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मेरी ज़िंदगी की पतंग…

मानो जैसे मोहब्बत की हवा में सिमटकर, भरोसे के तेरे माँझे से लिपटकर, मेरी ज़िंदगी की पतंग, तेरे अंगना के आसमाँ में उड़ने चली है।

मानो जैसे मोहब्बत की हवा में सिमटकर, भरोसे के तेरे माँझे से लिपटकर, मेरी ज़िंदगी की पतंग, तेरे अंगना के आसमाँ में उड़ने चली है।

मानो जैसे मोहब्बत की हवा में सिमटकर

भरोसे के तेरे माँझे से लिपटकर,

छोड़ कर अपनी जमीं,

मेरी ज़िंदगी की पतंग,

तेरे अंगना के आसमाँ में उड़ने चली है।

तू चाहे तो ढील दे,

तू चाहे तो खींच ले,

तू चाहे तो छू लूँ,

ख़्वाबों के आसमान को,

कर एतबार तुझ पर,

मेरी पतंग तेरी दुनिया में उड़ने चली है।

ये कैसा अद्भुत संगम है,

बंधन और आज़ादी का,

कुछ घबराई, कुछ इठलाई,

उड़ती फिरूँ मैं तेरे गगन में,

उड़ती फिरूँ मैं तेरे गगन में।

मूल चित्र : Rajibul Islam Mali via Pexels 

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