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महिलाओं में कोई रेफ़्रैक्टरी पिरीयड नहीं होता और महिलाओं को एक ही बार में कई ऑर्गेज़्म हो सकते हैं। लेकिन ऐसा होता नहीं है क्यूंकि...
महिलाओं में कोई रेफ़्रैक्टरी पिरीयड नहीं होता और महिलाओं को एक ही बार में कई ऑर्गेज़्म हो सकते हैं। लेकिन ऐसा होता नहीं है क्यूंकि…
ऑर्गेज़्म का अर्थ है शारीरिक ख़ुशी और उत्तेजना। यौन उत्तेजक गतिविधियों या संभोग के दौरान योनि का विस्तार होता है, योनि की चिकनाई शुरू होती है और स्तन सूजने लगते हैं। श्वास और रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) बढ़ जाता है। जांघों, कूल्हों, नितंबों (कूल्हों) की मांसपेशियां खिंचने या तनने लगती हैं और ऐंठनयुक्त जकड़न शुरू हो सकती है।
ऑर्गेज्म यौन उत्तेजना का चरम है और यह अक्सर योनि से डिस्चार्ज के बाद होता है। महिलाओं और पुरुषों दोनों को ही ऑर्गेज़्म होता है पर हमारे समाज में महिलाओं के ऑर्गेज़्म या कामोत्तेजना की बात नहीं की जाती।
महिलाओं को चरम सुख कई तरीक़ों से मिलता सकता है। यह क्लाइटोरिस स्टिम्युलेशन से भी हो सकता है, वैजिनल स्टिम्युलेशन से भी हो सकता है और सर्विकल स्टिम्युलेशन से भी हो सकता है। महिला के इस सुख की बात हमारे समाज में नहीं की जाती क्योंकि महिलाओं को इस पुरुष प्रधान समाज में मात्र पुरुषों को संतुष्ट करने की वस्तु माना जाता है।
पुरुषों का ऑर्गेज़्म दिखता है और डिस्चार्ज के साथ समाप्त होता है वहीं महिलाओं के ऑर्गेज़्म में डिस्चार्ज निश्चित नहीं होता है। आज कल महिलाओं के ऑर्गेज़्म पर बात होने लगी है और यह उभर कर सामने आया है कि महिलाओं को पुरुषों की तुलना में ऑर्गेज़्म से मिलने वाले सुख की प्राप्ति कम होती है।
एक शादीशुदा जोड़े में लगभग 87 प्रतिशत पुरुषों को ऑर्गेज़्म का सुख मिलता है और केवल 49 प्रतिशत महिलाओं को। इसका कारण यह है की महिलाओं के सुख और सुकून को तवज्जो नहीं दी जाती है। देखा जाए तो महिलाओं को पुरुषों की तुलना में अधिक बार ऑर्गेज़्म हो सकता है क्योंकि पुरुषों को एक ऑर्गेज़्म के बाद इंतज़ार करना पड़ता है जिसे रेफ़्रैक्टरी पिरीयड कहते हैं। इस दौरान फिर से ऑर्गेज़्म नहीं हो सकता। महिलाओं में कोई रेफ़्रैक्टरी पिरीयड नहीं होता और महिलाओं को एक ही बार में कई ऑर्गेज़्म हो सकते हैं।
महिलाओं में चरम सुख प्राप्ति के कई तरीक़े हैं, जैसे क्लाइटोरिस की सहायता से, वजाइना की सहायता से और सर्वाईकल की सहायता से। विज्ञान के अनुसार महिलाओं के वजाइना में जी–स्पॉट होता है, जिसको स्टिम्युलेट करने से महिलाओं को क्लाइमैक्स की प्राप्ति होती है।
सामान्यतः महिलाओं का चरम सुख 13-51 सेकंड के लिए होता है और पुरुषों का 10-20 सेकंड के लिए। लेकिन महिलाओं के चरमसुख के लिए अधिक मेहनत लगती है। आज कल फ़िल्मों और सिरीज़ में महिला के चरम सुख पर बात होने लगी है।
इसमें अधिकतर महिलाओं द्वारा ऑर्गेज़्म ‘फ़ेक’ करने की बात आती है। इसका मतलब है कि महिलाओं को अपने चरम सुख का दिखावा करना पड़ता है और उन्हें सेक्स से ऑर्गेज़्म नहीं मिल पाता।
वैसे तो हर किसी का शरीर और दिमाग़ अलग अलग चीज़ों पर अलग-अलग तरीक़े से प्रतिक्रिया देता है। किसी के लिए कोई एक तकनीक तो किसी और के लिए कोई दूसरी तकनीक काम करती है, लेकिन कुछ पहलू ऐसे होते हैं जो सभी के लिए काम करते हैं। कुछ मानसिक सांत्वना होने से ऑर्गेज़्म आसान हो जाता है।
अगर महिलाओं की भावनाओं को, उनके सेक्स सम्बन्धी संवेदनाओं पर ध्यान दिया जाए और उन्हें सुरक्षित महसूस कराया जाए तो ऑर्गेज़्म आसान हो सकता है। एक खुले विचारों वाला मज़बूत रिश्ता जिसमें बराबरी हो, उसमें ऑर्गेज़्म आसान होता है। साथ ही साथ साथी की सेक्स की तकनीक और दोनों का सामंजस्य भी इसे आसान बनाता है।
इसके विपरीत अगर रिश्ते में कड़वाहट हो और बराबरी की बजाय कमतरी हो तो ऑर्गेज़्म में मुश्किल हो सकती है। बात करने की आसानी और आपसी समझ ना होने से भी सेक्स में फ़ीमेल ऑर्गेज़्म नहीं होता। इसलिए तकनीक भले ही कोई भी हो, सबसे ज़रूरी है सम्मान और बराबरी।
एक महिला को पुरुषों को संतुष्ट करने की वस्तु समझने की बजाय अपने आप में एक इंसान समझना, जिसकी अपनी शारीरिक ज़रूरतें हैं, महिलाओं को चरम सुख देने के लिए बढ़ते कदम हैं।
मूल चित्र : Kaspars Grinvalds via Canva Pro
Political Science Research Scholar. Doesn't believe in binaries and essentialism. read more...
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