कर रहे हैं।

महिला किसान दिवस 

यह महिला किसान दिवस संयुक्त किसान मोर्चा के अंतर्गत मनाया जाएगा। देश भर से हज़ारों महिलाएँ राज भवन तक मार्च करेंगी और हर राज्य और ज़िला राजधानी पर भी आंदोलन किया जाएगा। नए किसान क़ानूनों के आने के कारण महिलाओं के लिए हालात और भी ख़राब हो गए हैं। इनका मानना है कि इन नए क़ानूनों के कारण और पुराने राशन सिस्टम के तहत आर्थिक तंगी का दौर चल रहा था। साथ ही दिसम्बर से मुफ़्त अनाज भी रुक हो गया है। इस आर्थिक तंगी में भी सरकार किसानों की मदद नहीं कर रही है और इसलिए यह मोर्चा निकाला जा रहा है।

महिलाओं पर पड़ती है दोगुनी मार 

महिलाओं पर किसी भी आर्थिक तंगी की दोगुनी मार पड़ती है। घर में कोई भी आर्थिक परेशानी आने पर सबसे पहले महिलाओं के गहने बेच दिए जाते हैं और उन्हें और भी कई तरह की परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सरकार के किसान विरोधी क़ानून लाने से किसान आत्महत्या में भी बढ़ोतरी होगी। भारत में किसान आत्महत्या बहुत ज़्यादा हो रही हैं और इसका प्रभाव महिलाओं को भी झेलना पड़ता है। किसान आत्महत्या के बाद घर में बची महिलाओं पर घर की ज़िम्मेदारी आ जाती है और उन्हें क़र्ज़ चुकाने के लिए बेज़्ज़त भी किया जाता है।

कोरोनावायरस के कारण बढ़ीं मुश्किलें 

कोरोना महामारी के कारण वैसे ही आर्थिक हालात पस्त हो गए हैं उसके ऊपर से प्राइवट कम्पनियों को खेती में प्रवेश देना किसानों के हित में नहीं है। उनका मानना है कि एमएसपी ना होने से और प्राइवट अधिकारियों का खेत ले लेने से किसानों का घाटा होगा और महिला मज़दूरों का भारी नुक़सान होगा। महिलाएँ अपने ही खेत में मज़दूर बनकर रह जाएँगी। महिलाओं के पास वैसे ही ज़मीनी अधिकार नहीं होते, इन नए क़ानूनों से उनके बचे हुए अधिकार भी समाप्त हो जाएँगे और उनके अधिकार खंडित हो जाएँगे। 

मोर्चा समर्थन और सम्बल है महिला किसान दिवस 

महिला किसान दिवस के रूप में यह मोर्चा ना केवल किसानों के आंदोलन को समर्थन देगा अपितु उनके आंदोलन को सम्बल देगा और आगे बढ़ाएगा। यह मोर्चा किसान क़ानून, किसानों का क़र्ज़ और अन्य किसान मुद्दों पर सरकार का ध्यान केंद्रित करने के लिए किया जा रहा है।

मूल चित्र: GauriLankesh News

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Sehal Jain

Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...

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